काला जादू
काला जादू
पात्र परिचय
कोंकणा : 30 वर्षीय मगर कुँवारी लड़की
देबेन्दू : कोंकणा का कॉलेज मित्र
दुर्गा : कोंकणा की माँ
चंद्रजीत बाबू : कोंकणा के पिताजी
चित्रा : दुर्गा के बचपन की सहेली
देवयानी : चित्रा की बहन
पर्दा उठता है....
दृश्य पहला :
(दुर्गा का घर। चित्रा अपनी बचपन की सहेली दुर्गा को मिलने उसके घर आई है। दोनों लिविंगरूम में बैठ चाय पी रही है)
दुर्गा : (चित्रा को चाय देते हुए) लो चित्रा चाय लो, साथ में यह तुम्हारी पसंदीदा मठरी भी लायी हूँ।
चित्रा : अरे दुर्गा, यह सब औपचारिकता छोड़ो और बैठो यहाँ मेरे पास। अब बताओ, क्या चल रहा है आजकल??? कितने वर्षों बाद तुमसे मिल रही हूँ। इतनी दुबली क्यूँ हो गयी हो?? चेहरा तो देखो तुम्हारा, कितना मुरझा गया है। तुम तो अपना कितना ध्यान रखती थी पहले, अब क्या हो गया है दुर्गा???
दुर्गा : अब तुमसे क्या छुपाना चित्रा!! तुम तो जानती हो मेरी एक ही बेटी है। इतनी पढ़ी-लिखी, होशियार और अब तो बैंक में नौकरी भी करती है। ऐसा भी नहीं है कि शक्ल- सूरत ठीक नहीं हैं। हाँ ,बहुत खूबसूरत तो नहीं पर बहुत प्यारी और सुलझी हुई है मेरी बेटी। फिर भी पता नहीं क्यूँ ,अब तक उसके शादी की बात आगे नहीं बढ़ पायी है।
अब तो 30 वर्ष की भी हो गयी है, बस उसी की फिक्र लगी रहती है।
चित्रा : अरे तो इसमें इतना टेंशन लेने की क्या बात है। आजकल 30 वर्ष तक तो बच्चे अपना करियर संवारने में ही लगे रहते है।
दुर्गा : वो सब तो ठीक है। लेकिन मुझे कुछ और बात भी परेशान कर रही है।
चित्रा : कौन सी बात??
दुर्गा : मुझे तो लगता है, मेरी बेटी पर किसी ने काला जादू कर दिया है। तुम तो जानती हो ना, मेरी देवरानी हमसे कितनी नफ़रत करती है और मैंने सुना है वो काला जादू करने में बहुत माहिर है। मुझे यकीन है, उसने ही मेरी बच्ची पर कोई भयंकर काला जादू किया है। वरना ऐसा भी भला होता है क्या ??? की कोई दोष-गुण नहीं हो, फिर भी शादी में विघ्न आये। जो भी रिश्ता देखते है, लड़के वाले ना ही कर देते है।
चित्रा : (जोर जोर से हँसते हुए) दुर्गा, दुर्गा!!! तुम भी क्या बातें लेकर बैठ गयी। काला जादू???? अरे आजकल की इस भागदौड़ की ज़िंदगी मे किसके पास इतना वक़्त है यह सब करने का??? तुम भी क्या दकियानूसी बातें लेकर बैठ गयी।
दुर्गा : तुम कुछ भी कहो, मुझे तो यकीन है यह काला जादू ही है। मैंने एक तावीज़ भी बना रखा है जो उसका असर ख़त्म कर देगा। पर कोंकणा मेरी सुनती ही नही। बस अपना काम और अपनी कविताओं की डायरी यही उसकी दुनिया है। तुम बात करोगी उससे????
(तभी डोर बेल बजती है। दुर्गा दरवाजा खोलती है, कोंकणा रूम में प्रवेश करती है)
दुर्गा : कोंकणा, देखो तो कौन आया है???
कोंकणा : अरे!! चित्रा मासी माँ!!! आप??? नमस्ते। आप कब आयी?? (आगे बढ़कर चित्रा को गले लगाती है)
चित्रा : हेल्लो बेटा!! मैं बस कुछ ही देर पहले आयी हूँ। और बताओ कैसी हो तुम??
कोंकणा : मैं तो एकदम फर्स्ट क्लास हूँ मासी माँ। दिनभर काम मे बिज़ी रहती हूँ और घर आकर कुछ लिख-पढ़ लेती हूँ। आइये ना, मैं आपको अपनी लिखी नई कविताएँ बताती हूँ। (फिर अपनी माँ की ओर देख) माँ, बहुत भूख लगी है, कुछ खाने के लिए दो ना!!!
दुर्गा : हाँ, हाँ। तुम अपनी मासी माँ के साथ बातें करो, मैं अभी कुछ लेकर आती हूँ।
कोंकणा : मासी माँ, चलिये ना मेरे रूम में बैठते है।
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दृश्य दूसरा :
(कोंकणा का बेडरूम। कोंकणा और चित्रा एक बेड पर बैठकर बातें कर रहे है)
चित्रा : वाह कोंकणा, तुम तो बहुत बड़ी कवयित्री बन गई हो। कितनी खूबसूरत कविताएँ लिखती हो। लेकिन बेटा, तुम्हारी कविताओं में इतना दर्द क्यूँ झलक रहा है??? कोई परेशानी हो तो तुम मुझसे बात कर सकती हो।
कोंकणा : (नज़रें चुराते हुए)नहीं मासी माँ, ऐसी कोई बात नहीं है।
चित्रा : तुम्हारी माँ ने मुझे बताया, क्या तुम शादीवाली बात को लेकर परेशान हो??
कोंकणा : अच्छा तो माँ ने शादीपुराण आपको भी सुना दिया?? और वो काला जादू!! वो वाली बात भी बताई होगी, क्यूँ है ना??
चित्रा : हाँ, सब बताया दुर्गा ने मुझे। मैं तुम्हारी माँ को अच्छे से जानती हूँ, अब उसे कोई लाख समझाए, अगर उसके मन मे वो बात बैठ गयी है तो कोई उसे समझा नहीं सकता। उस बात को छोड़ो, मुझे यह बताओ, क्या तुम मुझसे कुछ कहना चाहती हो???
कोंकणा : माँ ने आपको सब बताया होगा, लेकिन क्या कभी उन्होंने आपको देबेन्दू के बारे में बताया???
चित्रा : देबेन्दू??? कौन देबेन्दू?? दुर्गा ने तो कभी मुझसे इस बारे में बात नहीं की।
कोंकणा : देबेन्दू मेरे साथ कॉलेज में पढ़ता था। आज से आठ वर्ष पहले जब मैं 22 साल की थी तभी मैंने माँ को देबेन्दू के बारे में बताया था। लेकिन माँ ने मेरी बात ठीक से सुनी भी नही। बस इतना ही कहा, पापा और वो ही मेरे जीवनसाथी का फैसला लेंगे। मुझे कसम भी दिलवा दी कि मैं कोई ऐसा कदम न उठाऊं जिससे इस घर की बदनामी हो। उस दिन के बाद मैं कभी देबेन्दू से नहीं मिली पर मैं उसे आज भी नहीं भूली हूँ। माँ को लगता है मैं उसे भूला चुकी हूँ। लेकिन ऐसा नहीं है, इसीलिए जब कोई लड़का मुझे देखने आता है तो मैं उससे रिक्वेस्ट करती हूँ कि वो ही इस रिश्ते के लिए मना कर दे। बस यही है मेरी कहानी।
चित्रा : अभी देबेन्दू कहाँ है??
कोंकणा : मैं नहीं जानती। बस इतना पता है, मेरे बात ना करने के बाद वो कोलकाता छोड़कर मुंबई चला गया था। अब कहाँ है, नहीं पता। मुझे उससे कोई शिकायत नहीं है मासी माँ, बस अब मैं किसी और को अपनी ज़िंदगी मे लाना नहीं चाहती। उसने तो शायद अपनी एक नई दुनिया बसा ली होगी अब तक।
चित्रा : कोलकाता में कहाँ रहता था वो??
कोंकणा : वो काली मंदिर के पीछे जो मुखर्जी हाउस है ना, वो ही उसका घर था। अब तो मुझे पता नही, वहाँ कौन रहता है।
चित्रा : (कुछ सोचकर जल्दी जल्दी में) क्या देबेन्दू की कोई तस्वीर है तुम्हारे पास???
कोंकणा : कॉलेज के समय की एक तस्वीर है मेरे पास। लेकिन क्यूँ मासी माँ??
चित्रा : तू दिखा तो!!!
कोंकणा : (कपबोर्ड में से तस्वीर निकालकर चित्रा को देती है) बस यही एक तस्वीर है मेरे पास उसकी।
(चित्रा गौर से तस्वीर को देखती है और मुस्कुराने लगती है, तभी दुर्गा नाश्ता लेकर कमरे में आती है। दुर्गा को देखते ही कोंकणा देबेन्दू की तस्वीर को चित्रा के हाथों से छीनकर छिपा देती है)
दुर्गा : (नाश्ते को टेबल पर रखते हुए) क्या बातें हो रही है मासी माँ के साथ ??
चित्रा : तुम ठीक कहती थी दुर्गा, तुम्हारी बेटी पर किसी ने काला जादू ही किया है। जाओ, तुम वो तावीज़ ले आओ जो तुमने बनवाया था, मैं अभी इसे पहना देती हूँ।
(दुर्गा खुशी से रूम से बाहर जाते हुए। कोंकणा कुछ हैरान होकर चित्रा की ओर देखती है)
कोंकणा : मासी माँ!!!! आप भी माँ की तरह....
चित्रा : शूं.....मैं जैसा कहती हूँ वैसा कर, कुछ कहो मत अभी।
(दुर्गा तावीज़ लेकर आ जाती है)
चित्रा : लाओ, मुझे दो। कोंकणा, इधर आओ मेरे पास। (कोंकणा के हाथ में तावीज़ बांधते हुए) अब देखना, कैसे उतरता है वो काला जादू तुम्हारे ऊपर से!!!! चलो, अब तुम अपना नाश्ता करो, मुझे कुछ काम है अब मैं निकलती हूँ।
(अपनी सहेली दुर्गा की ओर देखते हुए) दुर्गा, सुनो, आज तो मैं अपने बहन के यहाँ जा रही हूँ, लेकिन कल मैं यही रुकूँगी तुम्हारे यहाँ, ठीक है ना?? कोंकणा के पिताजी से भी अब कल ही मुलाकात होगी। चलती हूँ।
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दृश्य तीसरा :
(दुर्गा और चंद्रजीत बाबू घर के लिविंगरूम में बैठे है। चंद्रजीत बाबू अखबार पढ़ रहे है। दुर्गा भी कोई किताब पढ़ रही है। तभी डोरबेल बजती है)
दुर्गा : (दरवाजे की ओर जाते हुए) चित्रा होगी ज़रूर!! (दरवाज़ा खोलते ही) दिन भर से राह देख रही हूँ और अभी आयी है।
चित्रा : तुम्हारे ही काम से देर हो गयी। ( चित्रा के साथ एक औरत और एक लड़का भी साथ आये थे, उनसे कहते हुए) आओ, आ जाओ अंदर। दुर्गा, देखो, यह है मेरी दीदी देवयानी और यह उसका बेटा। (अंदर आते हुए)
चंद्रजीत जीजाजी, कैसे है आप?? कल भी आई थी पर आपसे मुलाकात नहीं हुई थी।
चंद्रजीत बाबू : अरे चित्रा, आओ, आओ। तुम्हारी सहेली तो राह देख देखकर थक गई थी, अच्छा हुआ तुम आ गयी।
(देवयानी और उनके बेटे को भी) जी नमस्ते!!! आइये, बैठिए। दुर्गा, आप सब लोग बैठो, मैं अंदर अपने कमरे में बैठता हूँ।
चित्रा : अरे जीजाजी, आप कहाँ चले?? आपसे ही तो बात करनी है। आइये सब बैठिए यहाँ।
(सब लोग बैठ जाते है सिवाय चित्रा के)
चित्रा : चंद्रजीत जीजाजी, यह मेरी दीदी का बेटा, C. A. है, अभी तक कुँवारा है। मुंबई में बड़ी सी फर्म में नौकरी करता है। इसी के लिए आपकी बेटी कोंकणा का हाथ मांगने आयी हूँ मैं। आप को जो पूछना है आप पूछ लीजिये।
(अचानक आये रिश्ते से दुर्गा और चंद्रजीत थोड़ा चौक जाते है)
दुर्गा : मगर चित्रा तुमने तो कुछ बताया ही नहीं पहले, मैं......
चित्रा : तुम फिर औपचारिकता करने लगी!!!! तुम लोग बातें करो। मैं अंदर से कोंकणा को ले आती हूँ।
(चित्रा दूसरे कमरे में जाती है और बाकी सब लोग आपस में बातें करने लगते है। थोड़ी ही देर में चित्रा और कोंकणा साथ में प्रवेश करते है। लड़का कोंकणा को देख चौककर खड़ा हो जाता है और लड़के को देख कोंकणा चौक जाती है)
कोंकणा : (चौकते हुए) दे.....(चित्रा उसको रोक लेती है)
चित्रा : दीदी, यह देखो, यह है हमारी कोंकणा, कैसी रहेगी अपने देबेन्दू के लिये???
(कोंकणा चित्रा की ओर देखती है और चित्रा आँखों से इशारे कर उसे चुप करती है। कोंकणा देवयानी के पैर छूकर आशीर्वाद लेती है)
देवयानी : देबू, मुझे तो लड़की पसंद है। अब तुम बताओ, तुम्हारा क्या इरादा है???
चित्रा : अरे भाई, नए जमाने के बच्चे है। ऐसा करते है इन्हें अकेले में बात करने देते है। बाकी बातें बाद में भी हो जाएंगी। क्यूँ दीदी, क्यूँ जीजाजी, आप लोगों को कोई एतराज तो नहीं।
चंद्रजीत बाबू : नहीं, नहीं, इसमें एतराज़ की क्या बात है???
देवयानी : हाँ, हाँ जाओ बेटा। आख़िर फैसला तो तुम दोनों को ही लेना है।
दुर्गा : मैं अंदर से कुछ चाय और नाश्ता ले आती हूँ।
(चित्रा देबेन्दू और कोंकणा को दूसरे कमरे में भेज देती है, दोनों बहुत ख़ुश लग रहे है और चित्रा खुद दुर्गा के पास आती है)
चित्रा : सिर्फ चाय-नाश्ता नहीं, तुम तो मिठाई लाकर हम सबका मुँह मीठा कराओ। यह रिश्ता तो पक्का ही समझो।
दुर्गा : मेरी प्यारी सहेली चित्रा, तुमने तो आज मेरी सारी परेशानियां ही ख़त्म कर दी। तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद।
चित्रा : (मज़ाक में, हंसते हुए) मैंने क्या किया है?? यह तो तुम्हारे उस तावीज़ का कमाल है। देखो, कल मैंने कोंकणा के हाथ में उसे बाँधा और उसके ऊपर का काला जादू कैसे झट से छू-मंतर हो गया है।
(दोनों सहेलियाँ के ठहाकों की आवाज़ गूंजती है और पर्दा गिरता है..…..)
समाप्त.....