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Rashmi Trivedi

Romance

4  

Rashmi Trivedi

Romance

हुई प्यार की जीत...

हुई प्यार की जीत...

8 mins
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रोहन बदहवास सा हॉस्पिटल के ऑपरेशन थिएटर के बाहर चहलकदमी कर रहा था । ऑपरेशन थिएटर की रेड लाइट उसे चिढ़ा रही थी । पिछले 3 घंटे से सोनिया ऑपरेशन थिएटर के अंदर थी । अकेले रोहन की घबराहट बढ़ती ही जा रही थी । कभी वह सोनिया की सलामती के लिए भगवान से प्रार्थना करता ;कभी ऑपरेशन थिएटर की लाइट की तरफ देखता ;कभी घड़ी की तरफ देखता ।  तब ही रोहन की नज़र सामने से आती ,सोनिया की मम्मी जयाजी पर पड़ी। जयाजी की मानसिक मजबूती उनके व्यक्तित्व से ही झलकती थी। वक़्त के थपेड़ों ने उन्हें हर परिस्थिति को धैर्य से सम्हालना सीखा दिया था । उनके स्वयं के मन के समंदर के भीतर भारी तूफ़ान आया हुआ था ;लेकिन चिंता की लहरें उनके साहस के किनारों को हिला नहीं पा रही थी । रोहन के फ़ोन के बाद से अब तक उन्होंने अपने को सम्हाल रखा था । वह अच्छे से जानती थी कि अगर वह ज़रा भी बिखरी तो रोहन और सोनिया को कौन समेटेगा ।

उधर अब तक रोहन अपने आपको जैसे -तैसे सम्हाल रखा था ;लेकिन जयाजी पर नज़र पड़ते ही रोहन के सब्र का बाँध टूट गया और वह बिलख -बिलख कर रोने लगा । 

"रोहन बेटा ,फ़िक्र मत करो । सब ठीक हो जाएगा । ",जयाजी रोहन को दिलासा देने लगी । जयाजी की इकलौती बेटी सोनिया जीवन और मृत्यु के मध्य झूल रही थी । रोहन के घरवालों ने तो उसी दिन रोहन से सारे संबंध तोड़ लिए थे ;जिस दिन उसने जयाजी की बेटी सोनिया का हाथ थामा था । 


आगे की कहानी....


रोहन ने रोते हुए कहा,"यह सब मेरी वजह से हुआ है!! न मैं उससे झगड़ा करता और न ही वह यूँ अकेले कार लेकर निकल जाती!! मुझे माफ़ कर दीजिए मम्मीजी, सब मेरी ग़लती है और मेरे ग़लती की सज़ा मेरी सोनिया को भुगतनी पड़ रही है!! उसे कुछ हो गया तो मैं अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर पाऊँगा"।


जया जी ने रोहन के काँधे पर हाथ रखते हुए कहा,"धीरज रखो रोहन बेटा, सब ठीक होगा। यूँ अपने आप को कोसना बंद करो!! मैं अपनी बेटी को अच्छे से जानती हूँ, वह एक फाइटर है। इतनी जल्दी हार नहीं मानेगी वह!! उसे कुछ नहीं होगा, वह बिल्कुल ठीक हो जाएगी। तुम बिल्कुल चिंता मत करो"।


जयाजी रोहन को सांत्वना देते हुए उनके झगड़े का कारण पूछना चाहती थी,लेकिन उन्होंने फिर अपने आपको रोक लिया। वह एक सुलझी हुई महिला थी। वह जानती थी यह दामाद और बेटी के बीच की बात है और अगर सही लगा तो रोहन ख़ुद ही बता देगा। उनका ऐसा सोचना बिल्कुल सही साबित हुआ।


रोहन ने अपने आप को संभालते हुए कहा,"आज सोनिया फिर वही सब बातें लेकर ज़िद पर अड़ गई थी। आज फिर उसने माँ-बाबूजी के पास जाकर माफ़ी माँगने की बात कही। नजाने कैसे पर उसके दिल में यह बात घर कर गई है कि जब तक माँ-बाबूजी हमें अपना नहीं लेते, तब तक वह ख़ुद संतान के सुख से वंचित रहेगी!!


मैंने उसे बहुत समझाया कि अभी तो हमारी शादी को सिर्फ़ चार ही तो वर्ष हुए है,भगवान ने चाहा तो ज़रूर हमारे यहाँ भी बच्चे की किलकारियाँ सुनाई देंगी, लेकिन वह कहने लगी,"माँ-बाबूजी का दिल दुखाया है हमने, उनके आशिर्वाद से अभी तक वंचित है हम!! मैं जानती हूँ,तुम इन सब बातों में विश्वास नहीं करते लेकिन मैं करती हूँ और अगर तुम मुझसे प्यार करते हो तो तुम्हें मेरे साथ चलना होगा!!"....


रोहन ने जयाजी की ओर देखते हुए आगे कहा,"मम्मी जी, आप तो जानती है न, जब पिछली बार ऐसे ही सोनिया के ज़िद के आगे मजबूर होकर हम दोनों घर गए थे,तब बाबूजी ने कितनी कड़वी बातें कही थी हमसे!! घर के अंदर पाँव तक नहीं रखने दिया था उन्होंने!! और माँ?? वह तो हमारे सामने ही नहीं आई थी। कितना ज़लील कर के निकाल गए थे हम दोनों वहाँ से.... मेरे अपने ही घर से...तो फिर अब सोनिया की बात मैं कैसे मान लेता?? बस बात बढ़कर बहस बन गयी और ग़ुस्से में सोनिया गाड़ी लेकर आप के पास आने के लिए घर से निकल गयी!! लेकिन ....लेकिन ......

आगे वह कुछ कह ही नहीं पाया,बस अपने चेहरे को अपने दोनों हाथों से छुपा वही नीचे बैठ गया। जयाजी उसे संभालने की पूरी कोशिश कर रही थी। तभी अचानक वह झटकेसे उठा,जयाजी ने देखा, वह बहुत ग़ुस्से में नज़र आ रहा था। उसकी ऑंखों में जैसे शोले धधक रहे थे। वह तेज़ी से उठा और ग़ुस्से में तिलमिलाता हुआ वहाँ से निकल गया।


जयाजी समझ चुकी थी कि वह कहाँ गया होगा! उन्होंने उसे रोका भी नहीं, क्यूँ की वह जानती थी,अभी उनकी किसी भी बात का उसपर कोई असर नहीं पड़ने वाला था!!


ग़ुस्से से तिलमिलाता हुआ रोहन जब अपने माँ-बाबूजी के घर पहुँचा तो उसने देखा, माँ डायनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठी सब्जी काट रही थी और बाबूजी अपनी आरामकुर्सी पर बैठे अख़बार पढ़ रहे थे। रोहन के आने का एहसास भी शायद उनको नहीं हुआ था। रोहन ने आगे बढ़कर कहा,"अब शायद आप दोनों को सुकून आ जायेगा!! आख़िर यही तो चाहते थे न आप कि मैं सोनिया से दूर हो जाऊँ!! यही बद्दुआ दी होगी आपने हमें और अब ख़ुश हो जाइए,क्यूँ की आपकी बद्दुआ पूरी हो गई, मेरी सोनिया आज ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रही है। कैसा लगा सुनकर बाबूजी, क्या अब आपके दिल में ठंडक पड़ गई?? आपका अहंकार जीत गया और हमारा प्यार हार गया!! यही चाहते थे न आप???", इतना कहकर वह जमीन पर बैठकर फूट फूटकर रोने लगा।


उसकी बात सुन उसके बाबूजी ने अपनी कड़क आवाज़ में कहा,"यह क्या बक़वास कर रहे हो तुम?? और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमसे इस तरह बात करने की??"...


लेकिन इधर माँ से भी अपने बेटे की हालत देखी न गई, उन्होंने अपने बेटे के पास जाते हुए कहा,"बेटा, क्या हुआ है बहू को??"


उन्हें इस तरह रोहन के पास जाते देख बाबूजी ने फिर अपनी कड़क आवाज़ में कहा,"सावित्री!!"

लेकिन इस बार रोहन की माँ ने वह किया जो आजतक उन्होंने कभी नहीं किया था। वह बाबूजी की ओर मुड़ी और कहने लगी,"बस कर्नल साहब, बहुत हुआ!! मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी आपके उसूलों और अनुशासन को अपनाया,लेकिन आज मुझे मेरे बेटे से बात करने से आप रोक नहीं पाएंगे! मैं आपसे कोई अनुचित बात नहीं कहना चाहती,इसीलिए अच्छा होगा आप चुप ही रहे!!"...


सावित्री जी के मुख से यह शब्द सुनते ही बाबूजी चुपचाप अपनी आरामकुर्सी पर बैठ गए। कभी कभी कुछ सीधी सरल सी बातें भी इंसान को अंदर तक आहत कर जाती है। आज सावित्रीजी की सीधी बात ने उन्हें भी अंदर तक हिला दिया था!!


सावित्री जी ने अपने बेटे के चेहरे को दोनों हाथों में लेते हुए फिर पूछा,"बेटा, क्या हुआ है बहू को??"


रोहन ने उनकी ओर ग़ुस्से से देखते हुए कहा,"बहू?? आपने उसे अपनी बहू माना ही कब था?? आप किस मुँह से उसे बहू कह सकती है माँ?? हमने क्या चाहा था,बस आप दोनों का आशिर्वाद और प्यार....वह भी आप लोग हमें नहीं दे पाए। जानती हो माँ, आज उसकी यह हालत आपकी वजह से है, वह आपके पास आने की ज़िद में यह एक्सीडेंट कर बैठी है। वह सोचती है,जब तक आप दोनों उसे अपना नहीं लेंगे,तब तक कोई ख़ुशी नहीं मिल सकती उसे!! लेकिन आपके और बाबूजी के अहंकार ने आज उसे मौत के मुँह में धकेल दिया है। मैं कह देता हूँ माँ,आज अगर उसको कुछ हो गया तो आप दोनों मेरा भी मरा मुँह देखेंगे!!".....


अपने बेटे की तकलीफ़ अब सावित्री से सहन नहीं हो रही थी। उन्होंने कहा, "मैंने कभी तुम्हारा और सोनिया का बुरा नहीं चाहा बेटा, एक माँ ऐसा कर भी नहीं सकती!! लेकिन यह भी सच है कि मैं केवल एक अच्छी धर्मपत्नी बनकर रह गई और पति के फैसलों के खिलाफ़ न जाना ही अपना कर्तव्य समझ बैठी। लेकिन आज मुझे मेरी ग़लती का एहसास हो गया है बेटा, चल मुझे मेरी बहू के पास ले चल!! और तू डर मत, कुछ नहीं होगा उसे!!".....


अपने माँ की बात सुन रोहन ने उन्हें गले लगा लिया और फिर एक नज़र आरामकुर्सी पर डाली, बाबूजी वहाँ नहीं थे!! उसने सोचा, इतना सब कुछ होने के बाद भी वह अपनी ज़िद पर अड़े है!!


रोहन और माँ, दोनों हॉस्पिटल जाने के लिए निकल ही रहे थे कि पीछे से बाबूजी ने कहा,"सावित्री, इसे कह दे,गाड़ी मैं चलाऊंगा, बस कहाँ जाना है बता दे!!"....


उनकी बात सुन रोहन भागकर अपने बाबूजी के पास गया और उन्हें गले लगा लिया। बाबूजी ने अपने बेटे की पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा,"मुझे माफ़ कर दो बेटा!!"


रोहन ने भी उनसे कहा,"मैंने भी आपसे इस तरह ऊँची आवाज़ में बात की, मुझे भी माफ़ कर दीजिए बाबूजी!!"....


पिता-पुत्र का मिलन देख सावित्री जी अपने आनंदाश्रु रोक ही नहीं पा रही थी।


जब तीनों हॉस्पिटल पहुँचे तो जयाजी डॉक्टर साहब से ही बात कर रही थी। डॉक्टर के मुताबिक़ अब डरने की कोई बात नहीं थी। सोनिया को चोटें तो बहुत आई थी लेकिन अब उसकी ज़िंदगी ख़तरे से बाहर थी।


सावित्री जी ने जयाजी के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा,"हमने आप लोगों का बहुत दिल दुखाया है, क्या हमें माफ़ कर सकेंगी??"


जयाजी ने कहा,"अरे यह आप कैसी बात कर रही है?? मैं भी एक माँ हूँ,आप को समझ सकती हूँ। पिछली बातें आप भूल जाइए, आज हम सब एकसाथ क्या यह ख़ुशी की बात नहीं है??".....


थोड़ी देर बाद जब रोहन सोनिया को देखने उसके कमरे में गया तो ज़ख्मी बेहोश सोनिया को देख उसकी आँखें फिर भर आईं। वह धीरे से उसके पास जाकर बैठ गया और उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहने लगा,"मुझे माफ़ कर दो सोनिया, मुझे तुमसे झगड़ा नहीं करना चाहिये था। लेकिन अब तुम बिल्कुल चिंता मत करो, जब तुम होश में आओगी तो तुम्हें तुम्हारी सारी खुशियाँ मिल जाएंगी!!".......


उसके ठीक एक वर्ष बाद सोनिया एक बार फिर हॉस्पिटल में एडमिट हुई लेकिन इस बार बात अलग थी, वह माँ बनने वाली थी। उसका पूरा परिवार लेबररूम के बाहर उसका और आनेवाले नए मेहमान का इंतजार कर रहा था.......



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