पीड़ा
पीड़ा
पीड़ा किसी व्यक्ति को कमज़ोर नही बनाती। पीड़ा का कार्य मनुष्य को ऊँचा उठाना और मजबूत बनाना है। कमज़ोर हैं वो जो इससे घबराकर आने वाले सुनहरे भविष्य से मुंँह मोड़ लेते हैं। पीड़ा के दिनों में किसी दूसरे का कंधा ढूँढने से बेहतर है अपना हाथ आप थामे रहना, अपनी पीड़ित आत्मा को प्रेम की थपकी देना, अपने उदास नयनों में आशा की एक नई उम्मीद भरना और एक नई चमक देना। उन चोटों की मरहम-पट्टी बस आप ही कर सकते हैं जिनको आपने अकेले पाया है, महसूस किया है और कष्ट को झेला है। कोई और आपको सहानुभूति दे सकता है, मजबूत आप खुद को खुद से बनाते हैं। हम सभी के अंदर ईश्वर ने वो शक्ति दी है जो हमें बुरी से बुरी पीड़ा झेलने के लिए मजबूत बनाती है। पीड़ा सिर्फ पढ़ने में एक नकारात्मक भाव से भरा शब्द है, इसका असल उद्देश्य मनुष्य को मजबूती से खड़ा कर उस योग्य बनाना है जिससे वह दूसरों का सहारा बन सके। पीड़ा से आप, आप बनते हैं जो आप कभी नही थे। जिसने पीड़ा नही झेला उसने जीवन नही देखा।
