कसक
कसक
87 वर्षीय अम्मा जी अपने छोटे बेटे के घर से अपने मंझले बेटे के घर इस वजह से चली आई थी क्योंकि बेटे को तेज बुखार था और लंबे समय से आ रहे बुखार ने उसे लगभग शक्तिहीन बना दिया था।
अम्मा जी वैसे तो अपने छोटे बेटे के घर को कभी छोड़ ही नहीं पाती थी। उसकी वजह थी उनकी छोटी बहू का स्वर्गवास हो गया था। उनका लाडला बेटा जो लगभग 65 वर्ष का था अब पूरी तरह उसकी बहू और बेटे के ऊपर निर्भर था। मां को लगता था की उनके पत्नी बिहीन बेटे की देख संभाल वह बेहतर ढंग से कर सकती हैं।
वैसे भी कहते हैं कि छोटा बेटा मन का बहुत लाड़ला होता है। मां का उस पर बेहद प्यार था। मां जी वैसे अपने बेटे को छोड़कर जाती नहीं ,पर हुआ कुछ यूं की उनके पोते की बहू ,जो वही उनके छोटे बेटे के साथ रहती थी उसने उन्हें काफी कुछ जली कटी बातें सुना दी थी। कहते हैं बहुत बुढे और जवान पीढ़ी में जेनरेशन गैप होता है ।इसको न तो अम्माजी समझती थींऔर न ही उनकी बेटे की बहू।
अम्माजी अपना ज्ञान देना नहीं छोड़ पातीं थी और उनके पोता और उसकी बहू अपने हिसाब से चलना नहीं छोड़ सकते थे। इसी कारण बे वजह ही उनके बीच में कहां सुनी हो जाती थी और वही कहानी कहा सुनी अम्मा जी के मांझले बेटे के यहां जाने का मुख्य कारण बनी।
अम्मा जी को मछली बेटे के यहां गए हुए लगभग 2 महीने हो गए थे। मंझला बेटा अब ठीक भी हो चुका था। वह अब अपनी ड्यूटी पर जाने लगा था ।अम्मा जी की वहां भी कोई खास पूछ नहीं थी।
उनका छोटा बेटा उन्हें बहुत प्यार करता था ।वह लगातार अम्मा जी को वापस आने के लिए मनाता रहता था ।पर अम्माजी अपनी इज्जत में जिद में मंझला बेटे के ही यहां रुकी हुई थी।
उनके मन में सिर्फ एक ही बात आती थी , कि छोटे की बहू जॉन से लड़ झगड़ चुकी थी वह क्यों नहीं उन्हें आने का रहती कायदे से घर के मालिक तो मालकिन तो अब वही है ना उसके मन में जरा भी यह ख्याल नहीं आता की उसकी दादी सास कितनी अकेली है और बुड्ढी है है और अब न जाने कितने दिन की उसकी जिंदगी है वही वह एक बार मुझे फोन करके आने का नहीं कर सकती क्या।
तो मैं भी क्यों जाऊं यदि वह मुझे नहीं बुलाती तो फिर भला मैं ही क्यों वहां जा पहुंच जाऊं।
पेंशन तो मुझे भी मिलती है जो मेरी जिंदगी गुजार करने के लिए पर्याप्त है बस एक मान सम्मान नहीं तो चाहिए वह भी वे लोग नहीं दे सकते।
यही सोचकर अम्मा जी अपने छोटे बेटे को कुछ ना कुछ बहाना बनाकर उसके यहां आने का मना कर देती।
ऐसे ही करते हुए लगभग 1 महीना और बीत गया। अब दिवाली आने को थी। दिवाली अक्सर वेअपने छोटे बेटे के यहां ही मनाती थी
छोटे बेटे की बहू को दिवाली की पूजा पकवान और भगवान का साज श्रृंगार की विधि बिल्कुल पता नहीं थी। उसकी वजह यह थी कि यह सब काम मायके में उसकी मां और यहां पर उसकी दादी सास कर देती थी आज वही दादी सास यहां नहीं थी।
छोटी बहू के मन में कोई मैल तो था नहीं । बस वह थोड़ी मुंह फट ही थी।उसने तुरंत अपनी दादी सास को फोन लगाया और बोली ।
"दादी आप तो जानती हो कि मैं हॉस्टल में रहकर पढ़ी हूं और यहां पर मेरी सास मेरे ब्याह कर आने के पहले ही भगवान के यहां चली गई है। ऐसे में मुझे पूजा की विधि तो कुछ आती नहीं है। दिवाली पर क्या-क्या बनाना है यह भी पता नहीं है। अगर आप नहीं आओगी तो भगवान की पूजा कैसे होगी। दिवाली की पूजा न होने से इस घर में ठीक लगेगा क्या? आप जल्दी आ जाओ। "
यह सुनकर अम्मा जी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। अम्मा जी भी अपनी बहु को बहुत प्यार करती थीं,पर उनका अहंकार और मान सम्मान इसके आड़े आ रहा था। पर अब वह सब दीवार टूट चुकी थी।
उन्होंने तुरंत आने के लिए हां कर दिया और बहू की भेजी कार में बैठकर अगले दिन ही वे अपना सारा सामान लेकर प्रफुल्लित मन से खुशी-खुशी अपने लाडलेछोटे बेटे के घर चली आई।
