Dilip Kumar

Abstract

3.3  

Dilip Kumar

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वासना

वासना

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सुबह उठते ही चन्दन ने उसे बताया था कि सरकार ने 21 दिनों के लिए बंद की घोषणा कर दी है । अब घर से बाहर नहीं निकलना है। बेला तो मानो खुशी से झूम उठी। चलो, जहानाबाद वापस चलते हैं। बदरपुर के इस छोटे से कमरे में पड़ी- पड़ी वह ऊब सी गई थी। जहानाबाद में अपने ससुराल में, जहां उसे घूँघट में रहना पड़ता है अचानक उसे दिल्ली की तंग गलियों से अच्छी लगने लगी थी। यह चन्दन वही है जो उसके पति की अनुपस्थिति मे उसे निहारता रहता है। इससे बीबी (मकान मालकिन) को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, उसे तो बस अपने किराये से मतलब है जो हर महीने के दस तारीख को मिल जाना चाहिए नहीं तो उन्हें घर से किसी का सामान बाहर फेकवाने में तनिक भी देर नहीं लगती। बेला के पति कुछ देर में वापस आनेवाले हैं। रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक 12 घंटे की डयूटि देनी होती है। पैसे तो 8 घंटे के ही मिलते हैं । उसके पति एक प्राइवेट कंपनी में गार्ड हैं। आने जाने में 2 घंटे और लग जाते हैं। काम कहने के लिए तो सरल है किन्तु वास्तविकता कुछ और है। पिछले महीने कंपनी के साहब ने उसे दिन में 10 बजे ऑफिस बुलाया। पता नहीं, पता नहीं उसका मन पहले से ही सशंकित था। अज्ञात भय के साथ उसने चड्डा साहब को सामने पाऑफिस पहुँचते ही एक जोरदार चांटा और कुछ आपतिजनक गालियों के साथ उसका स्वागत किया गया। इस दुर्व्यवहार का कारण उसे समझ में नहीं आया। चड्डा साहब ने उसे नौकरी से निकालने की घोषणा की तो वह और घबरा गया। दहाड़ मारकर रोने लगा। वह बार- बार सफाई दे रहा था कि वह एक ईमानदार व्यक्ति है।

आज.तक उसने कभी किसी का नुकसान नहीं किया है । बाद में उसे पता चला कि कल रात सबके जाने के बाद थकान के कारण वह कुर्सी पर बैठे- बैठे सो गया था जो सी.सी.टी.वी कैमरे में कैद हो गया। बड़ी मिन्नत के साथ उसने अपनी नौकरी तो बचा ली थी किन्तु उसे 15 दिन का वेतन फ़ाइन के रूप में गँवाना पड़ा था।इस घटना की चर्चा उसने अपनी पत्नी से नहीं की, लेकिन चन्दन से इस बात को कैसे छिपाता। राशन के पैसे नहीं चुकाने से दुकानदार सामान देना बंद कर देगा। इस आर्थिक तंगी का सबसे ज्यादा फायदा चन्दन को ही मिला। उसने दो हज़ार 5 प्रतिशत सूद के साथ उधार देकर मानों उसे अपना गुलाम बना लिया था। ऐसा नहीं कि चन्दन सिर्फ बेला की ही सहायता करता। उसके छोटे से घर के सामने रह रहे नैपाली परिवार के बच्चों के लिए अक्सर वह चाकलेट और मिठाइयाँ देता। बच्चों को मिठाई देने के बाद वह ज़ोर से आवाज लगाता- दाजू, भाभी को भेजना जरा। वह भाभी को नित्य नए-नए उपहार देता और इसी क्रम में उसकी अंगुलियाँ और भाभी की अंगुलियाँ परस्पर स्पर्श करती और वह इस सुख के लालायित रहता। दाजू और उसकी पत्नी को चन्दन और बेला की बढ़ती नज़दीकियाँ एकदम पसंद नहीं थी।

फिर भी वे स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कह सकते । पतिदेव लौट आए हैं। चन्दन भी बेला के घर आ गया है चाय पीने के बहाने। भला हो कि बेला के पति की अनुपस्थिति में चन्दन आज तक उसके घर में घुसने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। हालांकि जबसे उसने बेला के पति को कर्ज़ दिया है तबसे उसका मन बढ़ता जा रहा है । आज एक और बुरी खबर आई है -कंपनी ने सभी कर्मचारियों की छुट्टी कर दी, सिर्फ 25 प्रतिशत ही बचे हैं और उनका वेतन भी आधा कर दिया गया है। पीएफ़ को छोडकर उसे बाकी पैसे दे दिये गायें हैं । बीबीजी भी आ धमकी हैं। उसे किराए के पैसे देकर अपना पिंड छुड़ाना चाहा । लेकिन बीबीजी ने साफ कह दिया अब उसे एडवांस चाहिए नहीं तो 1 अप्रैल से पहले घर छोड़ दे। कुछ पैसे उसने दुकानदार को दे दिये। हाँ, वह चाहता तो चन्दन के पैसे लौटा सकता था, लेकिन अभी आनेवाले समय की चिंता थी। यहाँ दिल्ली में उसका अपना कौन था? उसे ऐसा लग रहा था कि आने वाले दिन में भोजन के लाले पड़ने वाले हैं।

शाम का समय था । चन्दन ने इन्हें बताया कि कल सुबह आनंद विहार से कुछ बसें बिहार और उत्तर प्रदेश के लिए जाने वाली है। चलो दिल्ली अपनी नहीं है, दाजू भी नहीं। पता नहीं क्यों उन्होने अपने बच्चो और भाभी जी को मेरे पास आने से माना कर दिया। बिहार ही अच्छा है, वहाँ अपने जन धन खाते में पैसे भी आ गए होंगे। सरकार ने पंद्रह किलो राशन भी मुफ्त में देने का ऐलान किया है। अब किसी की चाकरी क्यों करें जब सरकार बैठे -बिठाये मुफ्त में राशन और पेंशन दे रही है ? सुबह तड़के उठकर उन्होने अपना बोरिया बिस्तर बांधा और बदरपुर से पैदल ही आनंद विहार के लिए चल पड़े। दिन भर भूख प्यास से बिलबिलाते असंख्य परिवार दिहाड़ी मजदूर आनंद विहार बस अडे पर लोग भटक रहे हैं। दिल्ली पुलिस कुछ घोषणा कर रही है लेकिन इस और कोई ध्यान ही नहीं दे रहा। शाम के चार बजे वाराणसी जाने के लिए एक बस लगाई गयी है। कंडेक्टर ने घोषणा कि बस की छत पर 800 रुपये और सीट पर 1200 रुपए। चन्दन ने झट से 2400 रुपये में 2 सीट बुक करवा ली और बेला के पति को बस की छत पर सामान के साथ भेज दिया। हाँ चन्दन ने इन्हें 2000 रुपये उधार दिये हैं जब बिहार सरकार पैसे डालेगी तक बेला शायद उसे वापस कर दे। बस खचाखच भर गई है। खड़े यात्रा करने के लिए भी 900 रुपए लिए गए। खैर शाम के छह बजे बस चल पड़ी है। चन्दन बेला के साथ सटकर बैठा है मानो वे पति-पत्नी हों । अंधेरा घना होता जा रहा है। खाना अभी भी नहीं खाया हाँ पानी पिया है लेकिन पता नहीं शायद पी-पी कर ही उन्हे वाराणसी पहुंचाना पड़े और शायद हिम्मत बची तो बिहार पहुंचेंगे। कोरोना का भय यहाँ किसी को नहीं साता रहा बल्कि वह तो इस कोरोना को धन्यवाद दे रहा था जिसकी बदौलत वह जिसे दूर से निहारता रहता था आज उसकी बाँहों मे पड़ी थी।


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