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Shahwaiz Khan

Drama Crime Thriller

4  

Shahwaiz Khan

Drama Crime Thriller

पहेली

पहेली

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  शहर के शोर शराबे से बहुत दूर जयदत्त अपनी दुनिया में मगन कैनवास में रंग भरने में मसरूफ़ था, वो एक पेशेवर चित्रकार था जो बचपन के इस शौक के साथ ये हुनर उसके साथ पला बढ़ा और अब वो 63 की उम्र में अपने फ़न के उरूज पर पहुँच गया था,इस दुनिया में उसका अपना कोई साथ में नही था माँ बाप सिर्फ़ उसको इस दुनिया में लाने मात्र सहारा थे बाकी उसने उनका कभी मुँह नही देखा था उसे उसके नाना ने पाला पोसा और पढ़ाया जब वो उन्निस की उम्र तक पहुँचा तब वो भी इस नश्वर संसार को अलविदा कह गए और वो फिर से अकेला रह गया!

   पच्चिस की उम्र में उसकी ज़िंदगी में बहार बनके रोज़ी आई जो एक जर्नलिस्ट थी, रोज़ी से उसकी पहली मुलाक़ात एक आर्ट सेमिनार में हुई थी, पहली ही मुलाक़ात में दोनो मे नज़दीकिया बढ़ गई और दोनो एक दूसरे की तरफ़ खिचे चले गए, प्यार की इस राह पर चलते हुए दोनो शादी की मन्ज़िल तक आख़िर पहुँच ही गये,

  जयदत्त की ये ख़ुशी ज़्यादा दिन तक सलामत ना रह सकी, जयदत्त अपने स्ट्रगल दौर में था उसके बनाए चित्र अभी क्यूरेटर की नज़रों से बहुत दूर थे, रोज़ी रॉयल लाईफ जीने में यक़ीन रखती थी अब वो इस रिश्ते में घुटन महसूस कर रही थी और एक दिन उसने जयदत्त का घर छोड़ अपनी माँ के घर गोआ बसने के लिए क़दम बढ़ा दिया, रोज़ी ने जयदत्त को ये तक बताना ठीक नहीं समझा की वो पिता बनने वाला है, रोज़ी को उसकी ज़िंदगी से गये इक्किस साल गुज़र गए थे मगर रोज़ी ने पलट कर नही देखा था, जयदत्त अपने चित्रों की दुनिया में डूब गया था

  आज आसमान में बादल छाए हुए थे ठंडी हवाओं के झोकों से पेड़ झूम रहे थे दूर एक गडरियाँ भेड़ बकरियों के झुंड को चरा रहा था और इसी मन्ज़र को जयदत्त अपने कैनवास पर उकेर रहा था

  पैन्टिंग अपने आख़री पड़ाव पर पहुँच चुकी थी कुछ ही देर में पूरी भी होने वाली थी कि अचानक दाँए तरफ़ कुछ दूरी पर एक गाड़ी बहुत तेज़ी के साथ मुड़ी जिससे उसका संतुलन बिगड़ गया और वो बहुत तेज़ आवाज़ के साथ पलट गई, जयदत्त जंगल से ये सब साफ़ देख पा रहा था,गाड़ी से सिर्फ़ एक ही आदमी बाहर आ पाया बाक़ी दो उल्टी पड़ी गाड़ी में निढाल से ख़ून से सने पड़े थे, बाहर आये आदमी के चेहरे पर मंकी कैप लगा था, वो जैसे तैसे बाहर आया फिर उसने गाड़ी से एक बैग बाहर खींचा जो कि काफ़ी भारी लग रहा था, जयदत्त ये सब एक पेड़ की ओट लिए सब देख रहा था,

दूसरा दृश्य-समाचार

  आज के न्यूजपेपर की सुर्खियों में मोटे मोटे अक्षरों में लिखा था कि भारत बैंक के लॉकर तोड़ लूटेरे पाँच करोड़ की ज्वैलरी और कैश ले उड़े साथ में लिखा था कि जब पुलिस उनका पीछा कर रही थी तब शहर से दूर खण्डरों के पास जंगल से गुज़रने वाली सड़क पर लुटेरों की गाड़ी का एक्सीडेन्ट हो गया जिससे दो मौक़े पर दम तोड़ गए बाकी एक ने भागने की कोशिश की मगर ज़ख़्मी होने की वजह से वो भी मरा हुआ मिला, 

   उसकी लाश मौका ए वारदात से कुछ दूर जंगल में खण्डरों के पास एक पानी के तालाब के पास मिली, मगर आश्चर्य की बात ये है कि पुलिस को गाड़ी से तीन करोड़ की ज्वैलरी तो बरामद हो गई मगर दो करोड़ की ज्वैलरी गायब थी जबकि मौक़े पर जब एक्सीडेंट हुआ तब कोई मौजूद भी नहीं था और तुरंत पुलिस भी पीछा करते हुए उन तक पहुंच गई थी, फिर सवाल था कि दो करोड़ की ज्वैलरी कहाँ गई!

तीसरा दृश्य: पुलिस मुख्यालय

  आई यू ऑफ़ीसर रमाकान्त रेड्डी केस और लुटेरो के शवों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट अपने सिनियर ऑफिसर मिस्टर भट्टी के सामने रखते हुए बोला "सर कुल तीन लोग थे जिन्होनें लूट को अन्जाम दिया, तीनों ही शातिर क्रिमिनल की लिस्ट में आते हैं"

    " ओके" मिस्टर भट्टी संजिदगी से सब सुन रहे थे

    "पुलिस से बचने के लिए तीनो एक ही गाड़ी से फ़रार हुए और जब एक्सिडेन्ट हुआ तीनों एक साथ थे दो ऑन द स्पॉट ही खत्म हो गए बाक़ी एक की मौत का कारण सिर्फ़ एक्सीडेन्ट नही था"

     "मतलब"

     "मतलब ये सर इस पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार एक लुटेरा जख्मी हालत में गाड़ी से निकल कर भागने में सफल हो गया था चुँके वो भी जखमी था इसलिये वो ज़्यादा दूर नही जा सका हमें उसका शव घटनास्थल से कुछ दूरी पर जंगल के खण्डरों में एक तालाब के पास बरामद हुआ है और सर उसकी मौत गोली लगने की वजह से हुई है"

     "व्हाट" मिस्टर भट्टी चौंके "तो क्या कोई उनका चौथा साथी भी था"

     "हो सकता है और यह भी हो सकता है कि उसकी किसी ने हत्या कर उसको लूट लिया हो क्योंकि कुल लूट पाँच करोड़ की ज्वैलरी की हुई थी मगर हमें गाड़ी से तीन करोड़ की ज्वैलरी ही बरामद हो पाई है मगर अभी भी दो करोड़ की ज्वैलरी लापता हैं"

    " रमाकान्त" भट्टी ने आदेश देते हुए कहा "इस केस की तह तक जाओ और ज्वैलरी और उस हत्यारें को ढूँढ निकालो"

   " ओके सर" रमाकान्त ने कहा और फाईल लेकर दरवाज़े से बाहर चला गया!

चौथा दृश्य- चित्रकार का घर बनाम स्टूडियों

  जयदत्त को लगातार बीस घंटे हो चुके थे अपने घर कम स्टूडियो में पेन्टिंगस करते हुए, पता नहीं उसे किस बात की जल्दी थी कि उसका ब्रश तभी रुका जब उसने वो चार मास्टरपीस लैंडस्केप पेन्टिंगस का सेट नही बना दिया,अब वो उन पेन्टिंगसो को निहार रहा था और बुदबुदा भी रहा था 

 " रोज़ी हम ग़रीब नही रहे... तुम्हें दौलत चाहिए थी ना... में ले आया हूँ...अब इसे सिर्फ तुम ही ढूँढ सकती हो.. में रहूँ ना रहूँ" और ये बुदबुदाते हुए वो कुछ लिखने बैठ गया!

पाँचवा दृश्य:

  वक़्त का पहिआ कभी किसी के लिए नही रुका है जयदत्त ने रोज़ी को कई ख़त लिखे पर उसने किसी ख़त का कोई जवाब नहीं दिया,इधर पुलिस ऑफ़िसर रमाकान्त रेड्डी इन्वेस्टीगेशन करते हुए आज जयदत्त के स्टूडियो में पहुँच गया था अचानक आये इस बेबुलाये मेहमान को देखकर जयदत्त एक बार थोड़ा सकपकाया ज़रूर मगर फिर ख़ुद को संभाल लिया

 "बताइये में आपकी क़्या मदद कर सकता हूं"

 जयदत्त ने रमाकान्त से कहा जो दीवारों पर सजी पेन्टिंगस देख रहा था

 "एक कलाप्रेमी हूँ आपकी पेन्टिंगस देखने आया हूँ, ये सब आपने बनाई है"

  "जी"

  "बहुत सधी हुई कला के मालिक और अनुभवी लगते हो, कितनी उम्र होगी तकरीबन आपकी"

  "साठ से ज़्यादा है"

  " हूँ..." रमाकान्त स्टूडियों में घूमने लगा, जयदत्त उसके जूते देखकर समझ गया था कि ये पुलिस आफिसर है जबकि वो सादी वर्दी में था

  "आपकी ज़्यादातर तस्वीरें आस पास के इलाकें को देखकर या इन्स्प्रेशन लेकर बनी है... क़्यूं"

   "जी.. मैं लाइव देखकर ही पेन्टिंगस करता हूं"

    "ये पेन्टिंगस भी लाइव की होगी" इस बार रमाकान्त उस पेन्टिंगस के सामने खड़ा था जो जयदत्त ने उस दिन बनाई थी जिस दिन उसने एक्सीडेन्ट होते देखा था!

    "जी"

    " क़्या आप बता सकते हैं कि आपने सुना ही होगा की हमारे शहर में एक बैंक रॉबरी हुई थी और वो लूटेरे इसी जगह एक्सीडेन्ट में मारे गए जहाँ की आपकी ये पेन्टिंगस है"

    "नही में इस बारे में नही जानता... ये पेन्टिगस मैने एक महिनें पहले तैयार की है .. रॉबरी से पहले"

    "मगर इसके रंग अभी गीले है.." ये कहते हुए उसने अपने साथ लाये एक छोटे से हेंड बैग से एक ब्रश निकालकर दिखाते हुए कहा "...और इस ब्रश पर लगा रंग भी गीला है और जहाँ तक है ये तुम्हारा ही ब्रश है" रमाकान्त ब्रश को जयदत्त की ठीक आँखों के सामने ब्रश को दिखाता हुआ बोला

   "आप कहना क्या चाहते हो"

   "कलाकार हो और उम्रदराज़ भी इसलिए जो में पूछ रहा हूं उसका सीधी तरह जवाब दे दोगे तो ठीक रहेगा... समझ रहे हो ना"

  "आ.. आपको कुछ गलतफहमी हुई है..."

  "रॉबरी और लुटेरे के मर्डर के बारे में क़्या जानते हो" इस बार रमाकान्त का लहजा सख़्त था, जयदत्त सन्नाटे में आ गया था ये सुनकर,

   "तो चले... बाकी बाते पुलिस स्टेशन चल कर करते हैं " छठा दृश्य: गोआ रोज़ी का घर और उसकी बेटी जुली

  तीन कमरों के बाहर एक हरे भरे लॉन में जुली चैयर पर मायूस बैठी थी उसके ज़हन में ऑधियां चल रही थी माँ रोज़ी की आकिस्मित मौत ने जुली को अंदर बाहर से झिंझोड़ कर रख दिया था,अपने पीछे आने वाली क़दमो की आहट से जुली ने पहलू बदलकर पीछे देखा तो ये मारिया आँटी थी, बरसो से रोज़ी के साथ थी पूरा घर ये ही संभालती थी, ख़ुद जुली का बचपन भी इनकी गोद में खेलकर बड़ा हुआ था, हॉस्टेल जाने से पहले हाई स्कूल तक जुली यही रही थी, रोज़ी मिडिया हाउस में जॉब करती थी और उसके पीछे एक मारिया आंटी ही थी जो उसका ख़्याल रखती थी, परसो उसे अचानक फोन आया था कि उसकी माँ रोज़ी का हार्ट अटैक से निधन हो गया है,

  "जुली खाना खा लो बाबा... ऐसे कब तक खोई खोई रहोगी"

  " अभी भूख नही है आँटी... आप खा लिजिए में बाद में खा लूँगी"

  "नही जब तक तुम नही खाओगे हम भी खाने को हाथ नही लगाएंगें" जुली मारिया आँटी को जानती थी कि वह जुली को और रोज़ी को के कितने क़रीब रही है इसलिए उठ गई और खाने की टेबल पर आकर बैठ गई, मारिया आँटी प्लेट में खाने निकालने लगी और जुली ने टेबल पर रखे रिमोट से टीवी ऑन कर दिया, जहाँ न्यूज़ चल रही थी

 "एक ग्रेट रॉबरी में अब एक आर्टिस्ट गिरफ़्तार...जी हाँ आपने ठीक सुना...हम बताएगें कैसे एक चित्रकार ने लुटेरे को लूट कर दिया एक सनसनीखेज जुर्म को अजांम..." ना जाने क्यों जुली ये ख़़बर बड़े ध्यान से देखने लगी थी, बार बार दिखाई जा रही फुटेज में जिस चेहरे को दिखाया जा रहा था वो चेहरा उसे जाना पहचाना या कहीं देखा सा लग रहा था, अचानक से जैसे उसे कुछ याद आया और जुली खाने की टेबल से उठी और माँ रोज़ी के कमरे में पहुँची, मारिया आँटी ने उसको रोका पर वो नहीं रुकी, वो खुद भी जुली के पीछे आ गई थी

  जुली ने रोज़ी की अल्मीरा में रखी एलबम निकाल कर उसमे लगे फोटो के पेज पलट रही थी

  " क़्या ढूँढ रही हो जुली" मारिया पूछ रही थी मगर जुली ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी

   एक फोटो के चेहरे पर उँगली रख जुली ने मारिया को दिखाते हुए पूछा "आँटी ये कौन है" मारिया आंटी फोटो देखकर कुछ परेशान सी दिखी

  "बताईये आंटी कौन है ये"

  "क्या करोगी अब जानकर" मारिया ऑंटी ना बताने वाले मूड से बोली

   "मुझे बताओ आँटी ये कौन है... मैने बचपन में भी माँ से पूछा था तब भी उन्होंने नहीं बताया था... अब तुमतो बता दो मुझे...आख़िर ये कौन है जिनका फोटो माँ ने इतना संभाल कर रखा है"

   "ये तुम्हारा फादर है... जयदत्त" मारिया आँटी बोली "तुम्हारे बर्थ से पहले ही रोज़ी इसको छोड़कर यहाँ आ गई थी और फिर कभी इसको नही मिली, जयदत्त को तुम्हारे बारे में भी नही बताया" इतना सुनकर जुली को झटका लगा क्योकि कुछ ही पल पहले उसने न्युज़ में अपने पिता को पुलिस कस्टटी में देखा था

   " आँटी माँ ने ऐसा क्यूँ किया... पापा के ज़िन्दा रहते हुए भी मुझे क्यूँ ये बताया गया कि मेरे पापा अब इस दुनिया में नही है" जुली ने भरे गले से मारिया आँटी से पूछा

   " हम क्या बताए...अब रोज़ी नही रही... तुम्हारी माँ ने अपनी मर्ज़ी से जयदत्त से शादी किया... फिर उसकी लाइफ़ में मुसाब आ गया जो लॉटरी से बहुत सारा पैसा जीता था... कॉलिज टाइम से ही इनके बीच कुछ था.. पर कॉलिज के बाद मुसाब ग़लत लोग के साथ लग गया और एक बार जेल भी गया... रोज़ी उसको भूल गया था फिर रोज़ी की लाईफ़ में जयदत्त आया वो डिसेन्ड ईमानदार आदमी था... तुम्हारा फादर आट्रिस्ट था पर उसके पास इतना पैसा नही था जो वो तुम्हारी माँ की ख़्वाहिशे पूरी कर पाता...उसकी ग़रीबी से तंग आकर रोज़ी ने मुसाब के लिए उसका घर छोड़कर यहाँ चला आया... तुम जब पेट में था... ये उसने बहुत ग़लत किया.. हम समझाया उसको पर वो नही मानी" जुली ने आज पहली बार जाना था कि उसके पिता आट्रिस्ट है शायद इसीलिए बचपन से उसको आर्ट का बहुत शौक था,उसे याद आ रहा था कि जब वो अपने कमरे में बैठकर कोई स्कैच कर रही होती थी तो माँ गुस्सा हो जाती थी लगभग चीख़ ही पड़ती थी उस पर,शायद आर्ट का ये शौक उसके पापा के डीएनए से उसमे आया था जो आज भी क़ायम है, कॉलिज में ही नहीं उसकी पैन्टिग्स कला दिर्घाओ में भी काफ़ी मशहूर थी जिनसे जुली ने माँ रोजी अन्जान थी!

   मारिया आंटी ना जाने क़्या क़्या और भी पिछली बाते बताए जा रही थी और वो बस अब अपने पिता के बारे में सोच रही थी कि आज उसके पिता को उसकी ज़रूरत है और उसे जाना चाहिए पता करना चाहिए कि आख़िर उसके पिता पर लगा आरोप सच है या झूठ!

   सातवाँ दृश्य: अदालत

  सरकारी वकील ने जज के सामने पुलिस की दी हुई चार्जशीट पढ़कर अपनी दलील रखी और बताया कि जयदत्त उस ज़ख़्मी लुटेरे के पास सबसे पहले पहुँचा था और उसके पास एक साथ इतनी दौलत देख अपनी इन्सानियत खो बैठा और उसको शूट कर उसका बैग अपने साथ ले गया मगर जल्दबाज़ी में अपना पैन्टिगस बर्श लाश के पास ही भूल गया जिसके बल पर हमारी पुलिस ने मुजरिम को गिरफ़्तार कर लिया

   जयदत्त की तरफ़ से गोपाल दास नाम के वकील वकालत कर रहे थे जो उसके बचपन के दोस्त राम साहू ने हायर किया था मगर उन्हें जयदत्त ने ज़्यादा सर्पोट नही किया था, ऐसा लग रहा था कि जैसे जयदत्त ने मान लिया था कि जो भी हो रहा है उसके साथ सब सही है, वो ख़ामोश था! 

   अदालत की कार्यवाही के बाद जज ने अगली तारीख़ दे दी, हाथो में हथकड़ी लगे जयदत्त को जब पुलिस ले जा रही थी तब राम साहू ने चन्द मिनट बात करने का समय माँगा, जयदत्त ने अपने केस या रिहा होने का कुछ नही पूछा राम साहू बस एकटक उसको देखा और पूछा "कोई मेरे घर आया या रोज़ी का कोई मैसेज" बदले में राम साहू ने ना में सर हिला दिया

   " आयेगी... वो ज़रूर आएगी..." जयदत्त ये कहते हुए राम साहू के कान के नज़दीक आया और फुसफुसाया "मेरा पार्सल सभॉलकर रखना...रोज़ी तक वो पहुँचना चाहिए"

 आठवाँ दृश्य: रेलवे स्टेशन और राम साहू का रेस्टोरेंट

  स्टेशन पर उतरकर जुली अपने बैग को कान्धे पर टाँगे तेज़ क़दमों से टैक्सी स्टैन्ड की तरफ़ बढ़ रही थी, शाम हो चली थी और उसे जल्दी से जल्दी अपने पापा के एड्रेस पर पहुँचना था, जुली को ये एड्रेस पापा जयदत्त के भेजे गए पुराने और आख़री बार भेजा गया आख़री ख़त से मिला था उस आख़री खत ने जुली की बैचेनी बढ़ा दी थी, जिसमे लिखा था-

   " डियर रोज़ी में तुम्हारे लिए वो सब ना कर सका जिसकी उम्मीद लिए तुम मेरी ज़िन्दगी में आई थी मगर में तुम्हें कल भी और आज भी दिल की गहराईयों से प्यार करता हूँ,में जानता हूं तुम मुझे क्यूँ और किसके लिए छोड़ गई हो, आज कुदरत ने वो सब मुझे दे दिया है, मेरा जीवन अब ढलान पर है, तुम्हारे लिए सरप्राईज है उसे आकर राम साहू मेरे दोस्त जिनके रेस्टोरेन्ट पर अक्सर हम डिनर करने जाते थे,उनसे ले लेना, याद रखना वो सरप्राईज मामूली नही है"

   जुली के ज़हन में बार बार ये लफ्ज़ चल रहे थे, स्टेशन से बाहर निकलते ही उसने टैक्सी को आवाज़ दी और उसको एड्रेस समझाकर उसमे बैठ गई गई और टैक्सी चल पड़ी,

  क़रीब ३०-५० मिनट टैक्सी चलने के बाद ड्राईवर ने रामा रेस्टोरेन्ट के आगे आकर टैक्सी रोक दी,जुली ने उसको किराया दिया और अपना बैग कान्धे पर टाँगते हुए रेस्टोरेन्ट में दाख़िल हुई, रेस्टोरेन्ट की दरो दीवार से लग रहा था कि वो काफ़ी पुराना बना है कुछ तब्दिली के तौर पर सिर्फ़ फर्निचर में ही नया काम हुआ दिख रहा था,जुली को चारो ओर नज़र दौड़ाने पर कैश काउन्टर पर साठ पैंसठ साल के एक अंकल बैठे दिखे जिनकी आँखों पर चश्मा लगा था वो उनके पास पहुँची जब वो अपने कस्टमरों से फ्री हुए तो ख़ुद ही बोले-" हाँ बेटा बोलो"

    "आप राम साहू अंकल हो" जुली ने पूछा

    " हाँ-पर बेटा तुमको में पहचान नही पा रहा हूं.. कौन हो तुम" राम साहू बोले

    " अंकल आप मुझे नही पहचान सकते.... में आपके दोस्त जयदत्त की बेटी जुली हूँ"

     "व्हाट- जयदत्त की बेटी"राम साहू जैसे उछल ही पड़े "तुम जयदत्त की बेटी हो... "मगर उसने कभी तुम्हारे बारे में तो कुछ नहीं बताया"

  "में आपको सब बता दुंगी..." जुली ने कहा " मुझे आप पापा से मिला दिजिए"

  "अच्छा हुआ कि तुम आ गई वरना बहुत देर हो जाती"

   " क्यूँ"

   " जयदत्त को हार्ट अटैक आया है जेल में,अब वो ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रहा है,में आज ही उसको हास्पिटल मिलकर आया हूँ, सिर्फ़ रोज़ी के सिवा उसके होठों पर अब और कोई नाम नहीं है"

    ये सब सुनकर जुली रो पड़ी

    " माँ का भी पिछले हफ़्ते देहांत हो गया" जुली ने राम साहू को बताया

    " ओह नो"

  रात हो चली थी सो जुली के ठहरने के लिए राम साहू ने अपने कॉटेज में ही इंतज़ाम कर दिया था, डिनर करने के बाद राम साहू जुली के साथ टहलते हुए जयदत्त के घर को दिखाते हुए बोले "वो सामने तुम्हारे पापा का घर है और वो ही उसका स्टूडियों रहा है अब तक... मगर अभी उसको पुलिस ने सील किया हुआ है" जुली उसको काफ़ी देर तक एकटक निहारती रही वो उसके पापा का निवास स्थान था!

   नौवा दृश्य: हास्पिटल

  राम साहू ने वकील गोपाल दास से जयदत्त से मिलने की प्रमिशन कोर्ट से मंज़ूर करा ली थी, प्रमिशन लेटर के साथ वो तीनो जुली, राम साहू और वकील गोपाल दास सरकारी हॉस्पिटल पहुँचे जहाँ कुछ देर पेपरो की औपचारिक जाँच के बाद तीनो को जयदत्त जिस वार्ड में था वहाँ पहुँचा दिया गया और कुछ ही पल बाद जुली अपने पापा को को देख रही थी, जयदत्त के ऑक्सीजन लगा था और उसकी आँखे बन्द थी वहाँ मौजूद डॉक्टर ने हिदायत दी कि "इनकी हालत बेहद क्रिटिकल है कृपया शान्ती बनाए रखे"

  राम साहू ने जयदत्त को दो तीन बार पुकारा तो जयदत्त ने धीरे से आँखे खोली और राम साहू को कुछ पल देखकर पहचानते हुए धीरे से पूछा" राम...रोज़ी आई क़्या"

  "हाँ" राम साहू बात का रुख़ मोड़़ते हुए बोला " पहले तू इससे मिल... और पहचान करके बता कि ये कौन है" राम साहू ने कहते हुए जुली को जयदत्त के सामने कर दिया, जयदत्त ने कुछ देर जुली को देखा फिर राम साहू की तरफ़ देखने लगा जैसे पूछना चाहता हो कि ये कौन है

   "नही पहचाना ना" राम साहू की बात पर जयदत्त ने ना में सिर्फ़ सर हिला दिया

   " जयदत्त ये तेरी और रोज़ी की बेटी है... जुली" इतना सुनकर जयदत्त फ़फ़क पड़ा और जुली को अपने सीने पर लिटा लिया, जुली और जयदत्त के मिलन को देखकर साथ आए राम साहू और वकील गोपाल दास की भी आँखे नम हो गई थी,

    बाप बेटी एक दूसरे में खोए क़्या क़्या बात किए जा रहे थे और इन्हीं बातों में एक ज़हर बुझी ख़बर जुली ने जयदत्त को दी कि माँ अब इस दुनिया को छोड़कर चली गई है, जयदत्त की आँखो से गंगा जमुना बह निकली, रोज़ी का हँसता मुस्कराता चेहरा उसकी आँखो में घूम रहा था, वो पहली मुलाक़ात, वो एक दूसरे के हाथ-हाथ में लिए एक दूसरे में खोए रहना फिर... ज़िंदगी में ऐसा मोढ़ भी आना कि रोज़ी मुसाब के पैसे और उसकी रॉयल ज़िंदगी पर फ़िदा होकर उसकी ज़िंदगी से रोज़ी का चले जाना...ये सारा चित्रण ख़त्म होते होते जयदत्त की तबियत बिगड़ने लगी,

   बिगड़ती तबियत में जयदत्त ने राम साहू को कहा कि जो पार्सल उसने रोज़ी को देने के लिए उसको दिया था वो जुली को दे देना और फिर कुछ देर मौत की बैचेनी और तकलीफ़ से गुज़रकर जयदत्त की गर्दन एक तरफ़ को ढलक गई, जुली चीख़ पड़ी मगर जयदत्त इस नश्वर संसार को छोड़कर जा चुका था, राम साहू व गोपाल दास दोनों जुली को सहारा देने लगे!

  दसवाँ दृश्य: जंगल और खंडहर

  जुली आज वहां खड़ी हुई थी जहाँ से जयदत्त ने लुटेरों की गाड़ी पलटने वाला दृश्य देखा था और ठीक वहाँ से कुछ दूरी पर उसे वो खंडहर भी दिखाई दे रहा था जहाँ तीसरे लुटेरे की लाश पड़ी मिली थी, जुली धीरे धीरे उस ओर बढ़ रही थी उसके एक हाथ में उसके पिता द्वारा दिया हुआ पार्सल भी था, उसके कानों में उसके पिता के शब्द गूँज रहे थे- " मै जब उस तीसरे लुटेरे के पास पहुँचा तब सीने के बल पड़ा कराह रहा था उसके पास ही नोटो और ज्वैलरी से भरा बैग भी था, वो पानी माँग रहा था मैने अपने बैग से पानी की बोटल निकाल कर उसको पिलाने के लिए उसको सीधा किया तो मैने जाना कि वो कोई और नहीं बल्कि मुसाब था जिसकी वजह से रोज़ी मुझे छोड़कर चली गई थी ये तो मुझे मालूम था कि वह क्रिमीनल है मगर ज़िन्दगी ऐसे मोढ़ पर उसको मुझसे मिलाएगी ये नही पता था, एक बार को मुझे उस पर कोई दया नही आयी मगर अगले ही पल मेरी इन्सानियत जाग उठी और मैने उसे पानी पिलाया, पानी पीकर उसने आँखे खोलकर देखा और मुझे पहचान लिया उसने अपने किये की मुझसे माफ़ी मांगी और मुझे अपना बैग देकर कहने लगा- जयदत्त में बचूंगा नही रोज़ी और तुम्हें इस पैसे की बहुत ज़रुरत है ये तुम ले लो, मैंने मना किया मगर वो ज़िद पर अड़ गया, कहने लगा- मानता हूं ये पाप का पैसा है मगर इस पाप की सजा गॉड से मुझे मिलेगी तुम ये बैग ले जाओ प्लीज, उसकी मिन्नतो से में पिघल गया और वैसे भी मुझे पैसे की बहुत ज़रूरत , में बैग लेकर जैसे ही चला मुसाब ने खुद को शूट कर लिया, इतना बड़ा बैग में अपने साथ लेकर नही चल सकता था तब मैने इसे इसी खंडहर में छुपा देने की सोची और वो रोज़ी तक ही पहुँचे उसके लिए मैने चार पेन्टिगस में पहेली की तरह छुपा दिया," जुली ये सब याद करती हुई खंडहर के अंदर पहुँच चुकी थी, उसे याद आ रहा था उसने जयदत्त से ये भी पूछा था कि लाश के पास आपके ब्रश कैसे पहुँचे और वो गन कहाँ है जिससे मुसाब ने ख़ुदको शूट किया था तब मरते हुए जयदत्त ने जुली को बताया था कि " उसे नही मालूम की उसके ब्रश लाश कैसे पहुँच गये और ना ही उसके पास मुसाब की गन है" मुसाब की गन कहाँ गई? ये सवाल अब भी एक राज़ था और पुलिस भी मुसाब की गन तलाश नही कर पाई थी, जयदत्त के मरने के बाद जयदत्त को कोर्ट ने उसको बरी कर दिया था मगर इनवेस्टिगेशन अभी भी चल रही थी, जुली को जल्द से जल्द अपना काम कर इस शहर को छोड़ कर गोआ जाना था, और अब खंडहर में दाख़िल हो गई थी, खंडहर के बीच एक तालाब जैसा था जिसमें दो से तीन फीट ही पानी होगा और चारों ओर बड़ी बड़ी जर्जर दीवारें थी, खंडहर के पश्चिम भाग में एक बड़ा सा आर्च नुमा गेट था जिसकी जाली से धूप छनती हुई आकर पानी पर गिर रही थी, जुली ने अपने साथ लाए पार्सल को खोला उसमें चार पेन्टिंगस थी जो इसी पॉइन्ट से खंडहर के चारों ओर की बनाई गई थी और हर पेन्टिग्स पर हिन्दी का एक अक्षर बना था जैसे एक पर रो, र, व और चौथी पर स बना था,अब जुली को पिता द्वारा बनाई इस पहेली को सुलझाकर वो दौलत ढूंढ निकालनी थी, काफ़ी देर तक वो इधर से उधर उन पेन्टिंगसो को रखकर डिकोड करने की कोशिश कर रही थी मगर सफ़लता उससे अभी भी दूर थी, थक कर दीवार की छाँव तले बैठ गई और फिर से सोचना शुरू किया, अब की बार उसने पेन्टिंगसो की पंक्ति बनाई, एक दो बार करने पर अचानक से एक शब्द बनकर उसके सामने आ गया, उसने स रो व र शब्द दर शब्द लगाए और सरोवर शब्द बन , जुली दौड़कर सरोवर यानि खंडहर के बीच तालाब में उतरी और जब वो बीच में पहुँची तब पानी में उसके पैर से कुछ टकराया उसने पानी में ग़ोता लगाकर उसको ऊपर उठाया तो वह वही बैग था जिसे उसके पिता ने छुपाया था, जुली उसको लेकर पानी से बाहर पहुँची ही थी कि खंडहर में छुपा राम साहू हाथ में पिस्तोल लिये सामने आ खड़ा हुआ " वेलडन जुली- मुझे मालूम था अपने चित्रकार पिता की बनाई हुई पहेली को तुम बहुत आसानी से हल कर दोगी- मगर अफ़सोस में तुम्हें इसे तुम्हें ले जाने नही दुगाँ" जुली हक्की बक्की दोहरे चरित्र वाले राम साहू को देख रही थी

  " क़्या देख रही हो- चकित हो, क़्या करे दौलत है हि ऐसी चीज़, चुप चाप बैग ज़मीन पर रख दो"

  "इसका मतलब मुसाब की गन तुम्हारे पास है"

  "हाँ"

  "और तुम्ही ने मेरे पिता जी को फँसाया था"

  "तुम बिल्कुल ठीक समझी- जब जयदत्त ने मुझे ये सारा माजरा सुनाया और बताया कि उसने माल कही छुपा दिया है तब मैने सोचा क्यूँ ना मै इसे फंसा दूँ फिर शायद ये मुझे माल का पता बता दें- मैने ही इसके ब्रश मुसाब की लाश के पास रखे थे, मेरी चाल कामयाब भी हो गई थी ये फंस गया मगर जयदत्त ने सारे माल को एक पहेली में छुपाया था और वो पहेली तोड़ना मेरे लिए मुशिकल था मगर मेरा नसीब फिर से चमका और तुम आ गई मुझे यक़ीन था तुम ज़रूर इस पहेली को हल कर दोगी- अब मरने के लिए तैयार हो जाओ लड़की, जहाँ तुम्हारें माँ बाप है मे तुम्हें वहीं भेज देता हूं" राम साहू इससे पहले गोली चलाता उससे पहले ही एक गोली चली और राम साहू का हाथ हाथ चीरती हुई निकल गई, राम साहू चीख मारकर गिर पड़ा, उसने गोली चलाने वाले को पलट कर देखा वो ऑफिसर रमाकान्त रेड्डी थे जिनके साथ चार पुलिस वाले और भी थे,

   राम साहू गिरफ़तार हो गया, उस पर चार्जशीट बनी और बाद में जेल हो गई,

  जुली ने लूट का सारा पैसा पुलिस को सौंप दिया था, सरकार की तरफ से जुली को इनाम की बड़ी राशी की घोषणा हुई थी,

  "गुड जुली-" रमाकान्त रेड्डी ने जुली से मिलकर कहा " अगर तुम कानून को मदद नही करती तो शायद हमें कितना टाईम लगता इस केस को सुलझाने में"

  " ये तो मेरा फ़र्ज़ था सर- में चाहती थी मेरे पिता के माथे पर ये कलंक ना लगे, इसलिए मैने तुमसे मदद माँगी , अगर आप मेरे साथ ना होते तो शायद आज में भी ज़िंदा नही होती"

  अब जुली अपने पिता की बनाकर रख छोड़ी गई पेन्टिग्सों की एग्जिबिशन लगाने मे मसरूफ़ है और दिन प्रतिदिन जयदत्त की पेन्टिंगस बुलंददिया छू रही हैं।



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