गुमशुदा
गुमशुदा
पहला दृश्य- शहर का साप्ताहिक बाज़ार:
गोपाल बदहवास सा भीड़ को चीरता हुआ इधर उधर किसी को तालाश रहा था, वो हर जाती हुई औरत के पास जाता चेहरा देखता और फिर तालाश में लग जाता, असल में उसकी पत्नी ललिता उससे पीछे छूट गई थी जो अब भीड़ में कहीं गुम होकर उसे मिल नही पा रही थी,उसे बहुत फ़िक्र हो रही थी क्योंकि अभी कल ही तो वो उसे गाँव से दिल्ली लाया था, वो तो शहर के अभी रास्ते ना जानती है ना पहचानती, अब कहाँ ढूँढे उसे वो ये सोच सोचकर हल्कान हुआ जा रहा था,
जहाँ रहने के लिए खोली जैसा रूम ले रखा था उसी के बराबर में ललिता का मामा भी रहता है अगर जाकर उसे बताया कि ललिता खो गई है वो तो उसकी जान ही ले लेगा सौ सवाल करेगा क़्या जवाब दुगाँ उसको, ये ही सोचते हुए और ललिता को ढूँढते हुए सूरज ढल गया शाम हुई और फिर रात होने लगी मगर गोपाल को ललिता कहीं नही मिल सकी,
दूसरा दृश्य-शहर की एक कॉलोनी में स्थित कमरा:
ठक ठक
दरवाज़े पर लगातार आवाज़ से योगेश उठकर बैठ गया
ठक ठक दरवाज़े पर फिर दस्तक हुई तो अब योगेश बिस्तर से उठकर दरवाज़ा खोलने उठ ही गया "आया भई, क़्या अब दरवाज़ा ही तोड़ेगा" दरवाज़ा खोला तो सामने गोपाल खड़ा था,
" गोपाल... क्या भई जे टाईम यहाँ काहे "
गोपाल बिना बोले अन्दर आ गया, योगेश भी दरवाज़ा बंद करके फ़र्श पर बैठे गोपाल के पास बैठ गया, योगेश और गोपाल एक ही गाँव के थे और दोनो एक ही ठेकेदार के यहाँ लेबर का काम करते थे,
गोपाल को थका हारा और मायूस सा देखके योगेश ने पूछा-" क़्या हुआ"
अब गोपाल से रहा नहीं गया और वो रोने लगा
योगेश की समझ में कुछ नहीं आ रहा था
"अरे बता तो सही हुआ क़्या"
" ललिता खो गई"
"खो गई कहाँ"
" बुद्ध बाज़ार में सामान लेने गया था वो भी साथ में थी में आगे आगे चल रहा था वो पीछे थी पता नहीं कब वो पिछे रह गई ... ढूँढ ढूँढके थक गया मगर कहीं नहीं मिली"
"अब"
"अब तू बता में क्या करूँ"
"थाने में रपट कर दे... वो जरूर ढूँढ देंगें"
"थाने" गोपाल पुलिस थाने का सुनके कुछ घबरा सा गया
"अरे डरता क्यूँ है... थाना पुलिस ऐसे ही काम करती है ,सारे गुमशुदा लोगो को वो झट से ढूँढ निकालते हैं"
"मगर..."
"अगर मगर कुछ नहीं जितनी जल्दी जाके उनको बोलेगा उतनी जल्दी ललिता मिल जायेगी.. समझा अब चल" गोपाल ने बस हाँ में सर हिला दिया और योगेश जल्दी जल्दी कपड़े पहनने लगा!
तीसरा दृश्य- पुलिस स्टेशन:
योगेश के साथ गोपाल पुलिस स्टेशन तो आ गया था मगर ज़िन्दगी में पहली बार वो थाने आया था,डरते डरते वो अन्दर तो आ गए मगर अब किधर जाये वो ये अभी सोच ही रहे थे कि दोनो को एकहवलदार ने देख लिया और उनको हाथ के इशारे से अपनी तरफ़ बुलाया, दोनो डरते डरते उसके टेबल के पास जाकर खड़े हो गए,
" हाँ... बताओ क़्या बात है" हवलदार ने पूछा
हवलदार के इतना पूछते ही गोपाल कंप्यूटर की तरह स्टार्ट हो गया और एक ही सांस में ललिता के खो जाने का पूरा क़िस्सा कह सुनाया और फिर दयनीय सा होकर हवलदार को देखने लगा जैसे कह रहा हो मेरी ललिता को जल्दी ढूँढ दो,
"कोई फोटो है उसका" हवलदार ने पूछा
योगेश ने गोपाल की तरफ़ देखा
"वो तो नही है" गोपाल ने कहा
"अबे तो हम कैसे ढूंढेगें उसे"
"मेरी फोटो है वो दे दूँ" गोपाल बोला जिसे सुनकर हवलदार जलभुन गया और चिल्लाकर बोला " तेरी फोटो को क़्या मैने अचार डालनी है... अबे तू खोया है या वो"
गोपाल डर गया और बोला " फोटो नही है उसकी"
"चल हुल्या बता" हवलदार पेपर पेन लेकर बोला
"मतलब"
" दिखती कैसी है... कोई पहचान बता"
" बहुत अच्छी है"
"बहुत अच्छी.." हवलदार गोपाल को घूरते हुए योगेश से " कहाँ से पकड़ के लाया है इसे" हवलदार ग़ुस्से में आ गया था
"साब जी ये बहुत ही परेशान हैं इसका दिमाग काम नही कर रहा है... हम आपको बताते हैं... आप पूछिए"
योगेश ने हवलदार को वो सब कुछ बता दिया जो उसने पूछा और अपना और गोपाल का पता मोबाईल नम्बर देकर वहाँ से चल दिए!
दृश्य चौथा-रात में कॉलोनी का चौक:
रात काफ़ी हो चुकी थी लगभग सभी सो चुके थे
कॉलोनी में यहाँ वहाँ से कुत्तो के भौंकने की आवाजें लगातार आ रही थी, गोपाल सर झुकाए उदास सा ललिता की याद में खोया बैठा था कुछ देर में योगेश चाय के दो ग्लास लिये आ गया, दोनो घर के बाहर मकान के चबूतरे पर बैठे चाय पीने लगे " योगेश ललिता मिल तो जायेगी ना यार" गोपाल चाय में चुस्की लेते हुए बोला
" काहे नही मिलेगी"
"पता नही कहाँ और किस हाल में होगी में तो घर जाते हुए भी डर रहा हूं उसके मामा को पता चला तो वो मुझपे राशन पानी लेके चढ़ जाएगा क्या जवाब दुगाँ में उसको"
" सुब्हा तक रूक... देखते है पुलिस क्या करती है और दिन निकलने पर हम ख़ुदसे से भी ढूँढने निकलते हैं"
तभी गोपाल के मोबाईल की घंटी बज उठी
उसने जेब से मोबाइल निकाला और नम्बर देखते ही उछल पड़ा-
"मर गया" गोपाल के मुँह से निकला
"किसका फोन है" योगेश ने पूछा
" जोगिन्दर का... ललिता के मामा का अब क्या करूं"
"मत उठा" योगेश ने हल बताया और गोपाल ने फोन नही उठाया, रिंग पूरी होकर फोन शांत हो गया मगर अगले दो पल बाद फिर बज उठा और फिर कई बार बजा मगर गोपाल ने फोन नही उठाया मगर उसको डर सताने लगा कहीं उसको ललिता के खो जाने की ख़बर तो नही हो गई है
पाँचवा दृश्य-पुलिस स्टेशन:
सुबहा 9 बजे ही हवलदार का फोन गोपाल के पास आ गया था कि तेरी घरवाली मिल गई है आके लेजा और अब गोपाल योगेश संग थाने को रहा था उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था उसके सर से कितना बड़ा बोझ हल्का हो गया था ये वो ही जानता था, रास्ते भर गोपाल योगेश पुलिस और उनके काम की तारीफ़ करते नही थक रहा था, आख़िर वो थाने पहुँच गये और सीधे हवलदार के पास जाकर खड़े हो गए, हवलदार ने गोपाल को सर से पाँव तक पहले देखा फिर सिपाही से कहा " अरे बुलाईये उनको" कुछ ही पल में गोपाल ललिता को अपने मामा जोगिन्दर के साथ आती देख रहा था,
"कहाँ थे रात भर...में पूरे बाज़ार में ढूँढ ढूँढ के थक गई, ना बाज़ार में मिले ना घर ही पहुँचे"
ललिता की ये बातें सुनकर योगेश भी दंग था
"तुझे सारे बाज़ार में ढूँढने पर जब नही पाया तो में घबरा गया और योगेश के साथ थाने में रपट लिखा कर मामा के डर से घर नही गया" जैसे तैसे गोपाल के मुँह से निकला
" और जब तू रात भर घर नही आया तो हम तेरी खोने की रपट लिखाने यहाँ आये, तेरी फोटो दिखाने पर पता चला कि तू यहा मेरी रपट लिखने आया था" ललिता बोली
"मगर तू बाज़ार से गुम कहाँ हो गई थी"
" में तुझेआवाज देती रह गई मगर तू सुनता ही कहाँ है वो तो अच्छा हुआ मुझे मामा मिल गये, में इनके साथ घर आ गई ये सोचके कि तु आयेगा तो घर ही मगर तु आया ही नहीं"
"मतलब खोया कोई नहीं और हाय तोबा खामखाँ"
हवलदार ने कहा "अब जाओ और सुन बे" हवलदार गोपाल से बोला " घरवाली का ही नही अपना भी ध्यान रखना, मुझे तुम दोनो ही खोये खोये लग रहे "
और इस तरह दो खोये आखिर मिल गये।
