आखिर राजा तो बनी
आखिर राजा तो बनी
क्या कभी आपने किसी को उसके साथ हुए हादसे के लिए धन्यवाद देते सुना है.. शायद नहीं। ये कहानी एक ऐसी ही लड़की श्रेया की है जो बार बार अपने जीवन में हुए उस हादसे के लिए ईश्वर का धन्यवाद करती थी और चाहती थी कि ऐसे हादसे उसके शादी के कुछ सालों के उपरांत बीच बीच में आ जाया करें।
छोटी छोटी आकर्षित आँखें, सिल्की-2 बाल, दोनों गालों में गड्ढे पड़ते भरे भरे गाल और उस पर उसका दूध जैसा उजला रूप किसी जापानी गुड़िया से कम न लगती थी 22 वर्षीय श्रेया। बहुत ही हँसमुख सबका मनमोह लेने वाली लड़की थी। घर के कामों में ऐसी निपुण कि किसी के कहने से पहले ही काम हो जाए। कुछ अलग ही अंदाज़ था श्रेया का। उसके इसी हँसमुख अंदाज़ ने उसको बड़े ही जल्दी शादी की चौखट पार करा दी।
ससुराल में पति निशांत के अलावा सभी थे सास कमलेश जी, ससुर करमचंद जी और उससे दो साल छोटा देवर जुगल। करमचंद जी (श्रेया के ससुर जी) तीन भाई थे। श्रेया के सारे ससुरालिए रिश्तेदार आसपास ही रहते थे। दो कदम की दूरी पर निशांत(श्रेया के पति) के ताऊ जी का परिवार रहता था जिसमें ताई जी, ताऊ जी और उनके दो बेटा बहू रहते थे। दस कदम की दूरी पर निशांत के चाचा का घर था जिसमें चाचा, चाची और उनका एक शादी लायक बेटा रहते थे। सबका आना जाना लगा ही रहता था।
निशांत और उसके ताऊजी के बेटों की शादी करीब करीब दो-तीन महीने के फेर पर ही हुई थी। शादी को दो साल बीत गए थे। ससुराल में भी अपने हँसमुख स्वभाव और काम में निपुणता की वजह से श्रेया ने सबका मनमोह लिया था। निशांत और कमलेश जी (श्रेया की सास) फूले न समाते थे श्रेया की तारीफें सुन कर।
ऐसे तो श्रेया का ससुराल इतना बड़ा था कि वहां के कामों से छुट्टी मिल पाना मुश्किल था पर श्रेया शादी से पहले भी नौकरी करती थी तो शादी के तीन महीने के बाद ही श्रेया ने दोबारा नौकरी करना शुरू कर दी। अब शादी से पहले वाली नौकरी की बात कुछ और थी जहां श्रेया को सिर्फ नौकरी पर ध्यान देना होता था घर के कामों के लिए माँ थीं श्रेया के पास तो मिल जुल कर श्रेया अपनी माँ की मदद कर देती थी, घर के कामों में तो कभी नौकरी करना खलता नहीं था मगर शादी के बाद वाली नौकरी घर की पूरी जिम्मेदारी के साथ थी।
सास ने अभी बच्चे के लिए ज्यादा ज़ोर नहीं डाला था। श्रेया और निशांत को पांच साल का समय दे दिया ये कह कर कि "पुराने ज़माने में बच्चे पांच साल के बाद ही होते थे क्योंकि श्रेया अभी 22 साल की है तो अभी तुम दोनों के पास समय है इसलिए आराम से ज़िन्दगी जिओ।"
कमलेश जी का मानना था कि घर के काम सिर्फ बहुओं के होते हैं मगर बाहर के काम भी श्रेया को करता देख खुश होती थीं जिसपे उनके विचार थे कि एक औरत को हर तरह से अपने पति का सहयोग करना चाहिए आखिर घर गृहस्थी की गाड़ी दोनों के सहयोग से चलनी चाहिए मगर उनके सहयोग का मतलब सिर्फ श्रेया के सहयोग से था जो घर बाहर दोनों में पति का सहयोग दे बस। उनके इस सोच से निशांत भी पूरी तरह सहमत था।
कमलेश जी और निशांत खुश तो बहुत होते थे श्रेया को सारे काम निपुणता से करता देख मगर ये नहीं सोचते थे कि श्रेया भी आखिर थी तो इंसान ही कोई मशीन तो नहीं। कमलेश जी और निशांत के पुराने खयालातों की वजह से श्रेया को घर के कामों में निशांत की एक भी मदद प्राप्त न होती थी। कभी बीमार हो जाए तो भी श्रेया को गोली लेकर उठना पड़ता था मगर क्या मजाल कि कमलेश जी और निशांत श्रेया की भी आवभगत कर दें। अपने संकोची स्वभाव के कारण श्रेया कमलेश जी को क्या निशांत तक को भी कुछ कह नहीं पाती थी जिसका फायदा वे दोनों जने उठाते थे।
निशांत को बड़ा ही वी आई पी ट्रीटमेंट मिलता था। ऑफिस से आने के बाद निशांत की जिम्मेदारी तो खत्म हो जाती थी पर श्रेया की डयूटी कभी खत्म न होती थी। श्रेया घर आते ही सबके लिए चाय बनाती फिर खाने की तैयारी में जुट जाती और निशांत कमलेश जी, करमचंद जी और जुगल(श्रेया का देवर) मज़े से सोफे पर बैठ चाय की चुस्कियों के साथ बतोले बाज़ी का दौर घंटों चलता रहता था पर श्रेया की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता था।
श्रेया को ये सब देखकर बड़ी ही घुटन होती थी। वो अंदर ही अंदर तिलमिला कर रह जाती थी। सोचती थी क्या कभी ऐसा भी क्षण आएगा जब मुझे भी वी आई पी ट्रीटमेंट मिलेगा। मैं बैठूंगी और ये सब लोग काम करेंगे। ऐसे चलते श्रेया को दो साल हो गए।
कहते हैं भगवान के घर देर है अंधेर नहीं आखिर श्रेया की ज़िंदगी में भी ऐसा दिन आया जब श्रेया को भी वी आई पी ट्रीटमेंट मिला। हुआ यह कि एक रोज़ श्रेया मैट्रो से वापस ऑफिस से घर आ रही थी अचानक उसका पैर ट्रेन से उतरते हुए मैट्रो और स्टेशन के बीच वाली जगह में गलती से फँस गया।
पाँव इस कदर फँसा कि नस उतरने की वजह से दो महीने का कच्चा प्लास्टर ही कराना पड़ा और श्रेया को बिस्तर पर ही आराम करने के लिए बोला गया।
जो घर श्रेया ने सुव्यवस्थित रखा था आज वही घर पूरी तरह से अव्यवस्थित हो रखा था। पिछले तीन सालों से कमलेश जी ने घर के कामों में हाथ तक न लगाया था तो जाहिर सी बात है घर के कामों की ऐसी शामत तो आनी ही थी। सब कुछ अपनी जगह से अव्यवस्थित हो गया। घर पूरा बिखरा पड़ा रहता। निशांत को घर का काम न आने की वजह से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता।
कभी शर्ट बिना धुली पहन कर चला जाता कभी खाना लिए बगैर ही ऑफिस चला जाता। घर आकर भी खाना समय से न मिलता था। चाय के लिए भी तरस जाता था। अब कमलेश जी से रहा न गया तो निशांत को मदद के लिए कहतीं। कमलेश जी को बहुत बार तो सुबह की चाय भी नसीब न होती।
अब रह रह कर निशांत और कमलेश जी को श्रेया की थकावट महसूस हो रही थी कैसे श्रेया ऑफिस जाने से पहले सुबह सबको चाय देकर, सब घर का काम करके खाना नाश्ता बना कर, निशांत की शर्ट प्रेस कर के टिफिन पैक कर ऑफिस जाती थी और शाम को भी आके जुट जाती थी बिना एक चाय का कप हाथ में लिए। आज कमलेश जी को और निशांत को सुबह के श्रेया के कप की अधूरी छूटी चाय याद आ रही थी।
ये सब देख कर भी श्रेया अव्यवस्थित चीज़ों के बीच भी आज बहुत सुकून से थी। अब चाय, नाश्ता, खाना सब उसको बेड पर ही मिलता था किसी वी आई पी ट्रीटमेंट से कम न था। दो महीने का बस आराम ही आराम। मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद करती थी उस हादसे के लिए और कहती थी
"चलो कुछ दिनों की ही सही पर राजा तो बनी"...कह कर खुशी वाली मुस्कान उसके चेहरे पर आ जाती थी।
दो महीने बाद श्रेया का प्लास्टर हटने के एक हफ्ते बाद वैसी ही घर से ऑफिस और ऑफिस से घर की कवायद शुरू हो गई पर इस बार कमलेश जी और निशांत की मदद के साथ ज़िंदगी की नई शुरुआत हुई। अब श्रेया भी सबके साथ बैठकर सुबह शाम की चाय पीती और सब मिल जुल कर खाने की तैयारी और घर के कामों में मदद करते करते दिन हँसी खुशी गुज़रते हुए पता न चला कब श्रेया की गोद हरी हो गई। अब निशांत और श्रेया हम दोनों से हम तीनों हो गए।
दोस्तों अगर कोई औरत को कभी कभी ऐसे छोटे मोटे हादसों से वी आई पी ट्रीटमेंट मिल जाए तो क्या बुरा है फिर उसके लिए तो ईश्वरिए धन्यवाद बनता ही है न।