वो लम्हे...!
वो लम्हे...!
प्रिय डायरी,आज फिर बसंत पंचमी है और आज फिर मन अतीत के उन पन्नो में गुम होने को आतुर हो रहा है।यूँ तो जीवन के तीस बसंत देख लिए है इन आंखों ने लेकिन वो पांच साल पहले का बसंत आज भी मन को गुदगुदा देता है।हां पांच साल पहले ही तो मिले थे हम उनसे!वो जिनकी छवि आज भी हमारे हृदय पटल पर उसी तरह अंकित है,जैसे पांच साल पहले उन्हें देखा था।वो एक शांत हवा के झोंके की तरह हमारे जीवन में चुपके से शामिल हुए और पुरवाई बनकर जीवन में शीतलता बिखेरने लगे।उनसे हमारा सम्बन्ध सारी दीन दुनिया से परे ही तो है।जिसका एहसास सिर्फ हमे है, सिर्फ हमे।
वो बसंत पंचमी का ही तो दिन था जब हमने उन्हें देखा था।वो बादामी आँखे सांवला रंग और चेहरे पर आकर्षण!कोचिंग समय पर पहुंचने की होड़ में हम बिन नाश्ता किये घर से निकल पड़े थे।बसंत पंचमी होने के कारण पूरा शहर ही पीले रंग से खिला हुआ था।जिधर नजर डालो उधर पीले वस्त्र से सजे लोग!जैसे धरती ने पीले रंग का श्रृंगार कर लिया हो।हम भी जल्दी जल्दी तेज कदमो से चले जा रहे थे।चूंकि तब हम प्रतियोगी परीक्षाओ की तैयारी किया करते थे इसिलए कोचिंग भी जॉइन कर रखी थी।उस दिन भी जा रहे थे!शाम के पांच बजे की क्लास थी और पांच बजने में महज पांच मिनट कम।घर से कोचिंग स्थल तक पहुंचने में हमे कम से कम दस मिनट तो लगते ही थे।हम भी निकल पड़े थे।ऑटो कर ले तो शायद समय से पहुंच पाये हमने सोचा और पैदल चलने लगे! चलते हुए एक नजर सड़क पर भी डाल लेते थे ये सोच कर कि अगर ऑटो दिखे तो उसमे बैठ समय पर पहुंच जाये।पैदल चल ही रहे थे कि नजर आगे रुके एक ऑटो पर पड़ी जिसमे से सवारी उतर रही थी।हम भी बिन देर किये उसकी ओर लपके लेकिन उसमे बैठते तब तो कोई और आकर ही उसमे विराजमान हो गया और एक थोड़ी अलग लेकिन सख्त सी आवाज आई 'भाई गीताभवन चलना है जल्दी चलो' मैंने नजर उठा कर देखा तो सामने हल्की श्वेत रंग की शर्ट और डार्क ब्लू रंग का लिबास पहने एक चौबीस वर्ष के युवा को पाया।जिसका रंग श्याम था और चेहरे पर आकर्षण।उसके पास एक गुलाबी बॉर्डर बाला ब्लू सा बेग था।हमने एक ओर बैठते हुए सोचा शायद ये भी हमारी तरह जल्दी में है।हमने ऑटो वाले से कहा 'हमे भी वहीं जाना है!' ऑटो चल दिया जिसमे एक सॉन्ग प्ले होने लगा! 'रोम रोम तेरा नाम पुकारे..'जो उस समय हमारा पसंदीदा हुआ करता था सो हम बड़े ही ध्यान से उसे सुनने लगे।सुनने के साथ गुनगुनाने की बुरी आदत भी थी हमारी उस समय सो हौले हौले गुनगुनाने भी लगे।कुछ ही देर में हम दोनों गीताभवन के सामने उतरे।हम वहां से कोचिंग की ओर बढ़ गये तो पीछे से आवाज आई "सुनो, सॉन्ग सुनना पसंद है बहुत अच्छी बात है लेकिन सॉन्ग सुनते हुए यूँ राह चलते गुनगुनाने लगना ये, अच्छी बात नही है थिंक अबाउट इट" उन्होंने कहा और आगे बढ़ गया।उसकी बात सुन मन में सबसे पहला विचार आया हमे क्या करना है क्या नही ये सलाह उन्होंने हमे ही क्यों दी,और हम क्यों माने उनकी बात?जान न पहचान सलाह दे दी मुफ्त की।' बिदकते हुए चले आये और जाकर क्लास रूम में अपनी दोस्त दिवी के पास जाकर बैठ गये।एक मिनट पहले ही पहुंच गये हम घड़ी देखी और किताब निकाल कर पढ़ने लगे।ठीक एक मिनट बाद क्लास में लेक्चरर की एंट्री हुई और हम उन्हें देख मुंह बाएं रह गये।ये वही तो है जिन्हें हम अभी अभी बाहर कोसते हुए चले आ रहे थे।सबने उन्हें 'गुड इवनिंग कहा' तो जवाब में वो बस इवनिंग कह 'सिट डाउन' बोल दिये! अब हम मन ही मन एक बार बोले बसंत पंचमी के दिन ही हमे इन्हें कोसना था अब तो देवी मां पक्का रूठ जानी है।हम इन्ही उलझनों में डूबे थे कि तभी हमारे कानो में आवाज आई, गाइज मैं आपका नया इंग्लिश टीचर! प्रेम मिश्रा!आवाज सुन हम मन ही मन बोले 'वेलकम सर।'उन्होंने क्लास अटैंड करना शुरू किया और हम भी मन से क्लास अटैंड करने लगे।पढ़ते हुए हमारी नजर उनके हाथ पर पड़े एक कलरफुल धागे पर पड़ी जिसमे इंद्रधनुष के सारे रंग थे।वो बड़ा ही प्यारा लग रहा था उनके हाथ में।हमने देखा तो बस देखते रह गये।न जाने नजर क्यों नही हटी उस पर कुछ तो था जो हमारी नजरो को खींच रहा था।पूरी क्लास में हमारी नजर बस उस धागे और उस धागे वाले हाथ पर थम गयी।
क्लास खत्म हुई और हम वापस चले आये।लेकिन जेहन में वो लम्हा ही घूम रहा था।मुलाकातों का सिलसिला बढ़ा जिसके साथ ही बढ़ा हमारे बावरे मन का आकर्षण!जो न जाने कब प्रेम में परिवर्तित हो गया हमे खबर तक न लगी।ऐसे ही एक दिन अपनी दोस्त के साथ उनके केबिन में कुछ प्रश्न पूछने गयी।उसके प्रश्न किताबो से रिलेटेड थे और हमारे जिंदगी से।वो पूछने लगी और हम करने लगे हमेशा की तरह इंतजार,जो आज तक मन के हर हिस्से को है।उसने एक के बाद एक सवाल पूछे और हम खामोशी से उनके जवाब तलाशते रहे।कुछ मिनट बाद उसे प्यास लगी तो उसने अभी आने का कहा और चली गयी।रह गये वहां हम!उस समय हमारे मन की घबराहट हमारी हृदय गति सामान्य से बढ़ गई जिसे हम महसूस कर पा रहे थे।हमने कुर्सी पकड़ी और हौले से उनसे नजरे फेर बैठ गये।लेकिन कहां नजरे सुनती है किसी की हमारी भी कैसे सुनती!वो फिर चोरी छिपे दीदार को आतुर हो गयी और हम इन्हें चाह कर भी नही रोक पाये।वो कानो में हेड फोन लगाये वहीं सॉन्ग सुनने लगे और हम उन्हें!यून्होंने नजर उठा कर हमारी ओर देखा और हम हड़बड़ाहट में नजरे फेर मुड़ गये।दिवी आ गयी और हम वहां से यूँ भागे जैसे जेल से भागता कैदी।बिन दिवी को बाय किये हम सरपट घर आकर ही रुके।हम हमारे मन की हर बात समझ गये।अगले दिन फिर कोचिंग गये।अब हाल ये था न नजरे फेरना समझ आ रहा था और न ही नजरे मिलाना हो पा रहा था।एक दिन दिवी के साथ यूँ ही उलझी सी सीढियो से चली आ रहे थे।नजर सामने खड़े शख्स पर ठहर गयी!वो अपनी ही धुन में चलता हुआ हमारे पास से गुजर गया।उनके गुजरने के साथ ही हमारे चेहरे पर मुस्कान छा गयी।मुलाकाते अच्छी लगने लगी।उनका वो अधूरा साथ अच्छा लगने लगा।लेकिन इस साथ को पूरा करते कैसे?वो टीचर और हम स्टूडेंट!मैनर्स बीच में आ गये।नही कह पाये और हमारे जीवन के वो हसीन लम्हे हमारी डायरी में कैद होकर रह गये।हम यानी, राधिका!प्रेम की राधिका।वो बसंत हमारे जीवन में खुशबू का वो झोंका लेकर आया जिनकी महक हर पल हमारे मन मंदिर को महकाती रहती है।
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'पागल लड़की' अपनी स्टडी टेबल पर बैठे हुए प्रेम जी बोले।उन्होंने आवाज देते हुए कहा,'राधु यहां आना तो'। "आते हैं प्रेम जी" राधु बोली।
"क्या हुआ प्रेम जी, ला रहे है आपकी 'गर्मागर्म चाय" कमरे के अंदर आते हुए राधु बोली और हाथ में पकड़ी हुई चाय स्टडी टेबल पर रख दी।प्रेम जी मुस्कुराते हुए बोले राधु कितनी बार कहा है इसे पूरा तो लिखो आधा ही छोड़ रखा है पूरा क्यों नही करती हो तुम बोलो।"
क्योंकि हमारी कहानी तो किस्मत से पूरी हुई प्रेम जी लेकिन वो लम्हा तो अधूरा रह गया हमारी स्मृतियो मे।माना कि ईश्वरीय कृपा और बड़ो के आशीष से हम एक बंधन में बंध गये है लेकिन वो लम्हा तो आज भी स्वतंत्र है न।वो लम्हे हमारे जीवन के सबसे यादगार लम्हो में से है।मन को आज भी आपके आने का इंतजार उसी बैचेनी और अधीरता से रहता है जैसा पहले रहा करता था।।राधिका मुस्कुराते हुए बोली।
हम्म सो तो है और दोनो एक बार फिर चाय की चुस्कियों के साथ अतीत के लम्हो में खो जाते हैं।।