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Shahwaiz Khan

Abstract Romance Thriller

4  

Shahwaiz Khan

Abstract Romance Thriller

मेरा साया

मेरा साया

3 mins
343

  बेटा जुगनू स्कूल जा चुका था और पति शशि कुछ ही देर पहले ऑफ़िस के लिए निकला था, राधिका अपने मोबाइल पर लगा मंगेशकर के गाने सुन रही थी बाहर आसमान पर काली घटाए अपना जाल बिछाने लगी थी, लग रहा था कि कभी भी बरसात होने लगेगी, राधिका को याद आया की उसने छत पर सुब्हा कपड़े सूखने के लिए डाले थे वो किचन से हाथ साफ़ करती हुई लगभग दौड़ती हुई छत से कपड़े उतारने पहुँची,  कड़कड़ती हुई बिजली के साथ ज़ोर की बरसात होने लगी थी, नीचे पहुंचने तक राधिका थोड़ी भीग चुकी थी, वो टावल से ख़ुदको साफ़ कर ही रही थी कि डॉरबेल की रिंग बजी, राधिका ने दरवाज़ा खोला तो सामने शशि खड़ा था , जो राधिका को देखकर मुस्करा रहा था ,

  " क़्या हुआ... ऑफ़िस नही गए" राधिका ने पूछा

  "नही.....जाना तो है... मगर किसी और के साथ... मैने सोचा इतने तुमसे मिल लूं" शशि बोला

  "अच्छा..." राधिका ने शशि को अन्दर आने की जगह देते हुए नज़ाकत से कहा.."कमाल है तुम भीगे नही..में तो छत से कपड़े लाने तक मे भीग गई" राधिका ने शशि को सोफ़े पर बैठते हुए नॉटिस किया वो भीगा नही था,

  " हाँ में घर तक किसी के छाते में पहुँचा हूँ"

  "चाय लाऊँ"

  "नही...बैठो मेरे पास" शशि ने कहा और राधिका भी सोफे पर बैठ गई, राधिका के फ़ोन में अब लता मंगेशकर का गाया गीत ' लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो...' बज रहा था,

"राधिका में कहीं जा रहा हूं" शशि ने बोला

"ऑफ़िस के काम से"

"हाँ...मगर तुम जुगनू का बहुत अच्छे से ख़्याल रखना और ख़ासकर अपना"

"ठीक है मगर ऐसा क्यूं बोल रहे हो"

 "जो बोल रहा हूं बस वो याद रखना... कैसे क्यूँ ये मत पूछो" राधिका अब चुप रही " सारे इम्पोटेट पेपर मेरे ब्लूँ सूटकेस में है... ओके...हो सकता है मुझे लौटने में देर हो जाये" ये कहता हुआ शशि जाने के लिए खड़ा हो गया,

 "शशि... आज अभी जा रहे हो" शशि ने बस हाँ में सर हिला दिया

 "कुछ कपड़े सामान साथ नही लोगे"

 "जहाँ जा रहा हूं वहाँ सब कुछ मिलेगा" शशि ये कहता हुआ दरवाज़े पर आकर रुक गया और बोला

  "राधिका में तुमसे बहोत प्यार करता हूं, में सबकुछ देख सकता हूं बस तुम्हारी आँखों में आँसू का एक क़तरा भी में नही देख सकता.... रोना मत"

 "ओके बाबा"

 " बाय"

  "बाय" शशि सिढ़ियो से नीचे चला गया और राधिका ने दरवाज़े को बंद किया ही था कि फोन की घंटी बज उठी,

 राधिका ने फोन देखा तो स्क्रीन पर शशि की कॉल आ रही थी " उफ शशि क्या हो गया है तुम्हें" ये कहते हुए राधिका ने फोन पिकअप किया "हैलो"

"हैलो" उधर से शशि की नही किसी अजनबी की आवाज थी " हाँ जी मेमसाब यो नम्बर जिनका है तुम जानो इन्हे" ये कोई गाँव का रहने वाला आदमी सा लगा राधिका को ,

"हाँ बोलिए"

 " देखिए जी इनका एक्सीडेन्ट हुआ पड़ा है डावनी रोड पे और ये गए है मर... इनकू तुम जानो तो आ जाओ जल्दी, " वो और भी कुछ बोले जा रहा था पर राधिका और कुछ ना सुन सकी और धम्म से बेहोश होकर गिर पड़ी, फोन कट गया था और अब उस पर फिर से गाना बजने लगा था...... तू जहाँ जहाँ चलेगा मेरा साया...साथ होगा... मेरा साया... मेरा साया ... मेरा साया....!


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