वो और मैं - 1
वो और मैं - 1
वो- बी, कभी कभी है न किहमे ओढ़ने होते हैं कई सारे रूप सिर्फ जिंदगी को जीने के लिए।जिंदगी जो जीना मुश्किल हो, जिसमें हँसना एक अभिनय हो जाय, और रोना...ख़ैर कुछ बातों, नातों की खातिर सच्चे जवाबों को रोकना पड़ता है।झूठ को जीना होता है। हम अकेले तो नहीं हैं ना, जिंदगियां वाबस्ता है हमसे।
मैं-हम्म....।
वो- अपनी ख्वाहिशों को समेटकर जिम्मेदारियों से निबाह करना जहां एक मात्र उपाय हो वहां किसी एक करीबी का दिल दुखाना क्यों जरूरी होता है? ये सवाल चुभता रहता है दिल में , कचोटता है जहन में। वो दिल...
मैं-...वो दिल, जो कभी हंसता था, शरारत में डूब कर बेफिक्र घूमता था सड़कों पर.. अब उदास है लेकिन जहन के कहने पर मुस्कराते हुए "कर्म "में डूबा है।
वो-..ऐसा लगता है बस....
मैं- ... ये जीवन ऐसे ही चलना है।
वो-अद्भुत बी...थैंक्स आप मेरी मन को हूबहू समझ रहीं है!!
मैं-नो थैंक्स सर..राइटर हूँ ,कभी कभी जज्बात समझ लेती हूँ।
वो-बट स्टिल.. थैंक्स मैंम !
मैं-ओह नो, नॉट मैंम ..जस्ट बी।
वो-दैन आप भी मुझे सर न कहें।
मैं-हहह चलिये यही सही, क्या फर्क पड़ता है..आभासी दुनिया में इन सब बातों का।
वो-हम्म.. सिर्फ एक सुकून है की कोई है जो ...
मैं-...सुन लेता है।