Geetanjali Geetanjali

Drama

4.6  

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मां‌ का बेल से नाता

मां‌ का बेल से नाता

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काफी दिनों से मम्मी का बुखार उतर ही नहीं रहा था। पिछले कुछ दिनों से वो दिन ब दिन कमजोर होती जा रहीं थीं।

हम सब भाई बहनों का उनके बगैर काम नहीं चलता था। किसी के यहां कुछ भी काम होता वही आकर संभालती, सर्दी के कपड़ो को संभालना, घर की फालतू चीजों समेटना, यहा तक की के कोनों की साफ सफाई में भी अहम भूमिका होती। सबसे आश्चर्य की बात तो ये थी कि घर में लगे पेड़ पौधों में भी उनके आने से नयी रंगत आ जाती। मेरे काम काजी होने की वजह से मैं घर के गमलों में लगे पौधों को ज्यादा समय नहीं दे पाती, बस सुबह-शाम पानी दे देती। मम्मी जब भी आती उन पौधों की मिट्टी कुरेदती उनमें तरह तरह की घर में बनी खाद डालती, सुबह -शाम उनमें पानी डालती उनकी मेहनत से मुरझाऐ पौधे भी हरे-भरे हो जाते। बच्चे भी बोलते नानी के आने से घर में चमक आ जाती है, वो हर काम को बड़े सलीके से करती। घर मे जब भी कोई चीज नहीं मिलती वो फोन पर ही बता देती की कहां रखी है। तरीके से संभाली गयी उनकी हर चीज़ हमको बड़ी आसानी से मिल जाती। उनके बिना हमारा तो क्या, रिश्तेदार, आस-पड़ोस कहीं भी किसी का काम नहीं चलता।

अचानक उनकी सेहत के लगातार गिरने से मन में चिंता बढ़ती जा रही थी।

यूं तो छोटे भाई भाभी उनकी सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। आए दिन बड़ी बहन, पोते नातिन उनसे मिलने आते, उनके पास बैठकर उनका दिल बहलाते मगर उनकी सेहत में कोई सुधार नहीं हो रहा था। आज मन उनको लेकर बहुत उदास था।

बालकनी में लगे गमलों में लगे पौधों को पानी देते हुए उस बेल पर नज़र गयी जिसे मम्मी ने अपने हाथों से लाकर लगाया था, गिलोय की वो बेल जिसे जीवनदायनी बेल भी कहते हैं वो जब तक मम्मी रहतीं खूब हरी भरी रहती और उनके जाने के बाद मुरझा सी जाती। जबकी अन्य पौधों की तरह मैं उसमें भी रोज पानी डालती मगर वो ना खिलती।  बेल पूरी तरह पीली पड़ चुकी थी, बिलकुल मम्मी के चेहरे की तरह, मैं कुछ देर उसको देखती रही लगा वो कुछ कह रही है।

मैं झट से उठी उसमें पीली पड़ चुकी पत्तियों को सहलाया और एक निर्णय लेकर पंहुच गयी मम्मी के पास। जाते ही बोली मम्मी को मैं अपने घर लेकर जांऊगी, सब हैरान परेशान की अचानक क्या हुआ भाभी बोली दीदी हम अच्छे से देखभाल कर रहे हैं मम्मी की हमसे कुछ गलती हो गयी क्या ? मैने बोला ऐसा कुछ नहीं तुम सब अच्छे से सेवा कर रहे हो बस अब कुछ दिन मैं भी उनकी सेवा करना चाहती हूं। मेरी जिद के आगे उनको स्वीकृति देनी पड़ी और मैं उनको लेकर घर आ गयी। अगली सुबह उनको उठाकर बालकनी में उनकी पीली पड़ चुकी बेल के पास बिठा दिया, उनके हाथ से बेल में पानी डलवाया। उनकी चहेती बेल को उन्होंने हाथ लगाया तो मुझको लगा जैसे मां को देखकर बच्चा खिलखिला पड़ा हो। अगले तीन चार दिन यही नियम रखा, रोज सुबह शाम वो बेल के पास बैठती, उसको पानी देती। देखते -देखते सप्ताह भर में वो बेल हरी होकर लहरा रही थी और उसी की तरह मम्मी का चेहरा भी खिल रहा था। उनका बुखार उतर चुका था। उन दोनों को लहराते खिलखिलाते देखकर मैं उनको उनकी बेल के पास लाने के फैंसले पर इतरा रही थी।  

मां भी हमारी जीवनदायनी बेल ही तो है जिन्होंने हमे जीवन दिया है।


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