एहसास
एहसास
"अरे दीपिका, तुम कहाँ गुम हो? आज शादी है तुम्हारी।" रौशनी ने दीपिका को खयालों से बाहर खींचा।
"अब दीपिका को ज़माने की सुध कहाँ! खोई होगी अपने पिया जी के सपनों में।" राधिका ने कहकर ठहाका लगाया।
दीपिका की सखियाँ उसके आसपास ही थीं। उनमें से कोई दीपिका को छेड़ता तो कोई उससे बात करता लेकिन दीपिका ना जाने कहाँ गुम थी। उसकी हँसी में भी वो बात न थी जो कुछ दिन पहले तक थी।
दीपिका की शादी थी आज, उसके जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन। काफ़ी दिनों से वह चहकती हुई शादी की तैयारियों में लगी हुई थी लेकिन पता नहीं उसको अचानक से क्या हो गया था कि लगभग पिछले 10 दिनों से वह थोड़ी गुमसुम रहने लगी थी। स्वभाव से दीपिका चुलबुली, अंतर्मुखी और थोड़ी जिद्दी थी। वह ज्यादा किसी से बात न करती थी।
दीपिका की माँ का बचपन में ही स्वर्गवास हो गया था। इस कारण दीपिका के पिता पर उसकी जिम्मेदारी बहुत बढ़ गई थी। दीपिका के पिता ने भी उसे कोई कमी न होने दी। बहुत लाड-प्यार दिया और उसकी हर ज़िद पूरी की। पिता के बाद अगर उसकी हर ज़िद मानने वाला कोई मिला तो वह था अर्जुन, दीपिका का सबसे अच्छा दोस्त। दीपिका अर्जुन से जितनी बातें न करती उससे ज्यादा वह उससे लड़ती और रूठती। अर्जुन भी दीपिका के स्वभाव से परिचित था। उसके अंदर उसे मना लेने का हुनर था। वह हर बार दीपिका को मना लेता और एक अच्छा दोस्त होने का फर्ज निभाया। दिन ऐसे ही लड़ते-झगड़ते बीत गया और दीपिका के पिता ने एक अच्छा वर देखकर उसकी शादी तय कर दी। दीपिका खुश थी, बहुत खुश लेकिन पिछले दस दिनों से पता नहीं क्या था जो उसे परेशान किए था। आज वह अपनी शादी के दिन भी उदास ही थी।
"हाय, कितनी प्यारी लग रही है मेरी दीपी! नज़र ना लगे।" दीपिका की एक दोस्त ने कहा। दीपिका ने मुस्कुराकर शुक्रिया कहा।
बारात आने वाली थी। सभी लोग बारात देखने के लिए छत पर जा चुके थे। दीपिका अपने कमरे में अपना श्रृंगार पूरा करते दिख रही थी। वह कमरे के चारों तरफ बड़े ध्यान से देख रही थी। तभी उसे बाहर से जाता हुआ एक छोटा लड़का दिखा।
"राजू, मेरा एक काम कर दो। बाहर अर्जुन भइया होंगे। उनसे कहो की मैं उसे बुला रही हूँ।" दीपिका ने कहा।
राजू अर्जुन को बुलाने चला जाता है।
थोड़ी देर बाद दीपिका को किसी के आने की आहट होती है। शीशे में खुद को निहारती दीपिका झटके से पीछे पलटकर देखती है।
"अर्जुन...!" दीपिका के मुँह से बस एक यही शब्द निकलता है।
चेहरे पर एक हल्की मुस्कान और बोली में थोड़ा गुस्सा लिए दीपिका कहती है, "कहाँ थे तुम दस दिनों से? मैं कितना परेशान थी! तुम्हारा नंबर भी नहीं लग रहा था। और जब तुम यहाँ आए तो तुमने मुझसे मिलने की कोशिश भी नहीं की। क्यों किया ऐसा?"
"तुम तो जानती ही हो कि शादी वाले घर में कितनी जिम्मेदारियाँ होती हैं। तुम्हारे बाबूजी ने कितने सारे काम सौंप दिए थे। उन्हीं कामों में व्यस्त था। बस इसलिए तुमसे मिलने ना आ सका।" अर्जुन ने उत्तर दिया।
"झूठ बोलते हो तुम। तुम आ सकते थे। जानबूझकर नहीं आए होगे। मैं जानती हूँ तुमको।" दीपिका ने गुस्से में कहा।
"अरे! ओ दीपी रानी, अब तो मत लड़ो। शादी है आज तुम्हारी। चेहरा लाल पड़ जायेगा।" ऐसा कहकर अर्जुन हँसने लगा।
"मुझे देखोगे नहीं ठीक से?" दीपिका के इस प्रश्न ने अर्जुन पर जैसे आघात किया। दीपिका अर्जुन की नज़रों को देख रही थी कि उसकी नज़रें दीपिका को देख नही रहीं।
"कैसी दिख रही हूँ? बोलो ना।" दीपिका ने आँखों में आँसू लिए पूछा।
"बहुत खूबसूरत! बिल्कुल परी की तरह।" अर्जुन ने मुस्कुराकर कहा।
दीपिका को यह बात अटपटी लगी। जो अर्जुन उसे बंदरिया चिढ़ाने से ना थकता वो आज उसे कुछ ऐसे कह रहा था।
"अर्जुन...!" दीपिका ने कुछ कहना चाहा।
"दीपी, बहुत काम है मुझे। तुम्हारी बारात आने ही वाली है। मैं नीचे चलता हूँ।" यह कहकर अर्जुन जाने लगा।
पता नहीं क्यों दीपिका की आँखें भर आई थीं और उधर अर्जुन भी आँखों को पोंछते हुए कमरे से बाहर निकला।
