प्यार का गुदगुदाता एहसास❤️
प्यार का गुदगुदाता एहसास❤️
आज दफ्तर में दिवाली का उत्सव मनाया जा रहा था, तरह तरह के रंग बिरंगी पोशाकों में सजे लोग दफ्तर में आ रहे थे।
"वाह यार खनक, क्या लग रही हो ! आज तो छेड़ने का मन कर रहा है तुमको" शिखर ने प्यार से खनक को सर से पैर तक देखा और देखते ही उसके मुँह से यह शब्द निकले और निकलते भी क्यों न गुलाबी रंग की साड़ी में पल्ला खुला हुआ बालों में खूबसूरत जुड़ा बनाए हुए खनक गज़ब की खुबसुरत और प्यारी लग रही थी। उसकी सहेलियां और सहकर्मचारी कोई भी तारीफ किये बिना नहीं रह पा रहा था उसकी।
खनक थी ही इतनी प्यारी। सुन्दर नैन-नक्श , लम्बी , छरहरी गेहुंआ रंग और उस पर खनकती हुई खनक की हंसी जो सुनले तो बस कयामत। लोगों को खनक का भोला-भाला चेहरा, व्यवहार , बोलचाल, मेहनत सब पसंद आता था। खनक सीधी - सादी लड़की थी और वो बस अपना काम करने में ही विश्वास करती थी। वो कभी किसीकी बुराई नहीं करती थी।
उसे कोई बुरा लगता ही नहीं था पर उसे समझ नहीं आता था कि दफ्तर की दूसरी महिला कर्मचारी जो उसकी पीठ पीछे बुराई क्यों करती थीं और उस की रंगत देखकर उससे जलती भी थीं।
खनक ने अभी कुछ आठ महीने पहले ही दफ्तर में नौकरी शुरू की थी और उसने अपने काम से सबको बहुत प्रभावित् कर दिया था। कई लोग उसकी कामयाबी से जलते थे तो कई उसकी सराहना करते थे। खनक बहुत कम बात करती थी सबसे बस उतना ही जितना ज़रूरी था।
खनक के नौकरी शुरू करने के छह महीने बाद शिखर खनक के विभाग में आया था। मोटी-मोटी आँखें, गोरा रंग, दुबला पतला शरीर जवान लड़का दिखता था शिखर। हमेशा हंसी मज़ाक करते रहना उसकी आदत थी पर अपनी उम्र के हिसाब से बहुत ही सुलझा हुआ।
शिखर को खनक के बगल की जगह मिली बैठने और काम करने के लिए। शुरू शुरू में खनक ने ध्यान नहीं दिया था शिखर पर। शिखर खनक को इतनी मेहनत से काम करते हुए देख के बाकी सब कर्मचारियों की तरह बहुत प्रभावित होता और खनक के भोले से चेहरे को देख कर शिखर खनक से दोस्ती किये बिना न रह सका।
शुरुआत में तो शिखर खनक से बस काम की बातें करता था पर धीरे धीरे शिखर खनक से हंसी मज़ाक भी करने लगा और उसी मज़ाक मज़ाक में शिखर खनक की ख़ूबसूरती की तारीफ भी कर देता था।
धीरे - धीरे खनक भी शिखर के बात करने के अंदाज़ से प्रभावित होने लगी। खनक सोचती थी कि आज तक इतनी जगह नौकरी करी मैंने पर किसीसे मुझे बात करने में कभी रूचि नहीं हुई फिर शिखर में क्या बात है।
धीरे धीरे उसको शिखर की बातें अच्छी लगती थीं। एक प्यारा सा एहसास कब खनक के अंदर पनप गया उसे पता न चला पर खनक शिखर को अपने इस एहसास से अनजान ही रखना चाहती थी और खनक को धीरे धीरे शिखर के बात करने के अंदाज़ से और उसके खनक के पास आने से पता चलने लग गया था कि शिखर उसे पसंद करता है और खनक को इस बात से और भी ज़्यादा पुख्ता हो गया जब शिखर ने कहा
"खनक जानती हो मैं ज़िन्दगी में एक लड़की की सकारात्मक सोच और काम करने के अंदाज़ को देख कर बहुत प्रभावित हुआ हूँ और उसका नाम भी ख से शुरू होता है।"
खनक जानती थी कि शिखर उसी की बात कर रहा है क्यूंकि वो जितनी देर बोल रहा था केवल खनक को देख कर बोलता जा रहा था। खनक ने सुन के अनसुना कर दिया और हमेशा की तरह अपने काम में मसरूफियत दिखाते हुए शिखर की बात सुनी क्यूंकि खनक अपना प्यार का एहसास शिखर को बताना नहीं चाहती थी और इसीलिए वो शिखर से जब भी बात करती इधर उधर देखते हुए बात करती ताकि शिखर उसकी ऑंखें पढ़ न ले। शिखर समझ नहीं पाता था कि खनक भी उसे पसंद करती है या नहीं।
खनक जानती थी जो भी प्यार का एहसास उसके अंदर आ गया है वह उसे अनजाने में भी शिखर के सामने नहीं ला सकती और न लाना चाहती थी क्यूंकि खनक और शिखर में ज़्यादा उम्र का फासला होने से इस प्यार का कोई नाम नहीं दिया जा सकता था।
यह सच था खनक अपने पैंतीस साल पुरे कर चुकी थी पर खनक का चेहरा और उसकी शारीरिक बनावट देख कर खनक अपनी उम्र से दस साल छोटी लगती थी और वो एक पांच साल के बच्चे की माँ भी थी।
उसने दोबारा नौकरी की शुरुआत करी थी क्यूंकि जीवन में वह अपने आप को हमेशा उस खालीपन से दूर रखना चाहती थी जो अमूमन माओं को हो जाता था। बच्चे को डे केयर में से ले के आती थी और अपना काम करती थी। पति अंशुमन उसे बहुत प्यार करता था पर काम की ज़िम्मेदारियों की वजह से कभी खनक के पास उसके खालीपन में समय नहीं दे पाता था पर दफ्तर में किसी भी कर्मचारी को पता नहीं था खनक की उम्र और खनक के छोटे से खुशियों भरे प्यारे से परिवार के बारे में।
हालाँकि खनक शिखर के बराबर ही लगती थी पर शिखर उससे आठ साल छोटा था और ये बात सिर्फ खनक जानती थी कि समाज में यह रिश्ता एक गलत नज़र से देखा जायेगा और इसीलिए वह इस प्यार के एहसास को कोई नाम नहीं देना चाहती थी, सिर्फ प्यार को एक एहसास मानना चाहती थी। फिर जब दिवाली का उत्सव दफ्तर में मनाया गया शिखर ने खनक् को अपने दिल की बात बता दी जिसे सुनकर खनक को एक मीठा सा एहसास के साथ ख़ुशी तो हुई कि उसे अभी भी लोग उसे पसंद करते हैं पर खनक जानती थी इस प्यार की कोई मंज़िल नहीं है और इसीलिए खनक ने दूसरी नौकरी ढूंढ ली और उस कंपनी से इस्तीफा दे दिया।
"खनक! कहाँ खोयी हो, चलो सोने चलो" सारा काम करने के बाद रात के खाने के बाद टहलते हुए उस प्यारे एहसास में खोई हुई खनक पति अंशुमन की आवाज़ से अतीत की यादों से बाहर निकली पर रह-रह कर आज भी खनक को वह प्यार का एहसास याद आ जाता था। खनक खुश थी अपने इस प्यार के एहसास के साथ।
अपनी प्यारी सी प्रतिक्रिया से ज़रूर बताइयेगा क्या खनक जैसी माँओं को ऐसा एहसास होना गुनाह है ?