"वक्त"
"वक्त"
वक्त
मैं मुम्बई का काम समाप्त कर वापिस बडौ़दा जा रही थी ट्रेन खुलने में समय था तो मैं यू हीं इधर-उधर देख रही थी तभी तीस-बत्तीस साल का युवक अपनी वृद्धा माँ को लेकर आया और मेरी सीट पर अपनी माँ को बैठा दिया फिर मेरे सामने बाली सीट पर एक चादर बिछाकर बडे़ प्यार से उसपर अपनी माँ को बैठाया और उनके पैर दबाने लगा ।मुझे उन वृद्धा से जलन सी होने लगी हमारे बच्चे कितने भावनाहीन और एक इनका बेटा, संस्कार और ममता से लबरेज़।
जब ट्रेन खुलने का समय हुआ तो उस युवक ने मुझे कहा,"आंटी जी आप भी बडौ़दा जा रही हैं तो माँ को भी अच्छी तरह एक औटो में बैठा दिजियेगा।पता वाला कागज इनके पास है।फिर माँ को खूब प्यार कर दो दिन में बड़ौदा आने का दिलासा देकर वह गाड़ी से उतर गया।
बात-चीत करने के दौरान बा ने बताया कि बड़ौदा में अपना घर बेचने जारही हैं उसके बाद बेटे-बहू के साथ अमेरिका चली जायेंगी। गाड़ी जब बड़ौदा में रुकी मैंने उन्हें आराम से उतारकर औटो मेंं बैठाया और पते वाला कागज़ मांगा ताकि उसे पता समझा सकुँ ,लेकिन पता पढ़ते ही मेरा सर्वांग सिहर उठा यह किसी वृद्धाआश्रम का पता था।मैंने तत्क्षण एक निर्णय लिया और बा के साथ ही औटो में बैठ गई ,आश्रम पहुँची मुझे कुछ काम है ऐसा कहकर मैंउन्हें औटो में छोड़कर अंदर गई उन्हें सारी बाते बताकर प्रार्थना कि उन्हें दो दिन झूठ बोलना होगा अगर इनके बेटे का फोन आये तोआप सब इतना कह दें कि," उनकी माँ आगई हैं और अब ठीक हैं।"फिर मैं औटो में बा के पास बैठ गई। औटो को अपने घर का पता बताया और घर आ गई बा को कहा," बंद पडे़ घर में आपकी तबीयत खराब हो जायेगी इसलिए सफाई होने के बाद आपको ले चलुँगी।"वे मान गईं थक जो गई थीं।उन्हें आराम करनेको कह मैंनें एक कोर्ट का सम्मन बा के बेटे को भेजा कि," बिना कोर्ट की अनुमति के आप देश नहीं छोड़ सकते"।
घर आकर बा को सारी बातें बतायी और कहा कि जिस घर को वे बेचना चाहती हैं वह तो उनके बेटे ने पहले ही बेचकर पैसा वृद्धाआश्रम में जमा कर दिया है जहाँ पूरी जिंदगी उन्हें रखना था, वे सिर पकड़ कर बैठ गईं जिस बेटे को पाकर ईश्वर को धन्यवाद देते उनका मुँह नहीं थकता था उस बेटे ने यह सिला दिया ?
सम्मन पाकर बेटे-बहू के होश उड़ गये दौड़े-दौडे़ दोनों आये और वृद्धा से माफी मांगने लगे ,पर जब मन टूटता है तो वह पत्थर का हो जाता है।बा ने वकील को बुलाकर अपनी वसीयत बदलवा दी। बेटे को कहा ," तुम दोनों को जेल नहीं भेज रही हूँ यही गनीमत मानों"।
सच्चाई , सामाजिक , बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार