वो मैट्रो स्टेशन
वो मैट्रो स्टेशन
पूरे आठ महीने बाद मैट्रो में सफर कर रही थी। जैसे -जैस वो मैट्रो स्टेशन नजदीक आ रहा था वैसे- वैसे दिल की धड़कन के साथ सांसे भी तेज हो रही थी। आठ महीने पहले तक इसी मैट्रो स्टेशन के जल्दी से आने की दुआ किया करती थी, ना जाने कितनी बार बीच के स्टेशन गिना करती मगर आज उसी के नजदीक आने से डर रही थी। उसके नजदीक आने के बहुत पहले ही आंखों को जोर से भीच लिया।
बंद आंखों में उस दिन का सारा द्रश्य उभर आया ,हर बार की तरह उस दिन भी वो आफिस के बाद उस से मिलने उसके आफिस जा रही थी जो कि उसके वापसी के रास्ते में ही पड़ता था।पिछले तीन साल से वो रिलेशन में थे। शाम को आफिस से वापसी वो उसके आफिस मे ही मिलते शामे साथ गुजारते।उस दिन भी जब वो पंहुची ही थी उसका मैसेज आया कि आज नहीं मिलुंगा तुम सीधे निकल जाओ मैं अपने आफिस में नहीं हूँ।
वो तब तक मैट्रो स्टेशन से निकल चुकी थी तभी उसकी नज़र के सामने से वो अपनी गाड़ी लेकर निकला और जो उसने देखा उसको अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं आया। उसके साथ उसकी सबसे प्यारी सहेली बैठी हुई थीं। वो तो एक दुसरे को जानते भी नहीं थे।
एक दो बार वो ही उसको उसके आफिस ले गयी थी। बस इतनी ही पहचान थी उसकी नज़र में उन दोनों में ,मगर आज दोनों को इस तरह साथ देखकर वो समझ ही नहीं पायी की माजरा क्या है।दोनो को फोन किया तो दोनों ने ही झूठ बोल दिया।
सहेली बोली शहर से बाहर हूँ तो उसने बोला मां को लेकर डाक्टर के आया हूँ ।दोनो का झूठ उसके सामने था। उसके भरोसे का कत्ल हो चुका था इक ने दोस्ती के नाम पर छुरा घोपा था तो एक ने महोब्बत के नाम से। उस दिन वो उस स्टेशन पर दो घंटे बैठकर रोती रही थी। कितने फोन किए उसने दोनों ने ही फोन नही उठाया, तब गुस्से और दुख में उसने उन दोनों को उनकी हकीकत दिखाते हुए मैसेज किया की उनका झूठ उसके सामने आ चुका था।
पूरे रास्ते रोती आयी थी मैट्रो में आने की हालत नहीं थी कैब करके जैसे तैसे घर पंहुची और खुदको खत्म करने के लिए पूरी शीशी नींद की गोलियाँ खा ली।मगर ईश्वर को अभी जीवन रखना था। सो परिवारिक डाक्टर की सहायता से बचा लिया गया।
परिवार के भरपूर प्यार और साथ से संभलने के साथ यह समझ आ गया की उनके लिए जीना है जिनके लिए वो बहुत कुछ थी, जो उसकी जिन्दगी में उस झूठे रिश्ते से पहले के थे। बहुत बार मन करता की पूँछे की उन दोनों ने उसके साथ ऐसे क्यों किया मगर फिर ये सोचकर कि जिनके लिए वो कोई मायने ही नहीं रखती,जिन्होंने उस दिन के बाद यह भी नहीं जानने की कोशिश की वो जिन्दा भी है की नही वो लोग इस लायक भी नहीं कि उनसे कुछ कहा या पुछा जाए।
आंख खोलकर देखा तो वो स्टेशन निकल चुका था। और वो उस डर से जो उस मैट्रो स्टेशन का था।
