नया साल ! कैसा नया साल
नया साल ! कैसा नया साल
"चलो अबकी बार मम्मी जी को सरप्राइज देते हैं विक्रम, हर बार हम लोग दिवाली के त्यौहार पर मिलते हैं अबकी बार क्यों न नए साल पर एक हफ्ते की बच्चों की सर्दी की छुट्टी में चलते हैं! सब लोग मिलेंगे नए साल पर, कितनी खुश होंगी मम्मी जी" शालू ने दोनों बच्चों और पति से ख़ुश होते हुए कहा
शालू और विक्रम दिल्ली में नौकरी करते हैं। उनके दो बच्चे हैं पांच साल का शीबू और सात साल की शीनू। लखनऊ में शालू की सास कमलेश जी अपनी छोटी बहु और बेटा के साथ रहती हैं। शालू कमलेश जी की बड़ी बहु है। परिवार में दो बेटे और दो बेटियां हैं। शालू की दोनों नंदों का विवाह वहीँ लखनऊ में हुआ था और कमलेश जी भी शालू के ससुर के देहांत के बाद उनकी जगह सरकारी नौकरी करने लगीं थीं।
शालू अपने ससुराल वालों की बहुत इज़्ज़त करती थी, सबको बहुत मानती थी और इसीलिए बच्चों की सर्दी की एक हफ्ते की छुट्टी शेष बची थी और नौकरी से छुट्टी न मिलने की वजह से कभी भी कोई सा भी त्यौहार या अच्छा दिन नहीं छोड़ती थी अपनी सास को सरप्राइज देने का तो बस अबकी बार नए साल पर सरप्राइज देने की सोची और पहुंच गए लखनऊ एक तारिख की सुबह 5:00 बजे।
"अरे बेटा बता तो देता, तुम लोग आ रहे हो " कमलेश जी ने कहा।
"अरे मम्मीजी अपने ही घर में आने के लिए कैसा बताना, हमने सोचा सरप्राइज देते हैं अबकी बार मम्मीजी को" शालू ने चकते हुए कहा।
चलो अब पहुँच तो गए लेकिन शालू को हरबार की तरह एक दिन भी आराम करने को नहीं मिलता था। जाते ही मम्मी जी ने कहा
"बहु ऐसा है छोटी बहु को तो एक हफ्ते से बुखार था अभी थोड़ा ठीक हुआ है थोड़ी कमज़ोरी है तो ऐसा करो आज चौका तुम ही बना लो।"
थकी-मांदी शालू को कमलेश जी ने थोड़ा भी आराम करने के लिए नहीं कहा की इतने लम्बे सफर से थक कर आई है तो एक समय का चाय नाश्ता कमलेश जी ही कर देतीं लेकिन उनका कहना था।
"बहु आती है तो मैं भी थोड़ा बड़ी बहु का सुख ले लूँ, थोड़ा काम करवा लूँ"
शालू सोच रही थी "अरे कम से कम एक दिन तो दे देतीं", खैर शालू ने एक समय का सारा नाश्ता खाना-पीना निपटाया और दोपहर 12 बजे तक विक्रम और बच्चे सब लोग दिन का खाना-वाना खाके आराम करने चले गए।
शालू भी थोड़ा आराम करने हेतु अभी लेती ही थी, अभी हलकी -२ नींद आना शुरू ही हुई थी कि तभी कमलेश जी आईं और बोलीं
"चलो बहू यहाँ पड़ोस में कीर्तन है गीता पाठ है वहां लेके चलती हूँ, आज साल के पहले दिन भगवान् का नाम लेना अच्छा होता है, बाकि सबको आराम करने दो, दिन भर के थके मांदे हैं तुम्हीं उनकी तरफ से चलके बैठ जाना थोड़ा पूजा में, उठो उठो चलो "
"मम्मीजी आप होके आइये, मैं भी थोड़ी देर आराम कर लेती हूँ " शालू ने थकावट महसूस करते हुए कहा पर कमलेश जी नहीं मानी और शालू को मजबूरन जाना पड़ा। दोपहर 3 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक शालू को वहीँ बैठना पड़ा। शालू के पैर में बुरी तरीके से दर्द हो रहा था। थकावट के मारे बुरा हाल था लेकिन कमलेश जी को दिख नहीं रहा था। शालू को ऐसा लगा मानो कमलेश जी दिल की भड़ास उसपे निकाल रही हों।
शाम को 7 बजे अभी सब घर के लोग चाय पी ही रहे थे की इतने में दरवाज़े पर डोर बेल बजी, शालू ने दरवाज़ा खोला तो घबराहट से उसके हाथ पांव फूलने लगे और कमलेश जी का चेहरा खिल गया शालू की दोनों नंदे अपने चारों बच्चों के साथ, दोनों बुआओं और उनके भी दो - दो बच्चे, दोनों दामाद सब ने एक साथ धावा बोल दिया। शालू में हिम्मत न बची थी कुछ भी करने की। छोटी बहु भी अपनी कमज़ोरी दिखाते हुए कमरे में चादर लपेटे पड़ी रही।
शालू ने पकोड़े उतारे और चाय बनाई, अब तक रात के 9 बज चुके थे पर सब के हंसी ठहाके की आवाज़े बैठके से आ रही थीं और कोई उठने जाने का नाम नहीं ले रहा था। शालू किचन में खड़ी सोच रही थी कि अब खाना भी बनाना शुरू कर देती हूँ लेकिन मम्मी जी ने तो मना किया है, क्या करूं।
अभी ये सोच ही रही थी इतने में शालू की छोटी नन्द किचन में आईं और बोलीं
"बहिन-बेटियों को ऐसे भूखा ही भेजोगी क्या, खाना बना लो पूरी और दाल की पकोड़ी की सब्ज़ी"
"पर दीदी उसमें तो बहुत समय लगेगा, दाल भीगी भी नहीं है मैं पूरी और आलू टमाटर की सब्ज़ी बना देती हूँ, अभी 9 बज रहे हैं जल्दी भी बन जायेगा और सभी लोग पेट भर कर खा लेंगे" शालू ने कहा
"नहीं - नहीं ! अभी किसी को भूख नहीं है, सब आराम से खा लेंगे, तुम खाना बनाना शुरू करो" छोटी नन्द इतना कह कर किचन से चली गई
सब लोग हंसी- ठहाके मार कर मज़े लेते हुए नए साल का आनंद उठा रहे थे। शालू का नया साल तो किचन में ही बीत गया और साल का पहला दिन कमलेश जी ने ख़राब करवा दिया। सोच रही थी
"मैंने तो सोचा था सरप्राइज दूँगी मम्मी जी को पर मैं तो खुद ही सरप्राइज हो गयी"
रात के 1 बजे तक जब तक शालू सब के साथ बैठने आई तब तक सब जा चुके थे। विक्रम के ऑफिस की छुट्टी न होने से शालू से बिना मिले ही वापस दिल्ली चले गए और शालू और बच्चे लखनऊ में ही रुक गए।
अगले दिन शालू सफर और काम की थकान होने से बीमार पड़ गई, उसको बुखार चढ़ गया था। अब छोटी बहु ने रसोई संभाली पर शीबू और शीनू का नहाना,खाना शालू को बीमारी में ही करना पड़ा, कमलेश जी ने तो हाथ भी न लगाया।
शालू कमलेश जी से कुछ नहीं बोल रही थी। छोटी दीदी वहीँ पास में रहने से अक्सर आती जाती रहती थीं। अगले दिन आईं तो अपनी बेरुखी सुनाते हुए बोलीं
"बड़ी दीदी तुमसे नाराज़ हैं, नए साल की मुबारकबाद भी नहीं दी तुमने"
तब शालू ने अपना गुस्सा प्रकट करते हुए कहा
"नया साल ! कैसा नया साल दीदी, मुझे तो पता ही नहीं चला नया साल जिसको मनाने के लिए आप सब लोगों के साथ मैं यहाँ आई थी पर सब लोग आये, खाए पीये और हंसी मज़ाक करते हुए आप सब ने नया साल मनाया, जब तक मैं आई, आप सब लोग चले गए। सोचा था आप लोगों को सरप्राइज देके खुश करुँगी, मिलके मनाएंगे नया साल, एक दिन रेस्टॉरेंट से खाना मंगवा लेंगे पर यहाँ तो मम्मी जी ने मेरा नया साल का पहला दिन किचन में मनवा कर मुझे ही सरप्राइज कर दिया, अच्छा आई मैं तो।"
छोटी नन्द और कमलेश जी का मुँह छोटा सा हो गया, वह अपने किये पर बहुत शर्मिंदा हुईं।
दोस्तों कई बार लोगों को उनकी गलती बोलकर बताना ज़रूरी होता है।