वो अँधेरी बालकनी (हॉरर)
वो अँधेरी बालकनी (हॉरर)
दीप्ति जब १५ साल की थी तब उसके पापा का तबादला वाराणसी हो गया। वहां दीप्ति अपने पापा मम्मी और दो छोटे भाई बहिन के साथ फैंमिली हॉस्टल में रहने के लिए आये। दीप्ति और उसके भाई बहनो का एडमिशन वाराणसी के ही एक स्कूल में करवा दिया गया। हॉस्टल में सारी सुख सुविधाएं थीं।
दीप्ति के हॉस्टल के रूम के आगे एक बड़ी सी बालकनी थी। अक्सर गर्मी के दिनों में लाइट चली जाया करती थी और सभी बच्चे अपनी बड़ी सी बालकनी के कॉरिडोर में आके खेलते थे। दीप्ती भी अपने सभी दोस्तों के साथ खेलती थी।एक दिन की बात उस रात पुरे हॉस्टल की लाइट चली गयी चारों तरफ घुप अँधेरा छा गया। लोग कमरों से बहार निकल कर बालकनी के कॉरिडोर में आ गए और दीप्ति भी अपने मम्मी पापा भाई बहिन के साथ आ गयी।
बालकनी में बहुत अँधेरा होने की वजह से मम्मी ने दीप्ति से कहा साथ में ही रहने को। दीप्ति खेलते खेलते कब अपनी सहेलियों के साथ अँधेरे में मम्मी से अलग हो गयी पता ही नहीं चला। अचानक अँधेरी बालकनी में दीप्ति को कुछ सफ़ेद सफ़ेद कपडा उड़ता हुआ दिखा। पहले तो दीप्ति ने नज़रअंदाज़ कर दिया मगर बार बार दीप्ति का ध्यान उसी तरफ भटकने लगा और फिर जो उसने देखा उसकी साँसे थम गयी। वो एक ही जगह बुत बनी खड़ी रही। वो कोई उड़ता हुआ कपडा नहीं था वह एक सफ़ेद साड़ी में लिपटी हुई औरत थी जो रात को अँधेरी बालकनी में खड़े हुए दिख रही थी। उसने सर से लेके पैर तक सफ़ेद साड़ी पहन रखी थी। दीप्ति को समझ नहीं आया कौन है वहां। उसने अपनी आँख मिचाई मगर वो सफ़ेद साडी वाली औरत दिख रही थी। अचानक उस सफ़ेद साड़ी वाली औरत ने इशारा किया दीप्ती को। दीप्ति एकटक उस औरत को ही देखे जा रही थी। दीप्ति उसकी तरफ बढ़ने लगी।
तभी अचानक दीप्ति की सहेली ने पुछा "कहाँ जा रही हो दीप्ति ?" दीप्ति रुक गयी और जैसे निंद्रा भंग हुई "मैं वहां वह कोई आंटी बुला रही हैं अभी आती हूँ।" "पर कौन सी आंटी, हमें तो कोई नहीं दिख रहा" दीप्ति की सहेलियों ने कहा। "क्या लेकिन मुझे तो दिख रही है।" दीप्ति ने चौंकते हुए स्वर में कहा। उसने अपने साथ में खेल रही सहेलियों से पुछा क्या तुमको वहां कोई दिख रहा है। पर सब ने बोला कि हमें कोई आंटी नहीं दिख रही। अचानक जैसे ही दीप्ति पीछे मुड़ी तो लाइट आ गयी थी, दीप्ति को वहां कोई नहीं दिखाई दिया। दीप्ति इस कदर डर गयी की उसकी तबियत खराब हो गयी। उसे बुखार हो गया और बुखार उतरने का नाम नहीं ले रहा थे। दीप्ति को हर रात ऐसा लगता जैसे कोई किचन में कुछ "खट - खट" करके काट रहा है आधी रात को और उसकी तरफ बढ़ रहा है उसे मारने के लिए और दीप्ति यह सोच के डर जाती और उसका बुखार बहुत तेज़ होता जाता। यह सिलसिला करीब २० दिनों तक चला। तब एक दिन माँ ने समझाया "दीप्ति बेटा अगर तुम डरती रहोगी तो जी नहीं पाओगी। यह भूत वूत सब मन का वहम होता है।" दीप्ति उस दिन के बाद धीरे धीरे ठीक होने लगी। माँ ने उसे समझाया तो था पर वो खुद ही इस बात से बहुत डर गयीं थीं की उनकी बेटी को रात में कैसी कैसी आवाज़ें सुनाई देती है।