एहसास
एहसास
वह शायद कुदरत का अजूबा थी ।जब उसने उसे अपनी कक्षा XI में केमिस्ट्री की क्लास लेते समय सुजीत ने पहली बार देखा तो बस उसे देखता ही रह गया। उस पहाड़ी ठंडे प्रदेश के उस स्कूल में में यह 24 वर्षीय सुजीत की पहली पोस्टिंग थी।
जंगलों से आच्छादित इस वनप्रदेश के टीन शेड में चलने वाले अस्थाई स्कूल में उस क्षेत्र के तमाम सैनिकों के बच्चे पढ़ने आते थे। उन्ही बच्चों में वह लड़की भी थी। अंजना! हां शायद यही नाम था !उस लड़की का।
स्कूल ड्रेस में काले घने बालों की दो चोटी किए हुए, लाल रिबन लगाएं , नीली स्कर्ट और चमचमाती सफेद कमीज, पैरों में काले जूते और पिंडलियों तक आते सफेद मोजे पहने उस लड़की के चेहरे पर एक मनमोहक सजीली मुस्कान, और गुलाबी गालों में बनते मनमोहन सुंदर डिंपल अनजाने में ही कक्षा में पढ़ाने के दौरान, सुजीत के मन को बरबस ही अपनी तरफ खींच लेती थी।
अंजना पढ़ाई में भी अन्य बच्चों से काफी आगे थी। पढ़ाई में अच्छी होने की शायद एक वजह यह भी थी, कि उसके पापा एयरफोर्स में ऑफिसर की पोस्ट पर थे।
जो बच्चे पढ़ने में अच्छे होते हैं वे अकसर चिंता से मुक्त होते हैं। और शायद यही कारण था कि हमेशा उसके चेहरे पर एक चुलबुली सी मुस्कान सजी रहती थी।
केमिस्ट्री की कठिन से कठिन चीजों को समझ लेने की उसकी अद्भुत क्षमता सुजीत के मन को उसकी तरफ और भी आकर्षित करती रहती थी।
गोरा चिट्टा रंग , मध्यम कद काठी की उस दुबली पतली लड़की में एक ऐसा सम्मोहन था जो सभी को उसकी ओर बरबस ही आकर्षित करता था।
अपनी कक्षा में पढ़ाई के दौरान लगभग सभी प्रश्नों का उत्तर देने के कारण और सारे न्यूमेरिकल को ठीक से कर लेने के कारण अंजना सुजीत की सबसे प्रिय शिष्य बन गई। पीरियड में पढ़ाई के दौरान सुजीत को है ऐसा भ्रम सा होने लगा था के जैसे वह पूरी कक्षा को न पढ़ा कर केवल अंजना को ही पढाता है।
यू तो अंजना स्टेज एक्टिविटीज में काफी आगे थी, उसने न जाने कितने गीत, कितनी कविताएं स्टेज से स्कूल को सुनाई थी। इसी कारण वह सारे शिक्षकों और विद्यार्थियों में लोकप्रिय थी।
एक दिन कक्षा 11 के बच्चे अपने शिक्षक शिक्षिकाओं के साथ पिकनिक पर गए । पिकनिक स्पॉट नेपाल की हिमालय रेंज से निकला हुआ एक झरना था जो आगे जाकर एक दुबली पतली नदी का रूप ले लेता था झरने के आगे से कुछ दूर जाकर उसके ऊपर लकड़ी का एक लोहे की रस्सियों पर झूलता हुआ पुल था, जो पैदल यात्रियों और मोटरसाइकिल सवार लोगों के आने जाने का साधन था।
पिकनिक के दौरान कुछ बच्चियों के साथ अंजना इस पुल के ऊपर चली गई। पुल के ऊपर से नीचे बहती हुई नदी और नीचे नदिया के जल में अस्ताचल गामी सूरज की लहरों के साथ आठखेलिया करती हुई छवि उसे आह्लादित कर रही थी। उसने नीचे एक पत्थर की सिला पर बैठे हुए सुजीत सर को आवाज़ लगाई ।
"सर !!!!!ऊपर इस ब्रिज पर आईए!!!!!! यहां आकर मैं आपको प्रकृति का एक अजूबा दिखाती हूं।"
और सुजीत उस पुल पर चले गए। वहां जाकर उन्होंने भी अंजना के साथ जंगलों के बीच अस्त होते हुए सूरज का और नदी का वह रम्य नज़ारा देखा।
प्रकृति की इस खूबसूरती का एहसास सुजीत को पहली बार हुआ। लकड़ी के पुल की एक लकड़ी टूट कर नीचे झूल गई थी अंजना का अचानक ही पैर स्लिप होकर उस टूटी लकड़ी की खाली जगह से नीचे की तरफ चला गया। और अंजना अनजाने में ही सुजीत के कंधे पर झूल गई।
सुजीत की मजबूत बाहों ने अंजना को उसी समय थाम लिया। और अंजना का यह पहला स्पर्श सुजीत को एक नई दुनिया में ले गया।
सुजीत ने अंजना की आंखों झांकते हुए कहा
"संभाल कर खड़ी होइए ।इतने ऊपर से गिरने पर सारी हड्डियां टूट जाती मैडम।"
सुजीत के शरीर से अपने आप को सहारा देते हुए खोई हुई सी आवाज में अंजना ने कहा
"कैसे गिर जाती!!! मुझे संभालने के लिए आप तो खड़े हैं न मेरे पास"
विना एक शब्द बोले सुजीत अंजना की आंखों में झांकते रहे और फिर होले से उन्होंने अंजना को अपने से अलग कर दिया।
सभी लोग पुल से उतर कर नीचे आ गए और पत्थरों पर बैठकर जलपान करने के बाद अंताक्षरी खेलने लगे।
अंताक्षरी के दौरान सभी लोगों ने पूरे पूरे गाने सुनने शुरू कर दिए।
जब अंजना की बारी आई तो अंजना ने एक गीत सुनाया।
छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए
ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए।
प्यार से भी जरूरी कई काम है।
प्यार सब कुछ नहीं जिंदगी के लिए।
तन से तन का मिलन हो ना पाए तो क्या
मन से मन का मिलन कोई कम तो नहीं।
खुशबू आती रहे , दूर से ही सही
सामने हो चमन कोई काम तो नहीं।
चांद मिलता नहीं सबको संसार में।
है दिया ही बहुत रोशनी के लिए।
छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए
ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए।
सुजीत गाने के लिरिक्स में खोकर रह गए। अंजना के मुंह से यह गाना सुजीत को ऐसे लग रहा था जैसे लता मंगेशकर खुद ही यह गाना गा रही हों।
सुजीत का मन अंजना की तरफ वैसे ही खिंचा जा रहा था जैसे पके आम को धरती खींच लेती है।
इसके बाद का तीन महीने का समय परीक्षा की तैयारी में बीत गया।
अंजना और सुजीत अपने व्यवहार से एक दूसरे के प्रति आकर्षित तो होते रहे पर ना तो सुजीत नहीं कभी अपने मुंह से अंजना के प्रति प्यार का इजहार किया और ना ही अंजना ने।
वार्षिक परीक्षा जैसे ही पूरी हुई एक दिन अंजना स्कूल आई और सुजीत सर का हाथ थाम कर रुंधे गले से बोली।
"सर मेरे पिताजी की पोस्टिंग दिल्ली हो गई है। अब हम लोगों को जाना होगा! मुझे आपकी बहुत याद आएगी। "
आज पहली बार सुजीत ने उदास स्वर में कहा !
"अंजना तुम्हें भूलना तो शायद मेरे बस की भी बात नहीं है। स्टूडेंट तो मेरे सभी हैं पर मैं नहीं जानता की क्यों मेरा मन हमेशा तुम्हारे आसपास ही भटकता रहता है। ,"
आंखों में आंसू लिए हुए अंजना उस रोज जो स्कूल से गई तो फिर कभी स्कूल नहीं लौटी।
उदास सुजीत अनमने से अब भी कक्षा में जाते हैं और उन्हें उस कक्षा में जाकर हमेशा ऐसा एहसास होता है कि जैसे उस सीट पर आज भी अंजना बैठी है और केमिस्ट्री पढ़ रही है।

