उसका ख़त
उसका ख़त
आज कई दिनों बाद उसका खत मिला, कह रहा था तुम तो बड़ी लेखिका बन गयी हो....
उसे क्या पता था मैं लेखिका बनने के लिए नही लिख रही हूँ। मैं तो अपने वो जज़्बात लिख रही हूँ, जो उसके साथ बाँट नही सकती। अपनी रचनाओं के जरिये उसको आज भी याद करती हूँ। बातें करती हूँ उससे, ढ़ेर सारी।
हाँ, यह अलग बात है, सामने से कोई जवाब नही आता, आज आया है, लगता है उसने मेरी रचनाएं पढ़ी है।
मेरी रचनाएँ ही तो उसको लिखे वो अधूरे ख़त है, जिनको कभी मैंने पूरा कर उसे भेजे नही। सोचा था कभी उसकी नज़र मेरी कविताओं और रचनाओं पर पड़ेगी तो वो ख़ुद ही समझ जाएगा। आज शायद उसने कुछ पढ़ा है और महसूस किया है, तभी तो आज उसका ख़त आया है।
पूछ रहा था, याद करती हो मुझे???? कभी कभी सोशल मीडिया पर मुझे खोजती भी होगी, सच है कि नही???
फिर लिखा था, मत ढूँढो मुझे कही और, मैं तो तुम्हें तुम्हारी रचनाओं में मिलूँगा!!! कविताएँ भी तो लिखती हो तुम, ढाल लूँगा खुद को तुम्हारी कविताओं में!!!!
उसके वो शब्द पढ़कर मैं भी सोचने लगी, अभी अभी यही सब तो मैं भी कह रही थी, सोच रही थी और अब वो भी....
ऐसा क्यूँ होता है फिर, की जो एक-दूसरे को इतना समझते है, जानते है, पर साथ नही होते है, शायद इसे ही ज़िंदगी कहते है, जहाँ कभी किसी को मुक्कमल जहान नही मिलता।
आगे कुछ और लिखा नही था, बस वही हमेशा की तरह वो डॉटेड लाइन ........ कुछ इस तरह की........
जैसे कह रहा हो, कहने को तो बहुत कुछ है लेकिन कहने से क्या होगा अब....
कितनी देर उसके ख़त को पकड़कर यूं ही सोचती रही मैं.....
कहते है ऐसे ख़त अक्सर बहुत अच्छे महकते है, मैंने भी एक कोशिश की ताकि उसकी महक का तो एहसास हो सकें, फिर अपनी ही हरक़त पर हँसी आ रही थी।
मुझे तो अभी भी यकीन नही हो रहा था...
आज कई दिनों बाद उसका खत मिला था, कह रहा था तुम तो बड़ी लेखिका बन गयी हो....