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Happy{vani} Rajput

Inspirational Others

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Happy{vani} Rajput

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नारी खुद को इंसान नहीं समझती

नारी खुद को इंसान नहीं समझती

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"अच्छा तू रहने दे अब बस भी कर मार ही डालेगा क्या..." मां शीतला जी ने अपने बेटे अविनाश और उसके छोटे भाई प्रतीक को हाथापाई करने से रोकने की कोशिश की


"नहीं मां!!!!! यह सब तुम्हारे लाड़ प्यार का नतीजा है आज इसे मैं नहीं छोडूंगा। पुलिस में पकड़वाऊँगा" कहते हुए अविनाश ने जोर का एक झन्नाटेदार थप्पड़ प्रतीक के जड़ दिया

प्रतीक को बदहवास मार खाता देख माँ ने अविनाश को रोकने की कोशिश करी पर आज अविनाश रुकने वाला ना था उसने प्रतीक का गिरेबान पकड़ घसीटते हुए ले जाकर सामने खड़ी प्रतीक की पत्नी रागिनी के पैरों में धकेल दिया


"तूने क्या समझ रखा है!!!!!! कि किसी के अरमानों को खिलौना समझकर तोड़ देगा पर तू भूल गया की रागनी हमारे घर की बहू है और इस घर की इज़्ज़त है। तुम लोगों ने सोचा रागिनी ससुराल में है तो उसे बहू होने के नाते हर अत्याचार सहना चाहिए पर मैं यह अत्याचार नहीं होने दूंगा!!!!!?" अविनाश बौखलाया हुआ सब पर चिल्लाया

माँ शीतला जी के पति को गुज़रे हुए पाँच साल हो गए थे। उनका खुद का कपड़ों का कारोबार था और वो जाने से पहले संपत्ति, घर और दुकान का आधा आधा हिस्सा शीतला जी और दोनों बेटों अविनाश और प्रतीक के नाम कर गए थे।


अब अविनाश दुकान संभालता था और प्रतीक अपनी सोफ्टवेयर कंपनी चलाता था। अविनाश की शादी न हो पाई थी पर उसे इस बात का तनिक भी दुख ना था कि उसके पक्के रंग की वजह से कोई रिश्ता नहीं आता था। भगवान ने भी भाग्य का खेल ऐसा रचा कि छोटे भाई प्रतीक को ऐसा मनमोहना बना दिया कि उसके लिए रिश्तों की लाइन लग जाती थी। पिताजी के गुज़रने के एक साल के बाद जब अविनाश के लिए कोई रिश्ता न आया तो खुद अविनाश ने पिता की ज़िम्मेदारी निभाते हुए छोटे भाई प्रतीक का विवाह रागिनी संग रचा दिया।


भोली भाली रागिनी भी सुंदरता में प्रतीक से कोई कम नहीं थी...पढ़ाई लिखाई में भी अव्वल थी अव्वल... बस ना कहने ही नहीं आता था अगर उसे कोई काम पसंद न हो तो..घर में सब बड़ों की इज़्ज़त करना अपना पहला धर्म समझती थी।

अविनाश हर लड़की की इज़्ज़त करता था। उसे प्रतीक जैसे लड़कों की घिनौनी करतूतों पर बहुत गुस्सा आता था।

आज अविनाश को बहुत गुस्सा आ रहा था अपने छोटे भाई प्रतीक पर और आए भी क्यों ना प्रतीक रागिनी का गुनहगार जो था जिसने दूसरी शादी कर रागिनी की जिंदगी तबाह कर दी थी। पिछले 2 साल से घर वालों की आंखों में धूल झोंक रहा था।


रागिनी इस बात से अंजान अपने सुनहरे भविष्य के सपने देख रही थी पर आज अविनाश को प्रतीक की सच्चाई उसी के मोबाइल से प्रतीक की शादी की तस्वीर किसी और लड़की के साथ मिली जो रागिनी की शादी से पहले की थी पर प्रतिक की बुजदिली ने उसका यह राज किसी के सामने खोलने ना दिया और यह अनर्थ हो गया जिसके लिए अविनाश बौखलाया हुआ था।


अविनाश को जब प्रतीक की हरकतों का पता चला तो उसने रागिनी को न्याय दिलाने का निर्णय कर लिया। परंतु प्रतीक पर इस बात का कोई असर नहीं हो रहा था क्योंकि उसे माँ शीतला जी की शय मिली हुई थी जो आज भी प्रतीक को बोलने के बजाय अविनाश को रोकने में लगी थीं।


"अरे बेटा...तो अब तू क्या इस लड़की के लिए अपने भाई की जान लेगा" मां गिड़गिड़ाते बोली

"माँ जिसे आप इस लड़की कह रही हो वो आपकी बहू है और उसे आपकी सेवा करते दो साल हो गए। इतना पढ़ा लिखा, समझदार होने के बावजूद रागिनी भी प्रतीक के इस अत्याचार को सहती जा रही है" अविनाश माँ की तरफ गुस्साई नज़रों से देखते बोला...

"शक कहाँ से होता भैया ये कभी अपना मोबाइल दिखाते ही नहीं थे, न ही कभी जल्दी घर आते और बहुत दिनों का टूर कहकर घर महीनों नहीं आते थे। पहले तो मुझे प्रतीक पर शक हुआ था और ...."


रागिनी की बात बीच में ही काटते हुए माँ शीतला जी ज़ोर देते बोलीं....

"और.. क्या रागिनी बेटा.... अब तो प्रतीक ने शादी कर ही ली है.. अब हो भी क्या सकता है। अब यही तेरा भाग्य है। लड़कियाँ एक बार ससुराल की चौखट चढ़ती हैं तो फिर उनकी अर्थी ही निकलती है..."

"माँ भाग्य तो रागिनी को इंसाफ दिला कर ही रहेगा...आज रागिनी ही इस बात का फैसला करेगी कि उसे ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी जीनी है या फिर इस घुटन से मुक्त होना है..." अविनाश रागिनी की तरफ देखते बोला

"नहीं भैया मुझे माफ कर दीजिए... ऐसा मत करिए..." बात रागिनी के पलड़े में जाता देख...प्रतीक गिड़गिड़ाया


अविनाश कुछ बोले इससे पहले ही रागिनी ने ज़ोर का थप्पड़ प्रतीक को जड़ दिया और

"बस प्रतीक तुम्हारी मनमानी खत्म अब और नहीं....मुझे कमज़ोर पत्नी न समझना...तुम पति कहलाने के काबिल नहीं हो...

......भैया मैं आपकी शुक्रगुज़ार हूँ कि आपने प्रतीक की सच्चाई सामने लाकर मेरे बड़े भाई होने का फर्ज निभाया है। आपने सच कहा मेरा भाग्य मुझे इंसाफ दिला कर रहेगा प्रतीक से तलाक लेकर और प्रतीक के नाम जितनी संपत्ति है उसका आधा हिस्सा मुझे देकर। प्रतीक अब तुमसे मुलाकात कोर्ट में ही होगी और हाँ मम्मी जी भाग्य बनाना हमारे हाथ में है न कि ये सोच के बैठ जाना चाहिए कि अब यही मेरा भाग्य है। जब तक मैं अपने आप को इंसान नहीं समझोगे तो और कौन समझेगा हम खुद ही नहीं अपने आप को समझते हैं इंसान तो बाकी क्या समझेंगे। मैं भी एक इंसान हूं ना की मूर्ति जिसे आप कभी भी कुछ भी कह कर अत्याचार करते रहें।" इतने में पुलिस भी आ गई और प्रतीक को पकड़ कर ले गई।


तीनों प्रतीक को जाता देखते रहे...अब रागिनी एक छोटी बहन होने के नाते अविनाश की ज़िम्मेदारी बन गई थी। बाद में रागिनी को प्रतीक की आधी संपत्ति पर मालिकाना हक मिला और रागिनी ने नए सिरे से वहीं अविनाश और मम्मी जी के साथ रहते हुए दुकान का काम संभाल लिया। अविनाश तथा माँ ने प्रतीक को घर, जमीन जायदाद से बेदखल कर दिया।


दोस्तों क्या प्रतीक जैसे लड़कों को उनके घृणित कार्यों के लिए उसको पुलिस में पकड़वाना और उसे जमीन जायदाद से बेदखल करना गलत है??? अत्याचार करने वाले के साथ साथ अत्याचार सहने वाला भी गलत होता है। समाज मेंं नारी को एक मूर्ति की तरह समझा जाता है न कि एक इंसान की तरह क्योंकि वह खुद ही अपने आप को इंसान नहीं समझती।



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