कुबड़ा
कुबड़ा
आज भी बारिश नहीं रुकी थी।
तीन दिन से मुसलसल बरसात हो रही थी, इमरान दरिया के किनारे खड़ा दुआ कर रहा था कि ये बरसात रुक जाये ताकी वो मछलियाँ पकड़ने दरियाँ में जाये क्योंकि उसके पास राशन तक के लाले पड़ने वाले थे।
".इमरान..अरे ओ इमरान जल्दी आ" ये भोला था उसका पार्टनर उसका इकलौता दोस्त, वो किनारे पर नावों को बाँध रहा था अब पता नहीं क्यूं वो इमरान को बेतहाशा पुकार रहा था,
इमरान उसके पास पहुंचा तो देखा भोला ने पानी से एक लड़की को खींचकर किनारे पर डाल रखा है, जो बेहोश थी
"ये लाश है" इमरान ने पूछा ?
"नहीं जिन्दा है" भोला ने जवाब दिया " साँसे चल रही है" इमरान उसके चेहरे को देखकर पहचान करने लगा।
"तू इसे पहचाना नहीं" भोला इमरान से बोला "ये वो ही लड़की है जो सुबह सुबह जब हम मछली पकड़ने जाने के लिए नाव खोलने आते थे और ये लड़की वहाँ सामने पेड़ से बकरियो के लिए पत्ते तोड़ती हुई तुझे ताड़ती रहती थी।"
"पक्का ये वो ही है"
"और नहीं तो क्या"
"मगर ये दरियाँ में क्यूं कूदी होगी"
" हो सकता है पाँव फिसल गया हो"
"अब क्या करे हम"
" करना क्या है..." भोला बोला "इसे उठाकर अपनी खोली मे लिये चलते हैं... यहाँ पड़ी रही तो बरसात में बेहोशी की हालत में ही निबट जायेगी"
दोनों उसे उठाकर अपनी खोली पर ले आये, बुखार से उसका बदन तपने लगा था, भोला दौड़कर पड़ोस में रहने वाली बूढ़ी काकी को बुला लाया जिसने लड़की के गीले कपड़े उतारकर सूखे कपड़े पहना दिए, पर बुख़ार अभी भी नहीं उतरा था उसका,
"इसे डॉक्टर की ज़रूरत है" भोला ने इमरान से कहा तो इमरान ने भोला को घुरकर देखा और बोला-
" खाने के तो लाले पड़े हुए हैं, डाक्टर को फ़ीस कहाँ से देंगे... खुद ही ठीक हो जायेगी" कहता हुआ इमरान खोली के बरामदे में आ गया जिसके ऊपर टीन की चादर थी जिसमें छोटे छोटे छिद्रो से बूँद बूँद पानी टपक रहा था और आज भोला और इमरान को ऐसे ही रात गुज़ारनी थी,
सुबह बारिश रुक गई थी, मौसम साफ़ हो गया था, बस्ती में फिर से चहल पहल हो गई थी।
ये मछुआरों की बस्ती थी, रोज सब अपनी अपनी नावों से दरिया में मछली पकड़ने निकलते और शाम को वापस आकर मछली की मंडी में बेच देते,
भोला इमरान से पहले उठकर अपनी खोली के बाहर बैठा था तभी उसे बस्ती में रहने वाले सूफी दिखाई पड़े जो चाय की दुकान पर बैठे चाप पी रहे थे और कई लोग उनकी चापलूसी में लगे थे, भोला ने भी जाकर कुछ पैसे की जलेबी लेकर सूफी जी के सामने रखकर बैठ गया, भोला को लॉटरी खेलने का बहुत शौक था और बस्ती में सब कहते थे कि जिसको सूफी जी चाहते हैं वो लॉटरी जीत जाता है भोला को भी लॉटरी जीतना था इसी लालच में वो कब से सूफ़ी जी को देखते ही आवभगत में लग जाता था।
मगर कुछ दिनों से सूफ़ी जी मौन व्रत किये हुए थे जिसके कारण वो किसी को भी किसी बात का जवाब नहीं देते थे और आज भी वो बिना किसी से कुछ बोले उठकर अपने घर में जाकर बंद हो गये।
लड़की को होश आ गया था और अब उसकी तबीयत भी ठीक थी, जब वो उठी तो इमरान चूल्हे पर बैठा खाना बना रहा था, लड़की ने उसे हटाकर ख़ुद खाना बनाने लगी, भोला जब बाहर से आया तो खाना तैयार था।
" कहाँ रह गया था....आजा खाना खा" इमरान खाना खाते हुए बोला, भोला उसकी थाली में ही बैठकर खाना खाने लगा
" सूफ़ी जी मिल गये थे... में लॉटरी के नम्बर लेने के चक्कर में था पर वो कुछ आजकल बोलते ही नहीं" भोला खाना खाते हुए बताने लगा
अन्दर बैठी वो लड़की सूफ़ी का नाम सुनकर कुछ सकपकाई मगर उसकी ये हालत किसी ने नहीं देखी,
इमरान पड़ोस की बूढ़ी काकी को बुला लाया था घर में लाई उस अनजान लड़की से बात कराने के लिए, वो कौन है, उसका घर कहाँ है ये सब,
काकी लड़की से बात कर खोली से बाहर आई जहाँ इमरान और भोला बैठे उसका इंतजार कर रहे थे, काकी ने बताया-"नसीब की मारी है बेचारी... माँ बचपन में गुजर गई थी, बाप था बस अब वो भी चल बसा, ये ऊपर पहाड़ पर घर बनाकर रहते थे.. बाप के जाने से बेचारी क्या करती, दरिया में डूबके मरने आ गई थी।"
भोला का बहुत दिल दुखा सुनकर
"इसका नाम क्या है" इमरान ने पूछा
" सलमा"
"अब हम क्या करें इसका" इमरान ने काकी से पूछा
"अगर तू कहे तो एक काम हो सकता है" काकी बोली "देख तुझे भी आज नहीं कल ब्याह तो करना ही है इस बेचारी से कर लेगा तो इसको सर छुपाने की जगह मिल जायेगी और तुम्हें बना बनाया खाना और घर संभालने वाली मिल जायेगी"
"ये बहुत अच्छी बात बताई तुमने काकी" भोला बोला, इमरान ने पहले इनकार किया पर काकी के समझाने पर मान गया और सलमा से उसी शाम उसका निकाह हो गया,
दिनों को पंख लग गए थे, इमरान की जिंदगी में जैसे बहार आ गई थी, सुबहा वो भोला के साथ नाव लेकर निकलता और शाम को वापस आता अब उसकी किस्मत भी उसपर मेहरबान चल रही थी अब उसके जाल में दूसरों के मुकाबले ज़्यादा मछली आने लगी थी, धीरे धीरे सलमा ने घर में चार चाँद लगा दिये थे और सोने पे सुहागा इमरान अब एक चाँद से बेटे का बाप भी बन गया था, मगर पता नहीं क्यूँ उसके बदन की रंगत दिन बा दिन ज़र्द पीले पत्ते की तरह होती जा रही थी, उसे देखकर सब टोकने भी लगे थे के क्या हो रहा है तुझे पर इमरान इससे बेखबर था,
एक शाम जब इमरान ने नाव को किनारे पर लगाया तो भोला को दरिया के किनारे बैठे सूफ़ी जी नज़र आये-
" इमरान तू नाव बाँधकर मछलियाँ उतार में अभी आया"
"कहाँ जा रहा है" इमरान ने पूछा
"वो देख" भोला इमरान को सूफी जी को दिखाते हुए बोला " आज अकेले है आज तो में लॉटरी का नम्बर इनसे लेकर ही छोडूगा" भोला लगभग दौड़ते हुए सूफ़ी जी के पास पहुँच गया, इमरान अपने काम में लगा रहा!
इमरान भी काम निबटा कर सूफ़ी जी के पास पहुँच गया, भोला अभी भी अपनी बात नहीं कह पाया था क्यूकि सूफी जी ना जाने क्या कर रहे थे कभी पानी को सूंघते कभी कुछ पढ़कर इधर उधर देखते हुए बुदबुदाते " यहाँ से कहाँ जा सकती है वो" तभी सूफी जी की नज़र इमरान पर पड़ी और वो लपककर उसके पास आ गये, इमरान और भोला कुछ नहीं समझे के ये क्या हो रहा है, पर भोला बोला- " सूफी जी इसको देखो.. पता नहीं क्यूं ये पीला होता जा रहा है" सूफी जी ने इमरान का हाथ को सूंघा और फिर एक झटके से छोड़ भी दिया, जैसे उसको कोई बिजली का झटका लगा हो,
"क्या ये बीमार है सूफी जी" भोला ने पूछा
सूफ़ी कुछ ना बोल के पीछे को हटता गया और पलट कर वहाँ से तेज़ कदमों से चला गया, इमरान और भोला असमंजस में खड़े बस सूफी को देखते रह गए,
उस दिन तेज तूफान आया था, दिन में ही अँधेरा सा छा गया था, आँधी इतनी तेज़ थी के कितने ही पेड़ो को जड़ से उखाड़ फेंका था,
आज कोई भी दरिया में मछली पकड़ने के लिए अपनी नाव नहीं ले गया था, इमरान सलमा और अपने बेटे के साथ अपनी खोली में ही था और भोला को सुफी जी ने बुलाया था,
सूफी जी ने भोला को जो बताया वह सुनकर वो अवाक रह गया था उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले और क्या करे, सूफी जी बोल रहे थे-" सलमा इन्सान नहीं बल्कि जिन की बेटी है...अगर इमरान उसके साथ और रहा तो वह मर जायेगा... इन्सान और जिन एक होकर नही रह सकते... उसकी जान खतरे में है" भोला को इमरान की फ़िक हो चली थी उसे अपने दोस्त को बचाने का कोई रास्ता भी नहीं मालूम था, मायूस होकर भोला ने सूफी जी से पूछा "हम क़्या करे सूफ़ी जी"
"इमरान को बुला... अभी... जा" सूफी जी ने कहा और भोला रोबोट की तरह उठकर इमरान को बुलाने निकल पड़ा,
भोला जब खोली पर पहुँचा तो इमरान अपने बेटे को लेकर बाहर टहलाने निकला हुआ था खोली में सिर्फ सलमा थी-" इमरान कहाँ है" भोला ने सलमा से पूछा जबकि सूफी जी से ये जानकर के सलमा जिन है अब उसे उससे बहुत दहशत हो रही थी,
" क्यूं" सलमा बोली मगर ये आवाज़ उसकी नही थी, भर्राई हुई सी-" सूफ़ी के पास ले जायेगा उसे" सलमा उसे घूरती हुई बोली इतना सुनते ही भोला के डर का ठिकाना ना रहा और उसने पलटकर खोली से बाहर भागना चाहा पर सलमा ने अपनी जगह बैठे बैठे अपना हाथ लम्बा करके उसका पीछे से कॉलर पकड़कर अपनी ओर खीच लिया, भोला अब उसके कदमों में गिरा पड़ा था और डर से काँपता हुआ बोला-" मुझे छोड़ दो... मुझे माफ़ कर दो"
"सुन" सलमा ने उसके सर के बालो की मुठ्ठी भरकर बोली "अगर तू फिर कभी सूफ़ी से मिला या कुछ भी तूने इमरान को बताया... तो में तेरे हलक से तेरी ज़बान खींचकर उसी से तुझे फाँसी लगा दूंगी... समझा"
" समझ गया" और तभी दरवाजे के बाहर सलमा ने इमरान के आने की आहट सुनी और उसने भोला को एक हाथ से उठाकर सीधा खड़ा कर खिलौने की तरह सीधा बैठा दिया, भोला हक्का बक्का हैरत ज़दा बैठ गया, इमरान अपने बच्चे को गोद में लिये अन्दर आ गया और भोला को देखकर बोला-"कहाँ चला गया था... इतनी बारिश में... अब ऐसे क्यूं बैठा है..खाना खाया की नहीं"
" तुम्हारा इंतजार कर रहे थे.. भोला भाई... साथ में खाने के लिए.. क्यूँ है ना" सलमा ने कहकर भोला की तरफ़ देखा
" हाँ बिल्कुल" भोला घबराया सा बोला,
उस रात भोला को रात भर नींद नहीं आई, सलमा की जरा सी आहट भी उसे डरा देती थी वो समझ नहीं पा रहा था के इमरान को सलमा की सच्चाई कैसे बताए, इसी असमंजस में सुबह हो गई,
मौसम साफ था इसलिये इमरान ने सुबह होते ही अपने जाल को सही कर रहा था भोला भी हाथ बटा रहा था मगर आज भोला चुप था वो रात की बात को भुला नहीं था और रात भर ना सोने से उसकी आँखें भी लाल थी, कुछ देर बाद दोनो दरिया की तरफ निकल गये,
दरिया के पास पहुँचे ही थे के भोला की नज़र दरिया के किनारे बैठे सूफ़ी जी पर पड़ी जो ना जाने कब से बैठे उन्हीं का इन्तजार कर रहे थे,
आज भोला उनकी तरफ दौड़कर नहीं गया था आज सूफी जी उनके पास आ रहे थे,
"भोला.. इसको बताया सलमा के बारे में" सूफी जी इमरान के सामने खड़े होकर बोले भोला से, भोला चुप था,
इमरान सलमा के नाम से चौंका "सलमा.. क्या बात सलमा की" इमरान भोला को देखते हुए बोला
" इमरान.." सूफ़ी जी बोले " तुम्हारी बीवी सलमा इन्सान नहीं है"
" और"
" वो जिन्न है" इमरान सूफ़ी जी की बात सुनकर पहले चौंका फिर मुस्करा कर बोला
" सूफी जी वो मेरी बीवी है... मेरे बच्चे की माँ है समझे.. में आपकी इज्ज़त करता हूं इसका मतलब ये नहीं कि आप जो चाहे मेरी बीवी को कह दो... जाईये ये बेमतलब बाते उन्हें बताइये जो इन्हे मानता हो ये सब बातें में नही मानता.. में चलता हूँ.. चल भोला"
"इमरान एक बार इनकी बात सुन ले... ये ठीक कह रहे हैं" भोला ने आगे बढ़ते हुए इमरान से कहा
" भोला तू इसकी बाते मानता है में नहीं" इमरान बोला
" हाँ में इनकी बातें मानता हूं क्यूंकि इन्होने जो कहा वो सच है" भोला चीख कर बोला " सलमा इन्सान नही जिन्न है रात वो खुलकर मेरे सामने आ गई थी.. अगर तू ना आता तो वो मुझे मार डालती.. तू खुद अपनी हालत देख वो तुझे तिल तिल मार रही है" इमरान की समझ में कुछ नहीं आ रहा था के वो क्या बोले क्यूँकि को जानता था भोला झूठ नही बोलता है,
" वो जिन्न है" अब सूफ़ी जी बोले " ये दरिया उसका ठिकाना था. उसके पूरे ख़ानदान को में अपनी गिरफ्त में ले चुका हूं... और इसकी तालाश में था... जब मैने तुझे देखा तो में तेरी हालत देखकर समझ गया के वो जिन्न तेरे घर में पनाह लेकर इन्सानी रूप में तेरी बीवी बनके रह रही हैं.. उसके चंगुल से मुक्त होना बहुत मुश्किल है मगर नामुमकिन नहीं"
" मगर... मगर मुझे अभी भी यकीन...." इमरान के मुंह के लफ्ज़ पूरे भी नही हुए थे की सूफी जी बोल पड़े " ठीक है तेरा यक़ीन में बनाता हूँ तू आज रात सोने से पहले घर में किसी भी बर्तन में पानी मत छोड़ना सब बहा देना... और जब सारी बस्ति सो जाये तो उससे पानी मांगना अगर वो तुझे पानी पिला दे तो समझ लेना कि वो जिन्न है और मेरे पास आ जाना अगर ना पिला सके तो मत आना" इतना कहकर सूफी जी चल दिये उनके पीछे पीछे भोला भी चल पड़ा,
सारा दिन इमरान ने दरिया के किनारे यूँ ही भटकते हुए गुज़ारा आज उसने अपनी नाव भी नही खोली थी, उसे शाम होने का बेसब्री से इंतजार था, भोला उसे छोड़कर सूफी जी के साथ चला गया था,
शाम हुई और जब अन्धेरा अपने पाँव पसारने लगा तब इमरान घर की तरफ चल पड़ा, जब वो घर पहुँचा तब सलमा नहाकर निकली थी, उसके लम्बे घने स्याह बाल खुले थे, इमरान उसको चोरी चोरी निहारने लगा, वो बला की ख़ूबसूरत थी, इमरान सोचने लगा क्या वाकई ये जिन्न है कितनी मासूम लगती है ये, कुछ देर में सलमा खाना निकाल लाई दोनो ने साथ खाना खाया और कुछ देर इधर उधर की बातों के बाद वो दोनों लेट गए, सलमा अपने बच्चे को लेकर करवट लेकर लेट गई और इमरान दूसरी ओर करवट लेकर लेट गया, धीरे धीरे रात आगे बढ़ने लगी बाहर कुत्ते भौक रहे थे, इमरान ने धीरे से सलमा की ओर करवट बदल कर देखा वो बेख़बर सो रही थी, वो उठा और खोली के बाहर गया और जाकर मटके का सारा पानी बहा दिया फिर उसने तसल्ली से जहाँ जहाँ पानी रखा था सब बहा दिया और फिर वापस आकर अपनी जगह लेट गया,
आधा घंटा वो शान्त ऐसे ही लेटा रहा फिर उसने अपनी आवाज़ को नींद में होने जैसी बनाकर सलमा को पुकारा एक दो बार मे सलमा उठ गई-
"हाँ"
" सलमा पानी लाना"
" लाती हूं" वो उठकर बाहर मटके के पास आई मगर मटका खाली था फिर उसने डब्बों में बाल्टी में सब जगह पानी ढूँढा पर कहीं भी उसे पानी नहीं मिला, मिलता भी कैसे इमरान ने सारा पानी बहा जो दिया था
" सलमा.. अरे पानी लाओ" इमरान ने फिर सलमा से अन्दर से कहा-"अभी लाई" अब सलमा ने देर नहीं की और अपने जिन्न होने का फायदा उठाते हुए अपना कद बड़ा किया फिर अपने हाथ को बड़ा करते हुए दरिया तक ले गई और एक जग भर कर वापस अपने पहले जैसे रुप में आ गई और इमरान के लिए ग्लास में पानी भर कर अन्दर खोली में चली आई
इमरान ने जैसे ही पानी का एक घूँट भरा वो समझ गया कि ये खारा पानी दरिया का है और सूफ़ी जी ने सही कहा था सलमा इन्सान नहीं है,
इमरान ख़ामोश बैठा था, उसके पास में भोला भी बैठा था और सूफी जी उनसे कुछ दूर बैठे आँख बन्द कर कुछ पढ़ रहे थे उनके सामने एक खुले बर्तन में सरसो के दाने भरे रखे हुए थे, कुछ देर तक ये सब चलते रहने के बाद वो रुके और सरसों के दानों से भरे बर्तन से मुठ्ठी भर कर सरसों लेकर इमरान की दोनों हथेलियों में देकर बोले-"जा.. और जाकर इस सरसों को अपने घर में जाकर छिड़क दें... वो तेरी ज़िंदगी में जहाँ से आई थी वहीं चली जायेगी"
"और मेरा बच्चा." इमरान ने फ़िक्र से पूछा
"वो तेरा बच्चा है... इन्सान का बच्चा है वो.. वो बच्चे को अपने साथ अपनी दुनिया में नहीं ले जा सकती... वो तेरे ही पास रहेगा" सूफ़ी जी ने भरोसे से कहा " भोला जा इमरान के साथ तू भी जा" इमरान अपनी बंद दोनों मुठ्ठियों से घर की ओर चल पड़ा, पीछे पीछे भोला भी था,
उन दोनो के निकलते ही सूफी जी के अधरों पर कुटिल मुस्कान तैर रही थी, उसने अपनी अलमारी खोली जो काँच के मर्तबानों से भरी थी और हर मर्तबान में धुआँ जैसा बंद कुछ दिखाई दे रहा था उसने उनमें से एक मर्तबान उठाया और बोला- "अब वो दिन आ गया है जब तेरे ख़ानदान की आख़री चराग़ तेरी बेटी को भी में अपने कब्ज़े में लेकर अपने अमल से तुम सबकी कुरबानी दूंगा और फिर में खुद इन्सान से जिन्नात बन जाऊँगा और हजारों साल के लिए अमर हो जाऊँगा" कहकर वो पागलों की तरह ठहाके लगाने लगा, उसका शैतानी इरादा जानकर मर्तबान में बंद धुएँ की शक्ल में जिन्न में हरकत होने लगी, मर्तबान में दरार आते लगी थी जिससे सूफ़ी जी अनजान थे,
इमरान ने जब अपनी खोली का दरवाज़ा खोला तो उसे सलमा उसकी तरफ़ पीठ किए खड़ी नज़र आई उसका बच्चा छत की कड़ी में बंधी रस्सी से पालने में झूल रहा था- " इमरान.. पागल मत बन" सलमा इमरान को बिना देखे बोली-"तू उस शैतान सूफ़ी को नहीं जानता... हाँ में जिन्नात हूँ पर में तुझे कोई तकलीफ़ नहीं दूँगी .. उसके कहने में आकर कुछ मत करना"
" इमरान इसकी बात मत सुन.." ये भोला था जो इमरान के पिछे से बोला - "तूने देख लिया ना.. चे ख़ुद कह रही है ये इन्सान नही जिन्न है.. तू कर जो करने आया है .. इसे मौका मत दे वरना ये हमें मार देगी" भोला अपना वाक्य पूरा ही कर पाया था कि सलमा बला की फुर्ती से पलटी और अपने लम्बे हाथ कर भोला को जकड़कर अपनी तरफ़ खींच लिया और उसे ज़मीन पर पटक कर उसके गले पर पाँव रख दिया भोला दर्द से छटपटाने लगा-
"सलमा भोला को छोड़ दें" इमरान चिल्लाया
"इसी ने तुझे मुझसे अलग होने का रास्ता दिखाया है"
इमरान ने जब देखा कि वो भोला को मार ही चुकी है तब उसने सूफ़ी जी के दिये सरसों के दाने बिखेर दिए, सलमा तड़प उठी-" इमरान नहीं... रूक जा.. इमरान मान जा... इमरान मैंने तुझे प्यार दिया है कभी कोई नुकसान नहीं पहुँचाया... इमरान में तेरे बच्चे की माँ हूँ" इमरान सब अनसुना कर सरसों के दाने बिखेरता जा रहा था, भोला मर चुका था, जैसे सरसों के दाने घर में बिखर रहे थे वैसे वैसे सलमा के जिस्म की खाल जल रही थी और वो बहुत ख़ौफनाक होती जा रही थी और फिर सलमा ने एक झटके में अपने बच्चे को अपने हाथ में उठा लिया-"इमरान रक जा वरना बहुत पछताएगा" इमरान नही रुका और बाकी बची सरसों भी सलमा पर बिखेर दी, सलमा चीख उठी, उसका जिस्म धुएँ से घिर गया, वो अपना आपा खो बैठा थी और तड़प कर उसने बच्चे को उठा लिया, इमरान जो अब खोली से बाहर की ओर निकलने वाला था सलमा ने बच्चे को भागते इमरान की पीठ पर दे मारा बच्चा इमरान की पीठ से टकरकर गोश्त का एक लोथड़ा बन कर उसकी पीठ पर चिपक गया, इमरान मुहँ के बल गिर पड़ा था साथ ही वो अपना जहनी तवाजुन भी खो चुका था,
बस्ती में अफ़रा तफ़री मय गई थी, लोग आज सूफ़ी जी के घर और इमरान के घर से आग और धुएँ का गुबार उठते देख रहे थे, बेसुध इमरान को लोगों ने आग से बचा लिया था मगर लोग हैरान थे तो इसलिए कि इमरान कुबड़ा और पागल कैसे हो गया था।

