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Shahwaiz Khan

Abstract Fantasy Others

3  

Shahwaiz Khan

Abstract Fantasy Others

वरदान 2

वरदान 2

4 mins
8

दरबार सज चुका था, सारे राज्य से लोग दूर दूर से आज दरबार मे होने वाले बन्दर के तमाशे को देखने आ चुके थे

  कुछ ही देर में बाज़ीगर की वेशभूषा में शिकारी भैरो सिंह व उसका पुत्र धरम सिंह अपने कन्धे पर बन्दर को बिठाए दरबार में हाज़िर हो गया था उसके कुछ देर बाद सिंहासन पर रानी केतकी और राजा गणेशमान के शरीर में छुपा भानू प्रताप सिंह आकर बैठ गए, रानी केतकी ने अपने दुशाले में एक मृत कबूतर को छुपा रखा था जिसे उसने मदारी की वेशभुषा पहने शिकारी भैरो सिंह को दिखा दिया था, इशारा पाते ही अपने साथ लाए बन्दर के कान में उसने बता दिया, इधर राजा ने तमाशा शुरू करने का आदेश दे दिया, इस पर भैरो सिंह ने कहा "महाराज की जय हो- सरकार लम्बा सफर करने से मेरा बन्दर थोड़ा थक गया है अगर आज्ञा हो तो कुछ पल में उसको अपनी गोद में विश्राम करने दूँ" ये सुककर दरबार में जोर का ठहाका गुजाँ,

  " ठीक है" राजा ने कहा और भैरो सिंह ने बन्दर को अपनी गोद में बैठाकर और आँखो पर हथेली रखकर मन्त्र पढ़ने को कहा ताकि वो अपने प्राण रानी केतकी के पास मृत कबूतर में स्थानंतरण कर सके और ऐसा ही हुआ पलक झपकते ही राजा गणेशमान ने अपने प्राण बन्दर के शरीर से रानी केतकी के पास मृत कबूतर में पहुँचा दिए, कबूतर जीवित हो उठा और इधर बन्दर बिना प्राण के मृत शरीर में बदल गया, सब कुछ तय योजना के साथ हुआ था और अब शिकारी भैंरो सिंह का अभिनय शुरू हो गया था- " हे ईश्वर ये तूने क्या किया मेरे प्यारे बन्दर को क्यूँ ले लिया कम से कम इतनी तो इतना तो इसको जीवन देता की राजा रानी का मनोरंजन हो जाता- हे नाथ... प्राणनाथ"

 सब अवाक थे आखिर एक हष्टपुष्ट बन्दर पलक झपकते ही कैसे मर गया

  रानी केतकी दुखी हो कर आँसू बहाने लगी

  " महारानी आप ना रोए" ये शाही महाऋषि थे " आज आपका जन्मदिन है... आजके दिन आपका रोना अशुभ होगा"

  " केतकी तुम क्यूँ अपना मन दुखी करती हो जो होना था हो गया" राजा बोला

  " नही महाराज आज मेरा बन्दर के तमाशा देखने का बहुत मन था"

  " हम जानते हैं... और इसलिए हमने ये सब कराया था जबकि आप जानती है हमने अपने राज्य में एक भी बन्दर जीवित नही छोड़ा है, ये तमाशा कराने के लिए भी दूर दूर मनादी कराई थी तब जाकर ये बाज़ीगर मिल पाया था"

  " आप चाहे तो अब भी तमाशा हो सकता है" रानी केतकी बोली

  "कैसे"

  " आप तो प्राण स्थानतरण करना जानते हैं"

  "तो"

  "तमाशा देखने भर तक के लिए क्या आज हमारे लिए ऐसा करके इस बन्दर को जीवित देखने दीजिए"

  "मगर" राजा इन्कार करना चाहता था फिर सोचा कि भला रानी मेरे साथ कैसे छल कर सकती हैं ये तो वो मन्त्र जानती ही नही इतना सोचकर राजा मान गया,

  पूरे दरबार में एकाएक सन्नाटा छा गया क्योंकि आज वो अपने राजा को उस चमतकार को करते देखेंगे जिसके बारे में सिर्फ़ उन्होंने सुना था आज वो चमत्कार साक्षात उनके सामने होने जा रहा था,

  "जब हम अपने प्राण बन्दर के शरीर में डाल दें और वो जीवित हो जाए, जब तक तुमको जीवित देखना चाहो तब तक हम अपने प्राण उसके शरीर में रखेगे उसके बाद तुम हमारी आँखों पर अपनी हथेली रख देना ताकि हम वापस अपने शरीर में अपने प्राणो को कर ले" राजा ने अपने प्राण स्थान्तरण करने से पहले रानी से कहा,

  "ठीक है" रानी ने कहा और फिर राजा ने मन्त्र पढ़ना आरम्भ किया मन्त्र पूरा होते ही राजा के शरीर से भानू प्रताप सिंह के प्राण बन्दर में समा गए और बन्दर के मृत शरीर ने आँखें खोल दी!

  ये देखते ही रानी ने अपनी गोद में छुपाए कबूतर की आँखों पर हाथ रख दिया, कबूतर के शरीर में समाए राजा गणेशमान ने मन्त्र उच्चारण कर अपने प्राण कबूतर के शरीर से अपने शरीर में कर लिए और वो जीवित हो उठे!

  राजा गणेशमान को जीवित होता देख बन्दर के शरीर में भानू प्रताप सिंह के प्राण थर्रा गए वो समझ गया कि उसके साथछल हुआ,

  दरबार में मौजूद सभी दर्शक बने इस माजरे को देखकर हैरान थे और उनकी हैरानी राजा गणेशमान ने भानू प्रताप सिंह की करतूत सबको बताकर शांत की , जिसे सुनकर दरबार में हर तरफ़ एक ही सुर में सब बोल उठे-

   " इसको ज़िन्दा मत छोड़ो- इसको फॉसी दो-ये पापी है- ग़द्दार है"

  राजा गणेशमान ने वही किया जो प्रजा चाहती थी और शिकारी भैरो सिंह और उसके पुत्र धरम सिंह को अपना सेनापति बना लिया!       

इस तरह राजा को मिला वरदान रूपी वो मन्त्र एक सजा बन गया था मगर अंत में उसी वरदान से उन्हें सब वापिस भी मिल गया!


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