मजहब और इन्सानियत!

मजहब और इन्सानियत!

3 mins
305


आज मैं अजीब कशमकश में थी,आज जन्माष्टमी थी और मैं महावारी के चलते पुजा करने में असमर्थ थी,इस बार दोनो बच्चे पढ़ाई के चलते घर से दूर थे और पतिदेव बिजनेस के टूर पर बाहर गए हुए थे उन्हें लौटने में रात ही होने वाली थी।आज घर में खुद को बहुत अकेले और असहाय सी महसूस कर रही थी और रह रह कर अपनी सासू मां को याद कर के आंख भर आ रही थी जब वो थी तो कभी भी इन दिनो में मुझको दिक्कत नहीं हुई वो पूजा पाठ का कार्य अपने हाथ में ले लेती जब से वो स्वर्ग सिधार गयी तब से यह समस्या हर माह होती मगर हर महीने बच्चों से या पतिदेव पूजा की ज़िम्मेदारी ले लेते मगर आज समस्या गंभीर थी। इसी बीच बेल बजी तो आँखों को पोंछते हुए दरवाजा खोला तो देखा मेरी मेड रेहाना खड़ी थी ।मैंने उसे दरवाजा बन्द करके अन्दर आने के लिए बोला मुझे उदास और आंखों में आंसू देखकर बो बोली" क्या बात है भाभी आप परेशान क्यों है सब ठीक हैं? ना भैया जी और बच्चे तो ठीक हैं ना ?,मैंने बोला "सब ठीक है तुम अपना काम करो" ,तो वो अपने काम में लग गयी और मैं सोच में गुम की आज लड्डू गोपाल की पुजा कैसे होगीकाम खत्म करके रेहाना मेरे पास आकर बैठ गयी और बोली "भाभी आज आप जन्माष्टमी की तैयारी नहीं करेंगी क्या हर साल तो आप सुबह सुबह ही मन्दिर के साथ पुरा घर खूब सजाती हैं।"जब मैंने उसको अपनी समस्या बतायी तो वो बोली "भाभी बस इतनी सी बात है, आप मुझको बताते जाओ क्या क्या कैसे करना है, मैं सब कर दुंगी तो आप परेशान ना हो" तो मैं असमंजस में पड़ गयी कि वो तो हिन्दू नहीं तो कैसे उस से ये सब करवाऊं ।इतने में वो बोली "भाभी मुझको सब पता हैं आप कैसे नन्हें कान्हा जी को नहलाती हो और पोशाक पहनाकर सजाती हैं। साथ ही बो बोली भाभी बचपन में जब हम अपने नानू के घर मथुरा जाते थे तो उनके घर पर ही नहीं आस पास के सभी मुस्लिम समुदाय के घरो में लड्डू गोपाल,राधारानी एंव सभी मथुरा के मन्दिरों में विराजमान भगवानों की पोशाकों को बनाया जाता है।" यह सुनकर मैं यह सोचने पर मजबूर हो गयी की मजहब बड़ा है या इन्सानियत

और यह सोचकर की जब ईश्वर ने अपने सब बन्दो को अपनी सेवा में शामिल किया है तो हम इन्सान क्यों नहीं एक होकर उनकी पूजा अर्चना कर सकते।जब खुद भगवान ने उन्हें अपनी पोशाकों को बनाकर उन्हें अपनी सेवा का अवसर प्रदान किया है तो हम इन्सान इन्हें मजहब के नाम पर कैसे रोक सकते हैं।

आज मन में इक नयी सोच और संकल्प के साथ रेहाना को आवाज दी और उसको कान्हा जी को स्नान कराकर पोशाक पहनाने को बोला और साथ ही शाम को पूजा मे आकर अपने भाई साहब (मेरे पतिदेव)का हाथ बंटाने और पुजा अर्चना में शामिल होने को बोला ।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational