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S N Sharma

Abstract Classics

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S N Sharma

Abstract Classics

रूपा (लघुकथा)

रूपा (लघुकथा)

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अपनी पत्नी सुनीता की मृत्यु के बाद रामदयाल जी बहुत अकेले हो गए थे। उनका एकमात्र सहारा उनकी इकलौती बेटी रूप थी।
रूपा सब गुण निधान बेहद सुंदर नयन नक्श वाली, लंबे खड़की कद की गोरी चिट्टी थी युवती थी। पढ़ाई लिखाई में भी वह अपनी क्लास में हमेशा अब्बल रहती थी।
मां-बाप की इकलौती बेटी होने के कारण वह बहुत जिद्दी और नकचढ़ी थी। बात-बात में बहुत तेज बोल देना इसकी सामान्य सी आदत थी।
माता की मृत्यु के बाद पिता की वह और भी लाडली हो गई थी।  उसकी हर बात को पूरा कर देना पिता अपना कर्तव्य समझते थे।
  रूपा के रिश्ते की बात कई जगह चली ।बहुत सारे रिश्ते अपने आप रामदयाल जी के पास आए पर किसी न किसी कमी को निकाल कर रिश्ते आगे न बढ़ सके।
कुछ रिश्ते रामदयाल जी को पसंद नहीं आते थे तो कुछ रूपा को ।अंत में जयंत के ऊपर जाकर रामदयाल जी की खोज फाइनल हुई । अच्छी कद काठी का गोरा चिट्टा बेहद सुंदर मृदु भाषी जयंत एक मल्टीनेशनल कंपनी में ऊंची तनख्वाह पर काम करता था और घर में सिर्फ उसकी माताजी थी इतने छोटे परिवार को देखकर रामदयाल जी ने बेटी की सहमति से यह रिश्ता वहां फाइनल कर दिया।

       जब बेटी की शादी हुई, तो वह अपने ससुराल गई। शुरुआत में, सब कुछ ठीक था, लेकिन धीरे-धीरे रूपा को ससुराल में कुछ चीजें पसंद नहीं आईं । घर में जयंत की माताजी सुबह 5:00 बजे जाग जाती थी और रूपा को दो सुबह देर तक सोने की आदत थी। जयंत की मां ने बड़े स्नेह के साथ उसे जल्दी उठने की आदत डालने को कहा ताकि समय से जयंत के ऑफिस जाने के पहले खाना वगैरा बन सके । पर जल्दी उठना तो रूप के बस का था ही नहीं उसने एकदम स्पष्ट शब्दों में अपनी सास से कहा।
"माताजी मेरी जल्दी उठने की आदत नहीं है। मैं किसी भी स्थिति में 8:30 से पहले नहीं उठ पाऊंगी। "
समझदार माताजी चुपचाप उसकी बात सुनकर रह गईं। पर जयंत को रूपा के द्वारा अपनी मां की अवज्ञा करते देखकर बहुत बुरा लगा उसने रूपा से कहा।
" रूप मां को इस तरीके से जवाब नहीं दिया जाता है ।मां ने जल्दी उठने का कहा है तो आपको जल्दी उठना ही है।"
क्रोधित होकर रूपा ने कहा
"मैं सुबह जल्दीनहीं उठूंगी, तो नहीं ही उठूंगी। 8:30 से पहले उठना मेरे बस का नहीं है। न मैं सुबह जल्दी उठकर आपको चाय बना कर दे पाऊंगी।"
बस यहीं से रूपा की जिंदगी में कलह शुरू हो गई।
अब जयंत और उसकी मां की हर बात उसे अपनी आलोचना लगने  लगी और परिणाम स्वरूप  जयंत और उसकी माताजी कलह को सीमित करने के लिए रूप से कम बात करने लगे। इस तरह घर का वातावरण बोझिल होता चला गया।
रूपा की जिद के कारण उसे घर का माहौल बेहद उग्र हो गया। अब रूप को अपना घर एक जेल खाना लगने लगा।
वह अपने पति और सास से छोटी-छोटी बातों पर लड़ने लगी। इससे घर का माहौल तनावपूर्ण हो गया और परिवार के सदस्यों के बीच मतभेद बढ़ने लगे।
      एक दिन, जब बेटी अपने पिता के घर आई, तो पिता ने देखा कि वह उदास थी। पिता ने पूछा, "बेटी, क्या बात है? तुम्हारे ससुराल में सब कुछ ठीक तो है?"

बेटी ने बताया कि ससुराल में उसे कई चीजें पसंद नहीं आतीं और वह जिद करती है, लेकिन इससे घर का माहौल खराब हो जाता है।

पिता ने समझाया, "बेटी, ससुराल में जिद करना और अनावश्यक बातों पर लड़ना सही नहीं है। इससे न केवल तुम्हारी परेशानी बढ़ेगी, बल्कि पूरे परिवार को भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।"

पिता ने आगे कहा, "एक नदी जब तक अपने किनारों के बीच बहती है, तब तक वह शांत और स्वच्छ रहती है। लेकिन जब वह किनारों को पार कर जाती है, तो वह विनाशकारी हो जाती है। इसी तरह, एक बेटी को अपने ससुराल में संतुलन बनाए रखना चाहिए और अनावश्यक जिद से बचना चाहिए।"

रूपा ने पिता की बात समझ ली लंबे समय तक पिता के पास जाकर रहने का रूपा का विचार तुरंत बदल गया। वह अगले दिन ही अपना सामान पैक करके वापस ससुराल लौट आई। और अपने ससुराल में जाकर व्यवहार में बदलाव लाया। उसने छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज करना शुरू किया और परिवार के साथ सामंजस्य बिठाने की कोशिश की। इससे घर का माहौल सुधर गया और परिवार के सदस्यों के बीच प्यार और समझ बढ़ी।
अब रूपा अपनी सास की बहू न रह कर उनकी लाडली बेटी बन गई और वह उसे बहुत प्यार करने लगी। जयंत तो पहले ही उसे बहुत प्यार करता था ,अब वह सही अर्थों में जयंत के मन मंदिर की अधिष्ठात्री बन गई।


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