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स्वतंत्र लेखनी

Children Stories Tragedy

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स्वतंत्र लेखनी

Children Stories Tragedy

प्रार्थना

प्रार्थना

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"अरे सोहन ! चलो ना बाहर चलते हैं। देखो कितना सुन्दर मौसम है। " दस साल के पीयूष ने अपने मित्र को संबोधित करते हुए कहा। "हाँ, हांँ चलो ना बाहर चलते हैं।" सोहन ने भी हामी भर दी।

दोनों बालक बाहर गए और बादल वाला मौसम देखकर उनका मन बहुत प्रसन्न हुआ। चारो ओर घने बादल थे। लगता था कि बस अभी थोड़े देर में ज़ोर की बारिश होगी। पीयूष का घर एक मालिन बस्ती में पड़ता था। हालांकि, पीयूष को किसी प्रकार की असुविधा नही थी। वह एक अच्छे परिवार से था। 

पीयूष के घर के बगल में ही झोपडी थी। पीयूष और सोहन लगभग उससे थोड़ी ही दूर पर खड़े थे। दोनों आसमान की तरफ देखकर ईश्वर से प्रार्थना करने लगे कि हे प्रभु! घनघोर वर्षा हो और हम खूब आनंद ले सकें, बारिश में खेल सकें। हे प्रभु! सुन लो हमारी।

झोपड़ी में रहने वाला बिरजू उन दोनों की बात सुन रहा था और बादलों की उमड़ घुमड़ के साथ उसके माथे की लकीर गहराते जा रही थी। वह उनकी प्रार्थना से चिंतित नही था बल्कि इस बात से था कि यदि बारिश हो गई तो उसकी झोपड़ी इस बार तेज़ बारिश नही सह सकेगी। वह और उसका परिवार गृह-विहीन हो जाएगा। यह सोचते-सोचते वह झोपड़ी की मरम्मत करने लगा और मन ही मन यह प्रार्थना कि कैसे भी करके आज की बारिश रुक जाए।

थोड़ी देर बाद पीयूष और सोहन की प्रार्थना सुन ली गई और बिरजू की प्रार्थना अनसुनी रह गई। एक तरफ कागज़ की नाव छोड़ी जा रही थी, माता के बहुत बुलाने के बावजूद भी उन्हें खुला भींगता आसमान भा रहा था और एक तरफ कोई छत ढूंढ रहा था ताकि उसके भींगते तन को बचाया जा सके।


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