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S N Sharma

Others

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S N Sharma

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बुजुर्ग

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75 साल के रामदास अपने फ्लैट की बालकनी में बैठे थे। उनकी लगातार बात करने की आदत उनके बेटा और बहू और युवा पोते पोती को बहुत नागवार गुजराती थी। रामदास जी दिनभर अपने आसपास पड़ोस के लोगों से कुछ ना कुछ बात किया करते थे! उनके ठहाके और संजीदगी भरी बातें, दोनों ही चीज उनके घर परिवार को नागवार गुजरती थीं

नहा धोकर उनकी उनके दुर्गा सप्तशती के श्लोक और दूसरे मंत्र 1 घंटे के लिए शुरू हो जाते थे। उनके जोर-जोर से उच्चारण के कारण घर के सभी सदस्य बेहद परेशान हो जाते थे। और उनके आसपास से इधर-उधर हो जाते थे।

   केवल उनका बेटा अमन दिल्ली सेअपनी दिनभर की ड्यूटी करके वापस रात को जब अपने घर मथुरा आता था तब वह समय निकालकर अपने पापा से कुछ देर तक अवश्य बात करता था। बाकी न तो बहु को और न ही पोता पोतियो को उनकी बातों में दिलचस्पी थी, और न हीं उन पर समय था ।क्योंकि वह सब युवा हो गए थे और उन्हें अपनी पढ़ाई और दोस्तों के अलावा किसी और के लिए समय ही नहीं था। 

रामदास जी के घर के सामने ही जयंती रहती थी। वह भी लगभग 70 वर्ष की विधवा थी। पति की मौत के बाद वह एकदम शांत हो गई थी कोई उससे बात करता तो बस हां हूं मैं जवाब दे देती थी ।न किसी से बात करना न अपना मुंह खोलना। बस चुपचाप बैठे रहना और सुनने में ताकते रहना। यही उसकी दिनचर्या थी। 

जयंती के दो बेटे बहुएं और उनके चार बच्चे थे ।दोनों बहू अम्मा जी से सहानुभूति तो रखती थीं,पर क्योंकि अम्मा जी कम बात करती थीं,इसलिए उनसे परिवार के सदस्यों की बात कम ही होती थी। 

 हर वर्ष की तरह  इस बार भी मोहल्ले के बुजुर्गों को एक नई तीर्थ यात्रा पर मथुरा से अयोध्यापुरी जाना था। इसमें मोहल्ले के लगभग 15 बुजुर्ग पुरुष और महिलाएं एक ट्रैवलर बुक करके इवेंट मैनेजर की देखरेख में अयोध्यापुरी के लिए रवाना हो गए। 

अयोध्या में भगवान राम के मंदिर के दर्शन करने के बाद बाकी सब लोग तो लौट आए पर जयंती न जाने कहां खो गई।

सभी लोगों ने उन्हें खोजने की बहुत कोशिश की पर वह कहीं कहीं नहीं मिली। 

जयंती के बेटे बहुएं और पोते पोतियां सभी लोग बहुत परेशान हो गए। वे सभी अम्मा को बहुत प्यार करते थे। सब का रो रो कर बुरा हाल था।

रामदास जी ने जयंती को हर जगह खोजा ।पर जयंती कहीं नहीं मिली। 

रामदास जी अपनी पड़ोसन के खो जाने के कारण बेहद दुखी थे। वह जानते थे की जयंती को भूलने की बीमारी है। वह अक्सर अपना नाम पता भी भूल जाती है ।किसी से बात ही नहीं करती । वह किसी को बता भी नहीं पाएगी उसका घर कहां है और उसका क्या नाम है। और वह किस शहर की रहने वाली हे।इसी बात से वह बुजुर्ग बहुत दुखी थे। 

पुलिस में रिपोर्ट लिखाने के बाद ट्रैवलर वापस लौटने लगी। रामदास जी जिद करके अयोध्यापुरी में ही रह गए उन्होंने कहा मैं आऊंगा तो जयंती बहन को लेकर ही आऊंगा।

तीन दिन ऐसे ही बीत गए एक दिन रामदास जी एक मंदिर में दर्शन करने के लिए गए वहां पर संकीर्तन ग्रुप की कई महिलाएं भगवान का भजन कर रही थी उन्ही में जयंती भी बैठी थी। उन्होंने संकीर्तन मंडली को बताया कि यह मेरी जयंती बहन है इन्हे भूलने की आदत है। 

संकीर्तन मंडली के अध्यक्ष फूलों देवी ने बताया कि यह महिला रात्रि को मंदिर के पास सीढ़ियों पर बैठी हुई थी। किसी से कोई बात नहीं कर रही थी। ये अपने नाम पता भी नहीं बता रही है। अगले दिन सुबह भी ये वहीं बैठी थी इसलिए हम लोगों ने इसे अपनी मंडली में शामिल कर लिया ।यह अपने बारे में कुछ भी नहीं बता रही थी। अच्छा रहा आपने हमें बता दिया ।आप इन्हे ले जाइएगा।

पुलिस थाने की फॉर्मेलिटी पूरी करके रामदास जी जयंती को लेकर वापस मथुरा चले आए। 

 अगले दिन उन्हें डॉक्टर को दिखाने पर डॉक्टर ने कहा।। "क्योंकि जयंती किसी से बात नहीं करती है ,इसलिए इन्हें भूलने की बीमारी अलजमाइजर्स हो गई है! 

रामदास जी ने कहा "यह तो मुझसे 7 साल छोटी है ।फिर मुझे यह बीमारी क्यों नहीं हुई। "

डॉक्टर ने कहा "रामदास जी!!! आप लगातार लोगों से बात करते रहते हैं !भजन करते रहते हैं! मंत्र बोलते रहते हैं !इस कारण आपका दिमाग लगातार सक्रिय रहता है! इसी कारण आपको यह भूलने की बीमारी नहीं हुई। अन्यथा बुढ़ापे में लोगों को भूलने की बीमारी अक्सर हो जाती है। "

आज रामदास जी के परिवार के सदस्यों को रामदास जी की ज्यादा बात करने की खासियत,उनकी खराब आदत की जगह बहुत अच्छी लगने लगी थी। उन्हें उन्हें लग रहा था कि अच्छा है दादाजी बात करते हैं कम से कम भूल कर ये इधर-उधर तो नहीं रह जाते ।अगर रह जाएंगे तो हम इन्हें कैसे खोजेंगे? इससे तो अच्छा है कि वह लगातार बातें करते रहें और स्वस्थ रहें! सभी लोग रामदास जी के गले लग गए।



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