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स्वतंत्र लेखनी

Abstract Fantasy Others

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स्वतंत्र लेखनी

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वो झुमके

वो झुमके

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प्रवीण ने बहुत सोचने के बाद पर खुशी को फ़ोन लगाने को सोचा। खुशी और प्रवीण की बातचीत लगभग दो महीने से नहीं हुई थी। खुशी में आया यह अचानक परिवर्तन प्रवीण को चुभ रहा था लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी वह कुछ न कर सका। प्रवीण अभी चेन्नई के सर्वाना स्टोर पर खड़ा था। वहाँ उसे कुछ खूबसूरत झुमके दिखाई दिए। उन्हें देखते ही उसे खुशी की याद आई।

खैर, प्रवीण अब बिना झुमके खरीदे ही घर वापस आ चुका था। दिन बीतते गए और देखते ही देखते देश में अचानक से महामारी फैल गई। लगभग तीन वर्ष तक प्रवीण अपने घर दिल्ली ना आ सका। कोरोना और लॉकडाउन ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर रखा था। प्रवीण के जीवन पर भी इसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था।

वाचाल प्रवीण अब शांत रहने लगा था। प्रवीण के परिवार में उसकी माँ और दो छोटी बहनें थी। पिता की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी थी।

"प्रवीण, बेटा तू कब आएगा? ये आँखें तुझे देखने को तरस गई हैं।" प्रवीण की माँ ने भरी आँखों से यह बात फोन पर कहा।

"बस माँ, दो-तीन और। ऑफिस से छुट्टी मिलते ही पहली फ्लाइट से मैं सीधा तुझसे मिलने आऊँगा।" प्रवीण ने माँ को आश्वस्त किया।

अब वह दिन भी आ गया जब प्रवीण तीन साल बाद अपने घर वापस जा रहा था। प्रवीण शांत था बेहद शांत लेकिन किसी की यादें बोल रही थीं।

प्रवीण अब घर पहुँच चुका था। प्रवीण को देखते ही माँ बहुत खुश हुईं और उसे गले लगा लिया। प्रवीण भी वर्षों से भरा हुआ था। आज उसे बहना था। वह भी माँ से लिपटकर खूब रोया। उसकी बहनें भी उसे इतने समय बाद देखकर भावुक थीं।

रात हो चुकी थी और सभी लोग रात्रि भोजन कर रहे थे। आज माँ ने प्रवीण के पसंद की बेसन की सब्जी बनाई थी।

रात्रिभोजन के बाद सभी अपने अपने कमरे में सोने चले गए। रात के करीब दो बज रहे थे लेकिन प्रवीण की आँखों में नींद तनिक भी नहीं थी। वह अपनी खिड़की के पास खड़े होकर बाहर देख रहा था। तभी उसे उसके कंधे पर किसी के हाथ का एहसास हुआ। यह उसकी माँ थी।

"बेटे, तू अभी तक सोया नहीं? क्या हुआ सब ठीक है ना? मैं देख रही हूँ कि तू जब से आया है बड़ा शांत सा है।" माँ ने प्रवीण से पूछा।

"सब ठीक है माँ।" प्रवीण ने दो टूक जवाब दिया।

"अच्छा सुन, ये ले। ये खुशी को दे देना। कहना माँ का प्यार और आशीर्वाद है।" माँ ने प्रवीण को कुछ देते हुए कहा।

प्रवीण हतप्रभ था। उसकी आँखों में आँसू भी थे और एक आश्चर्य भी। यह आश्चर्य उसके लिए सुखद और दुःखद दोनों ही था। प्रवीण की माँ ने खुशी के लिए वही झुमके दिए जो वह तीन वर्ष पूर्व चेन्नई के सर्वाना स्टोर पर छोड़ आया था। प्रवीण कुछ बोल ना सका। वह कहता भी क्या माँ से कि जिसके लिए वह इतने प्रेम से वह झुमके दे रही है वो लड़की छः महीने पहले करोना से जंग हार गई।

प्रवीण देर तक झुमकों को देखता रहता है। झुमके उसके आँसुओं से अब भींग चुके थे।




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