मिली मज़बूत पहचान हिंदी से
मिली मज़बूत पहचान हिंदी से


हिंदी में पहचान बनाने का मेरा दिलचस्प सफर आपको बताती हूँ। मुझे बचपन से हिंदी बहुत पसंद थी। हिंदी में बात करना, कुछ भी लिखना पढ़ना मुझे बेहद पसंद था। पर मेरे माता पिता मुझे अच्छी अंग्रेजी बोलनी आ जाए उसके लिए मेरा दाखिला दूसरी कक्षा में एक अच्छे क्रिश्चन स्कूल जो की कांवेन्ट था उसमें कराया।
उनका मानना था कि बच्चे को अंग्रेजी का ज्ञान होना अतिआवश्यक है। पिताजी सरकारी विभाग में उच्च पद पर नियुक्त थे और अक्सर ही शहर से बाहर काम के सिलसिले में जाना पड़ता था और माताजी मेरी हिन्दी की अध्यापिका थीं इसलिए माँ की हिंदी और पिताजी की अंग्रेजी काफी अच्छी थी।
मुझे भी बचपन से हिंदी की अध्यापिका बनने का शौक था अपनी माँ की तरह पर माता पिता मेरे अंग्रेजी पर ज़ोर देते थे। उनका मानना था कि आज के दौर में अगर आगे बढ़ना है तो अंग्रेजी आना आवश्यक है।
अब मैं पांचवीं कक्षा में पहुंचते पहुंचते तक अंग्रेजी में अपनी पकड़ बना चुकी थी। चटर पटर फरराटेदार अंग्रेजी में तो कोई भी कुछ भी पूछ लेता बहुत बेबाकी से बात कर लेती। ये देखकर मेरे माता पिता को बहुत संतोष पहुंचता पर मेरे मन में अभी भी हिंदी में ही कुछ कर सकने की चाह ज्यों की त्यों थी जिसे साबित करने के लिए मुझे किस्मत ने मौका दिया।
हमारे स्कूल में छठी कक्षा से हिंदी की कहानियों की प्रतियोगिता होती थी तो मैंने छठी कक्षा में उस हिंदी प्रतियोगिता का सामना किया जो हमारी कक्षा के सभी छात्रों को 3मिनट में एक कहानी प्रार्थना कक्ष में सभी, शिक्षक गण, छात्र गण, और प्रिंसिपल महोदया के समक्ष मंच पर खड़े होकर प्रस्तुत करने को कहा गया।
ऐसे बचपन से अंग्रेजी में बहुत बार प्रतियोगिताएं की थीं पर हिंदी में पहली बार मंच पर कुछ बोलने का अवसर मिला था और मैं ये मौका खोना नहीं चाहती थी पर कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या कहानी 3 मिनट में सुनाई जाए। यही सोचते सोचते मंच पर चढ़ी। अचानक दिमाग ने ऐसी कहानी गढ़ी कि बस अगले 3 मिनट तक माइक पर बिना रुके बोलती रही।
3 मिनट बाद जब प्रार्थना सभा में मेरा ध्यान गया तो देखा सब स्तभ हो मुझे ही सुन रहे थे। पूरे सभा में सन्नाटा छा गया था। मुझे लगा कुछ गलत हो गया तो मैं मंच पर से उतर कर जाने लगी तभी तालियों की गड़गड़ाहट मेरे कानों में सुनाई पड़ी और साथ ही सभी छात्र गण ने 'एक बार और' 'एक बार और' बोलकर मेरा उत्साह बढ़ाया तब लगा कि जैसे मैंने जग ही जीत लिया हो और हिंदी में पहचान बनाने का मेरा हौसला और पुख्ता हो गया जब महज 12 साल की उम्र में मुझे मेरा प्रथम पुरस्कार हिंदी की प्रतियोगिता मिला।
उसके उपरांत हिंदी इस कदर जहन में समाई और बस बचपन से लिखना शुरू हो गई। मेरी मेहनत रंग लाई और हिंदी ने मुझे पहचान दिलाई एक हिंदी लेखिका के रूप जब मेरा पहला लेख हिंदी में दैनिक जागरण अखबार की एक प्रतियोगिता के तहत छपा। उसके बाद तो जैसे मेरी कलम ने रुकने का नाम नहीं लिया। मेरी कलम लिखती गई और मेरी कविताएं और कहानियां कभी अखबार कभी पत्रिकाओं में छपती रही और एक मज़बूत पहचान हिंदी लेखिका के रूप में मिल गई।
अब जब लोग ये कहते हैं आपकी कहानियों और कविताओं से हमारी समस्या का हल मिल जाता है तो सोच कर एक गर्व की अनुभूति होती है क्योंकि पहले तो मैं अपने एहसासों को वयक्त करने में असमर्थ थी तो दूसरों के कैसे करती परंतु अब अपने एहसासों को कैसे अभिव्यक्त करना है इसका आत्मविश्वास हिंदी ने भीतर तक जगा दिया है।
हर माता पिता का सपना होता है उसके बच्चे किसी मुकाम पर पहुंचे और आज मेरे माता पिता को मुझ पर बेहद गर्व है मुझे इस मुकाम पर पहुंचते देख। मुझे गर्व है मेरी प्यारी भाषा हिंदी पर।