STORYMIRROR

Sulakshana Mishra

Abstract

4.4  

Sulakshana Mishra

Abstract

वट वृक्ष

वट वृक्ष

9 mins
25.8K


कुछ आदतें ऐसी होती हैं कि इंसान जीतेजी उन आदतों के लिए कुछ भी करता है और वो आदतें भी इतनी गहराई से इंसान की ज़िंदगी में अपनी धाक जमा चुकी होती हैं कि मरते दम तक साथ छोड़ती नहीं हैं। एक आम इंसान की तरह मिसेज जोशी भी अपनी कुछ आदतों की बेड़ियों से जकड़ी रहीं ज़िंदगी भर। उनकी सुबह की शुरुआत हमेशा से ईश्वर की पूजा के बाद एक कप गर्मागर्म चाय की चुस्कियों के साथ और अखबार की सुर्खियों के साथ होती थी। उनके चेहरे के हाव भाव, पूरी धरती के हालात बयाँ कर देते थे। उनके सुबह उठने का समय बदलता रहा पर इस आदत का बाल भी बाँका न हुआ। 

मिस्टर और मिसेज जोशी, दोनों ही सरकारी नौकरी में ऊँचे पदों से रिटायर हुए। दोनों के बीच 3 साल का जो उम्र का फासला था, वो रिटायरमेंट तक साथ निभाता रहा। मिसेज जोशी अभी पिछले महीने रिटायर हुईं। जोशी परिवार के दोनों बच्चे विदेश में थे। बेटे की शादी की 4 साल हुए। वो अपनी पत्नी और 2 साल की बिटिया के साथ अमेरिका में था। बेटा बहू, दोनों एक ही कम्पनी में काम करते थे। बिटिया की शादी 6 महीने पहले हुई थी। वो और उसका पति भी एक ही कम्पनी में ऑस्ट्रेलिया में काम करते थे। शादी से पहले, शैली दिल्ली में ही नौकरी करती थी। शैली और मिसेज जोशी को कई बार लोग सगी बहन समझ लेते थे। मिसेज जोशी ने हमेशा खुद को लगातार बेहतर बनाने की कोशिश की और खुद को बहुत मेंटेन भी किया। बाकी हमउम्र औरतों की तरह उनमें प्रतिस्पर्धा की भावना थी, पर उनकी प्रतिस्पर्धा सिर्फ खुद से थी। यही वजह थी कि रिश्ते में शैली की माँ होने के बावजूद वो हमेशा शैली की सबसे पक्की मित्र रहीं। 

शैली पढ़ाई लिखाई में हमेशा अव्वल रही। उसने स्कूल से लेकर कॉलेज तक की पढ़ाई, सब दिल्ली में की। उसकी नौकरी भी दिल्ली में ही लगी। कुल मिलाकर शैली पैदा होने से अपनी शादी वाले दिन तक हमेशा अपनी माँ के साथ ही रही यदि इसमें हफ्ते दस दिन के लिए शहर से बाहर जाने को शैली के जाने को नजरअंदाज कर दिया जाय तो। शैली के जाने के बाद मिसेज जोशी उसको बहुत याद करतीं। पति के साथ होने के बावजूद भी एक अजीब सा खालीपन सा महसूस करने लगीं थीं वो।

आज सुबह की चाय की चुस्की के साथ ही उनकी नज़र अपने पड़ोसी के घर की बालकनी में खड़ी लड़की से टकराई। वो शैली की हमउम्र भी थी और उसकी कदकाठी काफी हद तक शैली से मिलती थी। मिसेज शुक्ला के घर कोई लड़की तो थी नहीं, फिर ये कौन थी ? मिसेज शुक्ला अपने रूखे व्यवहार और तीख़ी ज़ुबान के लिए काफी ख्याति अर्जित कर चुकी थीं, इसलिए इस लड़की का उनके घर मे होना थोड़ा आश्चर्य करने वाला था। मेहमान या रिश्तेदार मिसेज शुक्ला के घर कम ही आते। ज़्यादातर जो एक बार आता, वो जाते वक्त कभी लौट के न आने की कसम खा के जाता।

स्त्री मन की उत्सुकता अब मिसेज जोशी के दिल में हिलोरें मार रही थी। पल भर को तो ऐसा लगा कि इस लड़की के बारे में सब कुछ जान लेना, उनकी ज़िंदगी का मकसद हो गया हो। वो अपनी ही सोच पे मन्द मन्द मुस्कुराए बिना न रह पायीं। उनको लगा कि शायद ज़िन्दगी और नौकरी की आपाधापी में वो नारी सुलभ व्यवहार के आनंद से वंचित रह गयीं। खैर ! बीते वक़्त का क्या हिसाब लगाना। वो अपने ख़यालो में खोई हुई थीं, पता ही नही चला कि कब 8 बज गए। विचारों की श्रृंखला तो दरवाजे की घंटी ने तोड़ी। सर्वेश, उनकी कामवाली बाई आ गयी थी। मिसेज जोशी ने उसको देखते ही पूछा,

" एक बात बताओ सर्वेश, ये सामने वाली शुक्ला भाभी जी के यहाँ एक बड़ी प्यारी सी लड़की दिखी आज। शैली की याद आ गयी। कौन है ये ?"

" मेमसाहब, वो छोटी बीबी हैं सुकन्या, मतलब शुक्लाइन की बड़ी बहू। सिर्फ दिखने में ही प्यारी नहीं हैं, सुभाओ (स्वभाव) की भी बहुत प्यारी हैं। पर शुक्लाइन को तो भगवानो न प्यारे लगें। आप तो जनती हौ उनको हिसाब किताब।" सर्वेश ने शिकायती लहजे में अपनी रिपोर्ट दी। 

" पिछले हफ्ते पूरो परिवार गओ थो लखनऊ, शादी हुअईं हुई। सुरम्य भैया ने अपनी पसंद से ब्याह करो है। शुक्लाइन फ़र्ज़ी को रायता फैलाये हैं, बहू पंडित मिली है, पढ़ी लिखी सुंदर है, दहेज़ भी खूब मिलो है। पता नहीं काहे शुक्लाइन को मुंह बिचको राहत है। सबसे बड़ी बात, शुक्लाइन कित्ता जली कटी सुनाती हैं, पर मज़ाल जो बहुरिया पलट के बोले इनसे। किसी सरकारी नौकरी में ऊँचे पद पे है।" सर्वेश, लगातार नई बहू की वकालत कर रही थी।

मिसेज जोशी को बड़ी शांति मिली उस लड़की मतलब सुकन्या के बारे में जान के। पूरी सोसाइटी में एक मिसेज जोशी से ही मिसेज शुक्ला की बोलचाल थी। बाकी तो सबसे कभी न कभी लड़ाई झगड़े हो चुके थे। शाम में एक सुंदर सी साड़ी और अंगूठी ले कर पहुँच गयी वो सुकन्या से मिलने। आखिर उनकी बहू मिताली और बिटिया शैली, दोनों को मिसेज शुक्ला ने शादी में अंगूठी दी थी। सुकन्या से मिलने के बाद मिसेज जोशी को सिर्फ दो बातें समझ मे आयीं, एक तो ये कि सर्वेश ने सुबह जो कुछ भी बताया था, अक्षरसः सच था और दूसरी बात, पढ़ी लिखी बहू की कद्र बिना पढ़ी लिखी सास कभी नहीं कर सकती। मिसेज जोशी ने बड़े प्यार से मिसेज शुक्ला को सपरिवार इतवार की शाम अपने घर डिनर पर बुला लिया। परिवार के नाम पे बस तीन ही प्राणी थे, मिसेज शुक्ला, उनका बेटा सुरम्य और नई नवेली बहू सुकन्या। मिसेज शुक्ला का छोटा बेटा सलिल मुम्बई में नौकरी करत

ा है, उसकी शादी अभी तक नहीं हुई। बड़े बेटे के प्रेम विवाह के बाद, मिसेज जोशी को पूरी उम्मीद हो गयी है कि सलिल भी अपना जीवनसाथी खुद ही चुनेगा। इस छोटी सी मुलाकात में सुकन्या ने मिसेज जोशी से बड़े प्यार से उनका मोबाइल नंबर ये कह के ले लिया कि वो ऑफीस में होती है तो अगर माँ जी का फ़ोन किसी वजह से नहीं उठता, तो बहुत घबराहट होती है। मिसेज शुक्ला काफी समय से बीमार हैं। उच्च रक्तचाप, मधुमेह है। एक बार तो हार्ट अटैक भी आ चुका है। सुकन्या के व्यवहार में अपनी सास के प्रति अपनापन दिख रहा था। सुकन्या की माँ की मृत्यु जब हुई तब वो बहुत छोटी थी, वो शायद मिसेज शुक्ला में अपनी माँ को तलाश रही थी। वहीं मिसेज शुक्ला के तल्ख रवैये से उनकी सुकन्या के प्रति नाराज़गी भी किसी से छिपी नहीं थी।

आखिरकार इतवार की शाम भी आई और शुक्ला परिवार भी। सुकन्या जिस अपनेपन से मिसेज जोशी को " आँटी" कह रही थी, उनको यकीन हो गया था कि सुकन्या भी उनसे उतना ही लगाव रख रही थी, जितना कि वो रखने लगी थीं उस से। जैसे जैसे वक़्त बीता, मिसेज़ जोशी और सुकन्या का रिश्ता भी उतना ही गहरा होता गया। पहले सिर्फ औपचारिक मेसेज का आदान प्रदान हुआ और बाद में एक दूसरे को सबकुछ बताना, आदत में शुमार हो गया। अब मिसेज जोशी की रसोई में कुछ ख़ास बनता, तो सुकन्या को ऑफिस जाते वक्त, मिसेज जोशी खुद टिफिन में दे कर आतीं। टिफिन के मिलने में अगर अंतराल बढ़ जाये तो सुकन्या खुद कुछ फरमाइश कर देती थी। उसके अपनेपन से मिसेज जोशी का जुड़ाव उसके प्रति दिन पर दिन गहराता जा रहा था। 

मिसेज शुक्ला को पसन्द नहीं था कि सुकन्या किसी भी सोसाइटी वाले से मेल मिलाप बढ़ाए। उनके मन में एक अनजान भय था कि सबलोग उनके खिलाफ सुकन्या के कान भरेंगे। अंततः मिसेज जोशी और सुकन्या रोज़ सुबह सोसाइटी से 2 किमी दूर एक पार्क तक मोर्निंग वाक के नाम पर साथ जाने लगीं। फिटनेस के साथ साथ दोनों दिल भर के गपशप भी कर लेते थे। कुछ ही दिनों में दोनों एक दूसरे के आगे खुली किताब हो गए थे। मिसेज जोशी भी अब आँटी से मम्मा हो गयी थीं। वक़्त बीतने के साथ मिसेज़ शुक्ला की नफरत अगर बढ़ी नहीं, तो कम भी नहीं हुई। बहुत मंथन के बाद निष्कर्ष निकाला कि मिसेज शुक्ला , सुकन्या को इसलिए नापसंद करती हैं क्योंकि वो उनकी पसंद नहीं है। सुकन्या को सुरम्य से शिकायत उसके अच्छे बेटे होने की वजह से नहीं बल्कि उसकी वजह थी, उसका बुरा पति होना। देखते ही देखते सुकन्या की शादी को एक साल बीत गया। 

शादी की सालगिरह के अगले दिन जब सुकन्या मॉर्निंग वॉक के लिए आई तो उसके हाथ मे एक डिब्बा था। मिसेज़ जोशी ने सुकन्या को देखते ही सवाल किया, " फिर कोई नया नाटक हुआ क्या? मुँह उतर गया है, आँखें लाल हैं। बता न क्या हुआ , डरा क्यूँ रही है मेरी बिटिया ?"

"आप ये गाजर का हलुआ खाइये पहले।" उसने कहते हुए मुस्कुराने की एक नाकाम सी कोशिश की।

मिसेज जोशी ने जैसे ही हलुआ खाया, उनका चेहरा खिल गया, हलुआ बहुत ही स्वादिष्ट था। 

" आज तक मैंने इतना स्वादिष्ट हलुआ नहीं खाया। तूने बनाया ?अपने पापा के लिए और ले आना, ये तो मैं अकेले खाऊँगी भई।"

इतनी तारीफें सुन के सुकन्या अपने आँसू रोक न पाई। 

" कल मैंने सुरम्य के बचपन के दोस्त को सपरिवार बुलाया था। पूरा खाना मैंने अकेले बनाया, टेबल सजाई, घर की भी साफ सफाई की। सबके सामने , सासु माँ ने बोल दिया, कि खाना बनाना नहीं आता तो बाहर से मंगवा लेती। इतना बेस्वाद खाना सबको खिलाने की क्या आग लगी थी।" वो रोये जा रही थी, " क्या बीते एक साल में मैंने इनके साथ कुछ भी अच्छा नहीं किया ? सबके सामने बेइज़्ज़ती कर के, मेरी पहली सालगिरह खराब कर के इनको क्या हासिल हुआ होगा?"

"सुरम्य ने कुछ नहीं कहा ?" मिसेज जोशी ने पूछा।

" कहा न, माँ के हाथ के खाने की बात ही अलग है। उनके हाथों में जादू है। खाना तुमने भी अच्छा बनाया है। साल भर में अपनी सास से काफी कुछ सीख गई हो।" सुकन्या की आँखों में गुस्सा साफ झलक रहा था। ऐसे नाज़ुक वक़्त पे मिसेज जोशी ने उसे कुछ न समझाना ही बेहतर समझा। बस उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर हौसला रखने की हिदायत आँखों ही आँखों में दे दी। शायद उसकी माँ अगर आज होती, तो वो भी ऐसे ही उसको समझातीं। मिसेज जोशी और सुकन्या के बीच पसरे सन्नाटे को सुकन्या ने खुद तोड़ा। 

" पता है माँ, मेरी नानी कहती हैं कि कुछ लोग उपजाऊ मिट्टी के जैसे होते हैं, उनके सम्पर्क में जो भी आता है, वो पनप जाता है, फल फूल जाता है, जैसे कि आप। आपसे मैंने कितना कुछ सीखा है। कुछ लोग वट वृक्ष जैसे होते हैं, उनके नीचे कुछ नहीं पनपता है। मेरी सास शायद मेरे जीवन का वट वृक्ष हैं। इनके नीचे कोई पनप ही नहीं सकता। इनकी विशाल स्वरूप सिर्फ इनके लिए है। ये किसी को खुद से ऊँचा कद कभी नहीं लेंने देंगी।"

सुकन्या अपने दिल का दर्द शब्दों में बयान करती रही और मैं एकटक बस दूर खड़े उस विशाल वट वृक्ष को देखती रही। उस वट वृक्ष का अकेलापन आज मुझे समझ में आ रहा था। ये उसकी किसी अपने नीचे न पनपने की प्रवृत्ति ही थी, जो उसको सबसे दूर, एकदम अकेला हो जाने पे मजबूर कर रही थी। मैंने मन ही मन प्रण लिया कि मैं हमेशा उपजाऊ मिट्टी ही बनूँगी, वट वृक्ष नहीं।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract