हक एक सा !
हक एक सा !
शादी के बाद से ही बहु हर काम की इजाजत लेने मेरे पास आती।
घर मे कुछ भी करना होता पहले मुझसे पुछती, सास होने के नाते उसका मुझे पुछकर काम करना मुझे मान सम्मान देना गलत नहीं था। पर हर बात के लिए जब वो हाथ जोड़कर पूछती तो मुझे महसूस होता जैसे मैं मालकिन और वो नौकर हो।
एक दिन मैंने उसे प्यार से समझाया कि ये घर उतना ही उसका है जितना मेरा है। उसको भी इस घर के हर फैसले को लेने का अधिकार है।यह सुनते ही वो मां कहकर मुझसे लिपट गयी और मुझे लगा बहू के रुप में बेटी अपनी मां से लिपट गयी हैं।