*वसूली*
*वसूली*
गांव के विश्वनाथ भैया अपने पैसों की वसूली में बडे़ माहिर थे। मजाल थी कि कोई उनका एक पैसा भी दबाले। वैसे भैया कभी-कभी नरम दिल भी हो जाते थे लेकिन, वो नरम दिली किसी को पसंद नहीं आती थी। मसलन-भाभी ने कहा मुझे दो-तीन साड़ियां चाहिए बस आनन -फानन विश्वनाथ भैया दो दर्जन एक ही रंग -डिजायन की साड़ी ले आते और भाभी को हिदायत देते अब दो साल तक साड़ी के लिए न बोलना। भाभी माथा पकड़ कर बैठ जातीं। हर सामान के लिए भैया ऐसा ही करते। लेकिन भैया बस पैसा नहीं देते। अब तो भाभी भी चालांक हो रही थीं, ज्यादा सामानों को बेचकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करतीं।
भैया के पिताजी बहुत बडे़ जमींदार थे , अतः वसूली का काम जोर-शोर से चलता था और इसके लिए विश्वनाथ भैया सबसे लायक व्यक्ति थे। ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे पर, दुनियावी ज्ञान उन्हें बहुत था। एक बार किसी नाई ने उनसे बहुत पैसा वसूला था हजामत करने के दौरान। उस समय भैया ने उसे पैसे तो दे-दिया पर उनके दिमाग में नाई से पैसे वसूलने की खलबली मच गई।
विश्वनाथ भैया एक दिन दूसरे गांव से वसूली करके लौट रहे थे अचानक उन्हें उस नाई की याद आई और अपने ज्यादा दिये हुए पैसे भी याद आये। वे नाई की दूकान में गये और उससे बाल काटने को कहा। नाई ने पूछा कौन सा कट काटूं?भैया ने कहा धर्मेंद्र कट काटों। नाई ने अपनी कैंची थोड़ी इधर-उधर की और कहा लिजीए कट गया। भैया ने आइने में अपने को देखा और कहा ,"अच्छा नहीं लग रहा है राजेश खन्ना कट काटों।
नाई ने फिर अपने हाथों की कला दिखाई और कहा," काट दिया" भैया ने फिर अपना चेहरा देखा और कहा बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा। ऐसा कह-कह कर उन्होंने सारे फिल्मी हीरो के नाम ले लेकर अपने बाल कटवाये। अब कटते-कटते बाल थोड़े से रह गये थे और बेतरतीब भी हो गये थे। नाई भी थक गया था। पाँच घंटे बाल काटते-काटते हो गये थे लेकिन मोटी रकम की आशा में शांत था।
अंत में भैया ने कहा अच्छा नहीं लग रहा तुम मेरा मुंडन ही कर दो। नाई ने उनका मुंडन कर दिया। भैया ने उसे दो रूपए दिए नाई ने उनसे पांच सौ रुपया की मांग की बस भैया ने चिल्ला-चिल्ला कर लोगों को जमा कर लिया और कहा-,"देखिए इस नाई को बाल मुड़ने के पाँच सौ रुपए मांग रहा है। लोगों ने दूकानदार को धमकाया और विश्वनाथ भइया का गुस्सा कम किया। भैया यह कहते हुए दुकान से निकले," साले ने मुझसे ज्यादा पैसा लिया था।