वंशिका (कहानी)
वंशिका (कहानी)
आसमान में गहरी काली घटाएं चारों तरफ से उमड़ घुमड़ रही थी। पूरी रात तेज बारिश हो चुकी थी और अब तेज हवा के साथ हल्की-हल्की बौछार चारों तरफ के वातावरण को नम बना रही थी।
वंशिका 8 बजने के बाद भी अपने बिस्तर में ही थी ।उसका पति मनीष ब्रश करके फ्रेश होने के लिए जा चुका था। बजते हुए अलार्म ने उसकी नींद को बरबस ही खोल दिया।
वंशिका वैसे भी ऑफिस से परेशान होकर रात को 8:30 बजे घर आई थी। ऊपर से उसकी सास की टोका टाकी की आदत उसे घाव में नमक की तरह महसूस होती थी। घर में आते ही अरुंधति अपनी बहू वंशिका को सीधे और परोक्ष रूप में कुछ ना कुछ सुनाती ही रहती थी।
रात को भी उसके देर से आने के लिए अरुंधति ने उससे देर से आने का कारण जाने बगैर कुछ भी अनाप-शनाप बोलना शुरू कर दिया। किचन में खाना बनाते हुए वह बड़बड़ा रही थी ।
"यह समय है महारानी के आने का!!! हम तो इस घर के नौकर हैं!!!!! जो इन की रोटी बनाकर तैयार करके दे!!!! और फिर थाली लगाकर महारानी जी के सामने रखें ?!!!!हमारे तो भाग्य फूट गए हैं !!!!अरे!! देखो !!देवेंद्र की बहू सास की कैसी आदरादर सेवा करती है और एक ये है हमारी महारानी!!"
वंशिका परेशानी में तो थी ही उसने भी लौट कर अम्मा जी को तेज आवाज में जवाब दे दिया।
"अम्माजी!!! जब आपके बस की नहीं है तो क्यों काम करती है आप??? कल से हम एक कामवाली बाई लगा लेंगे !वह खाना बना जाएगी ।आपका भी और हमारा भी। आप आराम से बैठे-बैठे खाइए।लेकिन इस तरीके की बातें हमें सुनाने की जरूरत नहीं है। अन्यथा आपको भी बहुत कुछ सुनना पड़ेगा। फिर हमें दोष मत दीजिएगा।"
अम्मा जी इतना सुनकर खाना बनाना छोड़कर वहीं किचन में बैठकर रोने लगीं। उनके पति का देहांत अभी कुछ महीने पहले ही हुआ था।
मनीष उनका इकलौता बेटा था जो एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी में काम करता था।
उनकी बहू भी एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी में काम करती थी। उन दोनों को ऑफिस में अपनी टारगेट पूरे ना होने के कारण अक्सर डांट खाना पड़ती थी। वह फ्रस्ट्रेशन वो लोग कभी एक दूसरे पर उतरते थे और कभी-कभी अपनी मां अरुंधति के ऊपर।
अरुंधति ने रोते हुए बहु पर कई तरह के आरोप लगाना चालू कर दिया ।अपने कमरे में बैठे मनीष के लिए अब बड़ी कठिन स्थिति पैदा हो गई थी।
वह न तो अपनी पत्नी से कुछ कह सकता था और न ही उसकी हिम्मत थी कि वह अपनी मां को कुछ कहे।
उसने अपने आप को असहाय पा कर घर से बाहर किसी काम के बहाने निकल जाने में ही अपनी भलाई नजर आई। और वह चुपचाप कुछ सामान लेने के बहाने बाजार चला गया।
रोज-रोज की चिक चिक से तंग आकर वंशिका ने अपने मन में विचार किया की अब वह अपनी सास के साथ नहीं रहेगी उन्हें अपने गांव वाले घर में अकेला रहने के लिए भेज देगी और उन्हें कभी-कभी कुछ पैसे भेज दिया करेगी। कम से कम घर में शांति तो रहेगी।
उसने यह सोचकर माताजी को फरमान सुना दिया
" अम्मा जी! कल आप अपना सामान बांधकर यहां से अपने गांव वाले घर चली जाइए।"
"हम आपको आपके गुजर बसर के लायक पैसे हर माह यहां से भेज दिया करेंगे। आपको भी शांति मिलेगी और हम भी चैन से रह पाएंगे। "
इतना कहकर पैर पटकते हुए नहा धोकर वंशिका ऑफिस के लिए निकल गई।
मनीष कुछ देर बाद बाजार से वापस आए और बिना मां से बात किए हुए चुपचाप नहा धोकर ऑफिस के लिए चले गए।
रास्ते भर वंशिका क्रोध की ज्वाला में झुलस्ती रही। और अपने ऑफिस के काम में व्यस्त हो गई।
लंच टाइम में कैंटीन में लंच करके जैसे ही वह बाहर आई तभी अचानक मायके से उसकी मां का फोन आया ।
फोन पर रोते हुए उसकी मां ने कहा
"वंशिका देखो तो कैसा जमाना आ गया है? मेरा बेटा अनिल अब मुझसे ही बात नहीं करता और मेरी बहू मुझे हर पल लड़ती झगड़ती रहती है।"
रोते हुए उन्होंने आगे कहा
"कल तो हद ही हो गई उसने मुझे घर से जाने का कह दिया और देखो तो अनिल चुपचाप सुनता रहा उसने भी एक बार विरोध नहीं किया कि मां को घर से नहीं निकालना है। मुझे लगता है कि मुझे अब अपने पुराने वाले घर में इन दोनों का साथ छोड़ कर जा चले जाना चाहिए ।इसी में मेरी भलाई है।"
यह सुनकर वंशिका की आंखें भर आई। उसने कहा
"भैया कैसे बेशर्म हो गए हैं? जो अपनी मां का भी ध्यान नहीं रख सकते!! भाभी की तो बात ही अलग है! मैं भैया से बात करूंगी!!! आप चिंता मत करो। "
वंशिका ने भैया को फोन लगाया और भैया को डांटने लगीं।
अनिल ने फोन पर कहा !
"दीदी आपकी भी सास है! आपका भी पति है! जैसे मैं बेबस हूं इस तरीके से वह भी शायद विवश रहते होंगे! हर घर की एक ही कहानी है !हर घर में सिर्फ औरतों की चलती है !बताओ मैं क्या करूं। "
भैया की बात सुनकर अब वंशिका को एहसास हुआ की उसका पति मनीष भी तो अपनी मां के घर छोड़कर जाने के बारे में उसके गुस्सा हो जाने के डर से कोई विरोध नहीं कर रहा है।
अब उसे अपनी विधवा सासू मां की बेबसी याद आई। उसे महसूस हुआ कि जैसे उसकी मां को घर से निकलने की बात सुनकर उसे दुख हो रहा है, उसी तरीके से मनीष को भी अपनी मां के घर से चले जाने की बात सुनकर बहुत दुख हुआ होगा।
उसने उसी वक्त निश्चय कर लिया कि घर जाकर वह अपनी सास को मनाएगी और उसे किसी भी तरह अपने गांव वाले घर नहीं जाने देगी।
शायद उसके इसी कर्म से उसकी मां को भी अपने बहू बेटे के साथ रहने का मौका मिल जाए।
जब वह घर पहुंची तो उदास अरुंधति ने अपनी अटैची तैयार कर रखी थी और कपड़े पहनकर अपने गांव जाने के लिए एकदम तैयार होकर बैठी थी ।पर बेबसी में रो-रो कर उनकी आंखें लाल हो गई थी।
वंशिका ने मां की अटैची उठाई और उसे मम्मी के कमरे में ले गई और उसके सारे कपड़े निकाल कर यथा स्थान जमा दिए । बाहर आकर अपनी सास के गले में हाथ डालकर बोली।
" मां !!!गुस्से में मैं आपसे कुछ उल्टा सीधा बोल दिया था अपनी बेटी समझ कर मुझे माफ कर दीजिए!! और इस घर से कभी भी जाने का मत सोचिएगा!!! मुझसे यदि कोई गलती हो भी जाए, तो मेरे कान खींचकर ठीक से डांट लगा दिया कीजिए।" यह कहते हुए वंशिका की आंखों से आंसू झरने लगे।
रोते हुए सास ने अपनी बहू को गले से लगा लिया और उसके माथे पर चुंबनों की झड़ी लगा दी।
