दुष्टा
दुष्टा
ज़बरदस्त एक्शन के साथ क़ातिल ने अपने शिकार को दबोच कर चाकू से उसका काम तमाम कर दिया और फिर टाँग पकड़ कर खींच कर उसको गाड़ी में ठूस दिया।
गाड़ी एक कब्रिस्तान के आगे जाकर रुक गई, क़ातिल ने लाश को घसीटते हुए बाहर खींचा और साथ लाये कुदाल से गड्ढा खोदने लगा!
कुछ देर में गड्ढा खुद गया अब क़ातिल ने लाश को गड्ढे में धकेला और ऊपर से मिट्टी डालकर गड्ढा भरके ऊपर से मिट्टी को समतल कर दिया!
काम पूरा कर जब क़ातिल ने वहाँ से जाने के लिए क़दम बढ़ाया तभी उसके पैर को लाश के पंजे ने जकड़ लिया जिसे देखकर क़ातिल चीख मारकर गिर पड़ा...ये एक हॉरर मूवी का सीन था!
टिंग टोंग
डॉर बैल सुन कर ताशी ने दरवाज़ा खोला सामने शेखर और युसुफ़ थे
" तू अभी तक रेडी नही हुआ" शेखर बोला
"ये है ही नैस्ती...जब देखो फ़िल्म देखता रहता है" युसुफ़ कहता हुआ सोफ़े पर बैठ गया
"तुम बैठो मैं दस मिनट में रेडी होकर आता हूं" ताशी कहता हुआ सीधा बाथरूम में घुस गया और शेखर फ्रिजर में कुछ खाने के लिए ढूँढने लगा
ताशी,युसुफ़ और शेखर एक प्रोडक्शन कंपनी में जॉब करते थे ताशी क्रियटिव डिपार्टमेंट में था शेखर और युसुफ़ मार्केटिंग डिपार्टमेंट में थे इस बार तीनों ने वीकेंड पर लॉन्ग ड्राइव का प्लान बना रखा था!
आज मौसम भी सुहाना था तीनो दोस्त मौसम का मज़ा लेते हुए शहर से काफ़ी दूर आ गये थे, ताशी ड्राइव कर रहा था, गाड़ी में स्लौ धुन पर मैडोना का सॉन्ग चल रहा था "यार कहीं रोक...बढ़िया सी जगह पर कुछ खाते पीते हैं" ये युसुफ़ था
" सिर्फ खाने के लिए" शेखर ने चुटकी ली " या पीने के लिए"
तीनों हँस पड़े
तभी "अरे यार वो देख" सड़क से दूर दिखाई दे रहा पुराने कंस्ट्रकशन की तरफ़ देख ताशी बोला "क्या मस्त जगह है यार...क्या फोटो आयेंगे...चलें"
शेखर और युसुफ़ भी राज़ी हो गए और ताशी ने गाड़ी उस ओर घुमा दी।
ये अंग्रेजी ज़माने का पुराना रिर्जोट था जो वक्त के थपेड़ो से अब जर्जर हुआ बस खड़ा रह गया था
"बहुत पुराना लगता है" युसुफ़ मोबाईल से फोटो लेता हुआ शेखर से बोला
"हाँ यार" तब तक ताशी भी गाड़ी को खड़ी कर उनके पास आ गया था।
"चलो इधर उधर देखते हैं और क्या है यहाँ"
तीनों रिर्ज़ोट के पीछे आ गये जहाँ कभी बड़ा सा तालाब हुआ करता होगा जो अब सिर्फ़ आकार में रह गया है मगर पानी के नाम पर कही कही कुछ बरसात का पानी रुका रह गया है
"यार यहाँ अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ है" युसुफ़ ने शेखर से कहा, ताशी उनसे कुछ दूर इधर उधर के फोटो ले रहा था।
"ले बीयर पी...तेरा डर निकल जायेगा" शेखर ने बेग से एक अपने लिये और एक युसुफ़ को बीयर देते हुए कहा
दोनों एक पेड़ के साये में बैठ गये
"ताशी को भी बुला ले" युसुफ़ ने शेखर से कहा
"आ जायेगा...तू पी"
ताशी को फोटोग्राफ़ी का बेहद शौक था ऊपर से उसे ये जगह भी बहुत युनिक और ऐन्टिक लगी ,फोटो लेता हुआ ताशी रिजोर्ट के जिस हिस्से में पहुँचा वहाँ उसे सामने एक दरवाज़ा दिखा वो उस तरफ बढ़ गया।
बीयर पीकर शेखर और युसुफ़ पेड़ से कमर लगाये सिगरेट पीते हुए हेडफोन पर म्युज़िक का आनन्द लेने लगे थे,
इधर ताशी ने दरवाज़े को जैसे ही खोला उसे अन्दर से रूह कपाँ देने वाली अजीब सी आवाज़ आने लगी, मानो कोई मन्त्रो का जाप कर रहा हो और उसके साथ में एक गुर्राहट भरी हुंकार की आवाज़ भी साथ में आ रही थी, वो पलटा और वापस आकर दरवाज़ा खोलने की कोशिश करने लगा मगर दरवाजा जाम हो चुका था और आवाज़े थी के बढ़ती ही जा रही थी, मारे खौफ़ के ताशी थर थर काँपने लगा था, उसने काँपते हाथों से ताशी ने अपने दोस्तों का नम्बर मिलाना चाहा मगर फोन में नेटवर्क नहीं था!
इधर हैडफोन पर म्युज़िक सुनते युसुफ़ को एक पत्थर आकर लगा तो वो हड़बड़ाकर उठा और हेडफ़ोन कानों से हटाकर इधर उधर देखा तो दूर सड़क पर एक दिहाती खड़ा था, पत्थर उसी ने मारा था और अब वो हाथ के इशारे से पास बुला रहा था, युसुफ़ ने शेखर को उठाया जो लगभग आँखें बन्द करके सो ही चुका था, शेखर उठा तो युसुफ़ ने उस दिहाती की तरफ इशारा करके उसे बताया-
"साले ने पहले पत्थर मारा मुझे और अब बुला रहा है"
"चल देखते हैं क्या सीन है" शेखर बोला
दोनों उसकी ओर बढ़ गये
" यहाँ से चले जाओ..." पास पहुँचते ही दिहाती ने उनसे कहा "यहाँ दुष्टा चुड़ैल दफ़न है उसकी रूह आज भी यहाँ भटकती है... जाओ नहीं तो मारे जाओगे" सिर्फ़ इतना कहकर दिहाती अपनी बकरियों को हाँकता हुआ आगे बढ़ गया मगर शेखर और युसुफ़ को अचम्भे में खड़ा छोड़ गया दोनों ने एक दूसरे को देखा और एक साथ बोले-
"ताशी... ताशी कहाँ है"
वो दोनों ताशी को ढूँढने रिर्ज़ोट की तरफ़ दौड़े।
अन्दर रिर्ज़ोट में ताशी के सामने जो मन्ज़र था उसको देखने की उसने कभी कल्पना भी नहीं की होगी,
शैतान रूपी राक्षस की प्रतिमा के सामने एक सड़ी गली बदबूदार भयानक चेहरे वाली चुड़ैल की लाश पड़ी थी और एक खूंखार सा दिखने वाला तांत्रिक बड़ा सा हवन जलाये मन्त्रों का उच्चारण कर रहा था-
"हे शैतान... में तेरा भक्त हूँ...में तेरी हुकूमत को फैलाना चाहता हूं...फिर से दुष्टा में प्राण फूँक...बीस साल...बीस साल से में तेरी पूजा कर रहा हूं.. दुष्टा के लिए जीवन माँग रहा हूं...दुष्टा को फिर वही शक्ति दे...हे शैतान... जिन्होंने दुष्टा को मारा था उन इन्सानों को चैन से जीने मत दे...हे शैतान अपनी शक्ति का चमत्कार दिखा... चमत्कार दिखा"
जिस कोने से खड़ा होकर ताशी ये सब देख सुन रहा था वहाँ पास में रखा एक पुराता सा वास उससे टकराकर गिर पड़ा जिसकी आवाज़ दूर तक फैल गई जिसे तांत्रिक ने साफ़ सुन लिया और ताशी को वहाँ देख लिया!
वो हवन से जलती हुई लकड़ी लेकर ताशी की तरफ़ लपका, ताशी वहाँ से भाग खड़ा हुआ, वो ऊपर जाती हुई सीढ़ियों से ऊपर जा पहुँचा पीछे दौड़ते आते हुए तांत्रिक के कदमों की आहट उसे साफ़ सुनाई दे रही थी
ऊपर पहुँच कर उसने वहाँ लगी विन्डो से बाहर देखा तो उसे शेखर और युसुफ़ नज़र आ गये
वो चिल्लाकर उन्हे पुकारने लगा
शेखर और युसुफ़ ने उसे देख लिया
वो समझ गये थे कि ताशी जरूर किसी मुसीबत में फंस गया है, वो दौड़ते हुए रिर्ज़ोट में गये और अन्दर जाने वाले बन्द दरवाज़े पर पहुँचे और पूरी ताक़त लगाकर उसे खोलने की कोशिश करने लगे!
तांत्रिक ताशी को मारने के लिए आतुर था वो उसपर जलती हुई लकड़ी से हमला कर रहा था और ताशी जैसे तैसे करके अपनी जान बचा रहा था, तांत्रिक काफ़ी हष्टपुष्ट था आखिरकार उसने ताशी को अपने कब्जे में ले लिया-
" दुष्टा आज बरसो बाद अपने शरीर को पायेगी और सबसे पहले तेरा खून पीकर शैतान को खुश करेगी" तांत्रिक ने ये कह ताशी को घसीटते हुए हवन की तरफ ले जाने लगा और फिर हवन के पास ले जाकर उसको पटक दिया,
"जागो दुष्टा...जागो" कहते हुए पास में रखा बड़ा सा धारदार गंडासा उठाकर ताशी का सर धड़ से अलग करने ही वाला था के पीछे से शेखर ने उसके सर पर बड़े से पत्थर से वार कर दिया उसके हाथ से गंडासा छूट गया और वो सर को पकड़े हुए गिर पड़ा
शेखर युसूफ ने ताशी को संभालते हुए खड़ा किया,
तांत्रिक दर्द से कराह रहा था और उनको घूर भी रहा था
"तुम बचोगे नहीं... दुष्टा तुम्हें नहीं छोड़ेगी"
" भागों यहाँ से" ताशी ने कहा और तीनों दौड़ते हुए वहाँ से बाहर लपकें, ताशी ने आनन फ़ानन में गाड़ी स्टार्ट की और सरपट दौड़ा दी, रिर्ज़ोट के अन्दर ज़ख़्मी तांत्रिक अपने जिस्म की सारी शक्ति समेटकर फिर से उठा, उसके सर से बहते खून ने उसके बेहद ख़ौफ़नाक बना दिया था, अपने दोनों हाथ ऊपर हवा में लहराता हुआ वो लड़खड़ाता हुआ हवन के पास पहुँचा जहाँ अभी भी चुड़ैल दुष्टा का मृत शरीर पड़ा था-"हे शैतान में अपनी तमाम शक्तियों को दुष्टा को सौंपता हूं" ये कहता हुआ वो जलते हुए हवन में बैठ गया धूँ धूँ करके उसके शरीर में आग फैलती चली गई मगर उसने उफ़ तक नहीं की, मृत दुष्टा के पैर एकाएक फड़फड़ाए, फिर उसके नाक के नथुने उसके साँस से फूले पिचके फिर उसकी हाथों की उँगलियाँ थरथराई और उसने आँखें खोल दी, चुड़ैल फिर से अपने शरीर के साथ जी उठी थी, जो बीस सालो से सिर्फ एक भटकती रूह बनकर इंसानों को सता रही थी अब वो अपना शरीर पा चुकी थी, तांत्रिक मर चुका था!
तीनों दोस्त ताशी के घर पहुँच चुके थे अभी भी डर उनके साथ था शेखर ने खिड़की दरवाज़े सब बन्द कर दिये थे, ताशी की हालत खराब थी उसको कई जगह चोट लगी थी, युसुफ़ मारे ख़ौफ़ के अभी भी हवा की सरसराहट से भी थर थर काँप रहा था।
"शेखर में सुबहा होते ही अपने गाँव निकल जाऊंगा" युसुफ ने कहा
"कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है" ताशी बोला "अब डरने की क़्या बात है,अब हम उसकी पहुँच से बहुत बहार है" काफ़ी देर तक इसी टॉपिक पर चर्चा होती रही जिसने जो देखा और महसूस किया बताते रहे और इसी तरह उनका डर भी अब कम हो गया था उन्हें यक़ीन हो गया था के अब वो बच गए हैं!
एक नई सुबह फिर एक नया दिन लेकर आई थी, ताशी टाइम से तैयार होकर ऑफ़िस पहुँचा था शेखर भी ऑफ़िस पहुँचा था मगर युसुफ़ नहीं आया था, शेखर ने ताशी को बताया के वो अपने गाँव निकल गया है वैसे भी उसको जाना था उसकी जल्दी ही शादी है इसलिए वो चला गया, फिर कुछ देर उन्होने बीते कल को याद किया और रात गई बात गई कहकर भुला कर काम में लग गए
शाम को ताशी ऑफ़िस से शेखर को उसके अपार्टमेंट में ड्रॉप करता हुआ अपने घर को निकल गया
आज गेट पर सेकेयूरिटी गार्ड नहीं था और लाईट भी गुल थी शेखर चलता हुआ लिफ़्ट के पास पहुँचा और लिपट का स्विच दबाया, लिफ्ट ऊपर से नीचे की ओर आने लगी और आकर उसका गेट खुल गया शेखर ने अन्दर दाखिल होकर अपने फ़्लोर का स्विच दबा दिया, लिफ्ट में एक लड़की पहले से मौजूद थी उसके बाल खुले थे उसने ब्लैक ड्रेस पहनी हुई थी जो उसकी पिंडलियों तक ही उसको कवर कर रही थी, लिफ्ट धीरे धीरे अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही थी अचानक शेखर की नज़र उसके पैरो पर गई जिसे देखकर उसके होश उड़ गए, लड़की के पैर अपने आप पिछे की ओर मुड़ने लगे थे शेखर ने जब उसका चेहरा देखा जो बहुत ही भयानक हो चला था तो वो समझ गया कि दुष्टा आ गई थी!
ताशी को सुब्हा पुलिस स्टेशन से फोन आया कि क्या वो शेखर को जानता है उसने बताया के वो उसका दोस्त हैं और हम एक ही ऑफिस में काम करते हैं तब उन्होंने बताया कि रात शेखर को लिफ़्ट में दिल का दौरा पड़ा जिससे उसकी मौत हो गई, ताशी इस ख़बर से सन्न रह गया था!
उस रात आँधी तुफ़ान के साथ बारिश हो रही थी, ताशी अपने घर में अकेला था, बिजली की गर्जन से ताशी सहम जाता था उसे बार बार शेखर का मरा चेहरा याद आ रहा था और दुष्टा, भला वो दुष्टा को कैसे भूल सकता है
" म्याँऊ" बिल्ली की आवाज़ सुनकर ताशी डर से उछल ही पड़ा तभी बिजली भी कट हो गई उसने जल्दी से मोबाइल की लाइट ऑन की और सिकुड़कर बैठ पर एक तरफ को बैठ गया उसे अहसास हुआ कि बेड़ के नीचे कोई है उसने डरते डरते बेड के नीचे झाँका मगर बेड के नीचे कोई नही था जैसे ही उसने सर उठाया उसके बेड पर दुष्टा फैल कर लेटी हुई थी कड़कती बिजली की रोशनी में वो बेहद खतरनाक लग रही थी , ताशी चीख मारता हुआ दरवाज़े की तरफ दौड़ा पर बुष्टा के लम्बे हाथों से बच नहीं पाया।
सुबह लोगों ने उसकी लाश पाँचवी मंजिल से नीचे पड़ी देखी और अनुमान लगाया खुदकुशी का!
युसुफ़ अपने गाँव में था जहाँ उसके घर में उसकी शादी की तैयारी हो रही थी, कल उसकी बारात पड़ौस के ही गाँव में जानी थी, मगर युसुफ का दिल दिमागी इन खुशियों से बाहर अब भी दुष्टा के ख़ौफ़ से ख़ौफजदा था, शेखर और ताशी की मौत की ख़बर उस तक पहुंच चुकी थी उसे अब अपनी जान खतरे में नजर आ रही थी, युसुफ़ की इस कशमकश को उसके बड़े भाई यूनुस ने पकड़ लिया उसे लगा शायद युसुफ़ इस शादी से खुश नहीं है और परेशान हैं , युसुस ने युसुफ़ को मेहमानों और रिशतेदारो से अलग ले जाकर पूछा-" क्या बात है छोटे... जबसे शहर से आया है में देख रहा हूं तू खोया खोया सा है...क्या बात है क्या तु इस शाही से खुश नहीं हैं... या कोई और लड़की है तेरी ज़िंदगी में"
भाई के पूछने पर युसुफ़ ने रिर्ज़ोट में गुजरा सारा हाल युनुस को बता दिया शेखर और ताशी के बारे में भी, सारा हाल सुन जानकर युनुस युसुफ़ को अपने साथ लेकर एक बुजुर्ग मौलाना के पास पहुँचा और सारा माजरा उन्हें बताकर अपने भाई की जान बचाने की उनसे गुज़ारिश की, बुजुर्ग मौलाना ने आँखे बन्द कर कुछ देर तक युसुफ़ का हाथ अपने हाथ में लेकर कुछ पढ़ाई की काफ़ी देर बाद उन्होंने आँखे खोली और बताया-
" जिस चुड़ैल को तुमने जिन्दा होते देखा है वो शैतान की बेटी है और जिसने शैतान से उसको जिन्दा कराने की पूजा की थी वो तांत्रिक उसका गुलाम था, वो बहुत ताकतवर है वो जब चाहेगी जहाँ चाहेगी युसुफ़ पर हमला कर सकती हैं"
"क्या उससे बचने की कोई सूरत नहीं है" युनुस अपने भाई की जान को लेकर फ़िक्रमंद था
" मैं एक तावीज दे रहा हूँ इसे अपने रूमाल में लपेटकर अपनी जेब में रखना याद रखना जब अपने कपड़े बदलो तो रूमाल को भी उसी तरह दूसरे कपड़े की जेब में रखना मत भूलना फिलहाल ये करो बाक़ी दुष्टा को वापस उसकी क़ब्र में पहुँचाने का काम आज से चार दिन बाद होने वाली अमावस की रात को करना होगा...में तुम्हें ख़बर कर दुगाँ तुम चले आना"
"मौलाना कल युसुफ़ की शादी है...कोई डरने की तो बात नहीं है ना" युनुस ने पूछा
"नहीं...जब तक ये तावीज़ युसुफ़ के साथ रहेगा दुष्टा इस पर हावी नहीं होगी"
दोनों घर लौट आए, युसुफ भी अब कुछ सुकून महसूस कर रहा था उसका डर कम हो गया था, सुबहा धूमधाम से बारात निकली और शाम को दुल्हन के साथ युसुफ़ लौट रहा था गाड़ी में युसुफ़ के साथ उसकी दुल्हन के साथ दुल्हन की मौसी भी बैठी थी बाक़ी लोग अलग अलग गाड़ियों में थे, रास्ते में मौसी ने युसुफ़ से कहा "मारिया से पुछो उसे प्यास तो नही लगी" मारिया युसुफ़ की दुल्हन का नाम था, युसुफ़ ने ड्राईवर को बोला के- "कहीं कुछ खाने पीने का दिखे तो रोक लेना"
ड्राईवर ने गाड़ी सड़क के पास बने एक रेस्टोरेंटं पर रोक दी, युसुफ़ उतर कर कोल्डड्रिकं ले आया और चलते वक्त बिल पेय करने के लिए पॉकेट से पैसे निकाले बेध्यानी में रूमाल में लिपटा तावीज भी वही गिर गया,
युसुफ़ दुल्हन के साथ घर पहुँच गया घर में दुल्हन के आने से खुशियाँ बिखर गई थी, सभी बहुत खुश थे युसुफ अपने गाँव के दोस्तों के साथ बिजी हो गया,
शाम हो गई थी, युसुफ़ को बुलाकर दुल्हन केकमरे में भेजा गया, युसुक के कमरे में पहुँचते ही उसकी भाभी ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया युसुफ़ ने बस उनकी हँसी की आवाज सुनी, युसुफ झिझकता हुआ बेड पर घूंघट किये बैठी दुल्हन मारिया के पास पहुँचा और घूंघट उठा दिया, मारिया बहुत ख़ूबसूरत लड़की थी युसुफ की पसन्द से ही ये शादी हुई थी,
"एक बात पूछे आपसे" मारिया ने युसुफ से कहा
*पुछो"
"आप शादी में बहुत परेशान से दिखे हमें... क्यूं... क्या आप खुश नहीं है"
" नही जो तुम सोच रही हो वो बात नहीं है"
"फिर क्या बात है... बताइये" युसुफ कुछ बताना नहीं चाहता था मगर मारिया के जिद करने पर उसने अपने साथ हुआ दुष्टा वाला सारा किस्सा उसे सुना दिया।
" मारिया दुष्टा ने ही शेखर और ताशी को मारा है वो तो अच्छा हुआ के मेरे पास मौलाना का दिया तावीज है वरना वो अब तक मुझे भी मार चुकी होती" युसुफ ने ये कहते हुए अपने पाकेट पर हाथ चलाया जहाँ उसने रूमाल में लपेटकर तावीज को रखा था मगर वहाँ तावीज नहीं था,
" तू वो गिरा चुका है" एक भराई हुई आवाज़ सुनकर युसुफ मारिया की ओर पलटा और ये देखकर उसकी आँखें फैलती चली गई, मारिया का कद छत से जा मिला था और चेहरा ख़ौफ़नाक हो चला था, वो दुष्टा बन चुकी थी,
युसुफ़ भागना चाहता था पर उसका शरीर पत्थर सा सख्त हो चुका था वो हिल भी नही पा रहा था और फिर दुष्टा ने अपना मुँह खोला और वो बड़ा और बड़ा होता गया इतना के युसुफ़ का सर पूरा उसने अपने मुँह में भरकर सर को उखेड़कर खा लिया युसुफ का मृत बेसिर का शरीर धम से फर्श पर गिर पड़ा, खून से सारा कमरा भर गया था, कुछ देर में मारिया का शरीर छोड़ दुष्टा जा चुकी थी और मारिया बेसुध फ़र्श पर एक तरफ पड़ी थी,
दुष्टा का खूनी खेल शुरू हो चुका था!

