माँ
माँ
"तू हमेशा ऐसे मुंँह लटकाकर क्यों बैठा रहता है? आरव ने अपने दोस्त वेदांत से कहा।
आरव और वेदांत दूसरी कक्षा के छात्र थे। वे एक अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल में पढ़ते थे।
वेदांत एक शांत स्वभाव का बालक था। लेकिन उसका दोस्त आरव स्वभाव से थोड़ा चंचल एवम् वाचाल था।
वेदांत अक्सर शांत रहा करता था। कक्षा के सभी बच्चे आधी छुट्टी होने पर साथ खेलते थे, अपना नाश्ता बांँटते, बातें करते लेकिन वेदांत शांत पड़ा रहता। वह कभी-कभी अपने खाने का डिब्बा भी नही खाता था।
एक दिन आरव के बहुत ज़िद करने पर वेदांत के पापा ने उसे आरव के घर जाने दिया। आरव स्कूल के बाद वेदांत के साथ कुछ देर खेलना चाहता था।
"आरव, चलो बेटा खाना खा लो।" आरव की मांँ ने आवाज़ लगाई।
आरव दौड़ते हुए खाने की थाली के पास गया।
"ये क्या मांँ? मुझे नही खाना ये सब। मुझे करेले की सब्जी नही पसंद है।"आरव ने मुंँह फुला लिया।
"अरे मेरा बच्चा, तो बताओ ये नही खाओगे तो क्या खाना है? मैं अभी बनाकर ले आती हूंँ।" ऐसा कहकर आरव की मांँ ने उसका माथा चूम लिया और गले लगा लिया। एक मांँ अपनी ममता स्कूल से थककर आए बच्चे पर उड़ेल रही थी।
वेदांत दूसरे कमरे में खड़ा यह सब देख रहा था। उसकी आंखो से आंँसू गिर रहे थे। वह कुछ नही कह सका सिवाय एक शब्द के "मांँ"।
आज वेदांत अपनी मांँ के स्पर्श को बहुत याद कर रहा था। उसे भी भूख थी लेकिन मांँ के स्पर्श एवम् प्यार की।
