मेंहदी इज़्ज़त और सम्मान वाली...
मेंहदी इज़्ज़त और सम्मान वाली...
"अरे वाह निशा की मेहँदी तो वाकई में हाथों पर बहुत खूब रची है। निशा को तो बहुत प्यार करने वाला पति मिलेगा और ससुराल भी बहुत अच्छा होगा" पास वाली पड़ोसन रीमा आंटी ने निशा के हाथों में रची मेहंदी को देख कर कहा जब निशा उनकी बेटी की मेहँदी रात में आई तब।
"नहीं आंटी ये सब तो बातें हैं मैं इनमें विश्वास नहीं करती, मैं इन् सब झंझटों से दूर ही भली" निशा ने कहा
"देख बेटा मान जा, सबके साथ ऐसा नहीं होता। शादी के लिए हाँ करदे" माँ ने निशा से कहा
निशा जो काफी गंभीर लड़की थी और किसी को ज़्यादा तवज़्ज़ो नहीं देती थी और शादी के लिए कोई जगह अपनी ज़िन्दगी में नहीं मानती थी और मानती भी कैसे अपनी माँ की और अन्य औरतों की ज़िन्दगी देख कर निशा बहुत सतर्क थी कि ऐसा उसे कदापि नहीं करना नहीं तो वो बस अपनी ज़िन्दगी ख़राब कर लेगी। निशा का मानना था कि शादी करके औरतों की आज़ादी खत्म हो जाती है और उसने इसीलिए कई रिश्ते ठुकरा दिए थे। उसके माता पिता इस बात से बहुत परेशान थे कि निशा ऐसी क्यों है।
निशा को लगता था उसकी ज़िन्दगी अपनी मर्ज़ी से चलेगी फिर शादी करके क्यों बच्चे करना, देश की आबादी वैसे ही बहुत बढ़ गई है और फालतू के चक्करों में घर की ज़िम्मेदारी बस हमेशा खटते रहना और इसीलिए वो लड़के वालों को मना तो कभी लड़के को खुद मना कर देती थी। माता पिता उसे बहुत समझाते कि हमारे बाद तेरे पास कोई नहीं होगा और सब के साथ ऐसा नहीं होता पर निशा नहीं मानती थी।
अबतक निशा की सारी सहेलियों की शादी हो गई थी और सब अपने बच्चों में और घर की ज़िम्मेदारियों में व्यस्त थीं। निशा को अपनी सहेलियों को देख कर उनपर तरस आता था। निशा इस बात से दिन भर तरह तरह के उपाए सोचती की कैसे लड़के वालों को भगाया जाए। आखिर एक और रिश्ता आया और निशा ने उनको भगाने की ठानी।
लड़के वाले आये तो निशा पहले ही सोफे पर आ कर बैठ गई और माँ बाबा के बोलने से पहले ही बोली देखिये आप लोग रिश्ता पक्का करें उससे पहले मैं बता दूँ कि मुझसे रिश्ता जोड़ने से पहले आपको बताना होगा कि आप मुझे कौन सा दर्ज़ा देंगी, बहुरानी का या फिर नौकरानी का "
लड़के वाले निशा का मुँह देखते रह गए और फिर लड़के की माँ ने बोला "बेटी नौकरानी क्यों होगी तुम तो बहुरानी बन कर रहोगी, जो हर लड़की को शादी के बाद मिलता है घर, पैसा, गाड़ी, गहने सब कुछ मिलेगा और इससे ज़्यादा क्या चाहिए तुमको "
"मैं इन् सब चीज़ों की बात नहीं कर रही, यह सब तो मेरे बाबा ने मुझे पहले ही दे रखा है पर इन् सब चीज़ों के साथ मुझे अपने माँ बाबा से एक और चीज़ भी मिली है और वह है इज़्ज़त, जी हाँ इन्होने मुझे बहुत प्यार और सम्मान के साथ बड़ा किया है --- क्या वो मिलेगी या फिर बस दुनिया को दिखने के लिए यह मेरी पत्नी है और यह हमारे घर की बहु है होगा बाकि बस घर में नौकरानियों सी हालत रहेगी, मैं नहीं चाहती की बात अधूरी रख के शादी की जाए" निशा बहुत ही समझदारी से बात कर रही थी।
उसकी बात सुन के उसके माँ बाबा को उसकी बात समझ आई कि निशा क्यों मना करती थी। आज उन्हें अपनी बेटी पर फक्र हो रहा था। लड़के की माँ ने कहा "क्यों इज़्ज़त तो मिलेगी ही न जैसे सबको मिलती है तो तुम कोई अनोखी थोड़ी
हो और घर का काम करने में नौकरानी कैसे हो जाओगी"
"वही जैसे आपका बेटा कल को कोई घर के काम में मेरी मदद करने पर आप उसे नौकर समझेंगी या फिर वो खुद भी समझेगा वैसे ही आप मुझसे भी तो फिर जब सारा घर का काम बिना किसी की सहायता के करवाएंगी तो मैं नौकरानी ही होंगी न फिर कैसे बहुरानी" निशा ने तपाक से बोला-
"अरे अरे हमारा बेटा क्यों करेगा घर का काम, हमने उसे इसीलिए थोड़ी क्या पढ़ाया है कि घर का काम करे वह उसके लिए तो बहु होती है " लड़के की माँ ने कहा-
"तो माफ़ कीजिये मेरे माँ बाबा ने भी कोई घर का झाड़ूपोचा या बर्तन धोने के लिए पढ़ाया लिखाया नहीं है, और आप एक माँ होके अपने बेटे को ऐसा ही बना कर रखेंगी और अगर ऐसी ही सोच रहेगी आपकी तो आप लोग जा सकते हैं, मुझे ये रिश्ता मंज़ूर नहीं" निशा ने दबंग आवाज़ में कहा-
लड़के की माँ बहुत गुस्सा हो गई और चलने के लिए कहने लगी पर लड़के (ऋषभ) को तो निशा में बाकि दूसरी लड़कियों से अलग बात लगी और उसको निशा पसंद आ गई थी।
बहुत देर सबकी बात सुनने के बाद ऋषभ बोला "मैं बड़ी देर से आप सबकी बातें सुन रहा हूँ और शादी मुझे भी करनी है तो इसमें माँ आप बेहतर होगा ये फैसला मुझे लेने दें, ऋषभ निशा से कहता है "आप की बात से सहमत हूँ कि आप के माता पिता ने आपको दुसरे घर की नौकरानी बनने के लिए नहीं पढ़ाया लिखाया जैसे की मेरे माता पिता ने मुझे सम्मान और प्यार के साथ बड़ा किया है वैसे ही आपको भी किया है और मुझे इस बात से भी कोई सरोकार नहीं की आपके बाबा ने आपको सबकुछ पहले ही दे रखा है और मैं मानता हूँ की आपका सोचना जायज़ है, पति पत्नी का रिश्ता मैं समझता हूँ हमारे शरीर के दो पैरों के सामान है एक पैर पति है तो दूसरा पत्नी और दोनों साथ साथ पैर तभी चल सकते हैं जब कभी तुम आगे बड़ो तो मैं तुम्हारे पीछे होंगा और जब मैं आगे बढ़ूँ तो तुम मेरे पीछे होगी तभी शादी की गाड़ी बढ़ेगी अच्छी और इसी तरह जब घर का काम है तो दोनों मिल कर करेंगे, बच्चों को पालने की ज़िम्मेदारी हमारी है और मैं अपनी ज़िम्मेदारी अच्छे से समझता हूँ तभी तुम्हे मैं सम्मान और इज़्ज़त की ज़िन्दगी दे पाउँगा और आज सबके सामने मैं कागज़ पर लिख कर देता हूँ अगर मैं अपने इस आठवें वचन से फिरूं तो आप मुझे बेझिझक छोड़ के जा सकती हैं, माँ मुझे ये रिश्ता पसंद है।"
"सही कह रहे हो बेटा, आज तुमने मेरी अकल पर जो सदियों से ताले लगे हुए थे कि घर की ज़िम्मेदारी बहु की और बाहर की बेटे की तो ये गलत है, मैं मान गई और अब मुझे भी निशा पसंद है, निशा वाकई समझदार है और हमें गर्व हो रहा है ये आप लोगों के साथ ये रिश्ता करके" ऋषभ की माँ ने कहा-
निशा के माँ बाबा को आज अपनी बेटी पर बहुत गर्व महसूस हो रहा था और निशा वह तो जैसे ऋषभ की बातें सुन कर सुनती ही रह गई और सोच रही थी की क्या सच में ऐसे भी लड़के होते हैं और निशा ने भी शर्माते हुए हाँ करदी।आज निशा की शादी थी और निशा की सारी सहेलियां उसके हाथों की मेहंदी देख कर माँ से यही कह रही थीं वाकई आंटी जी निशा की मेहँदी सम्मान और इज़्ज़त से रचने वाली है, यह कहकर सब ख़ुशी ख़ुशी शादी की रस्मों में जुट जाते हैं।