Rashmi Trivedi

Romance Tragedy

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Rashmi Trivedi

Romance Tragedy

दुआओं में याद रखना

दुआओं में याद रखना

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मेरी कहानी का प्लॉट प्रेमगली पुस्तक की एक कहानी "तुम भी अपना ध्यान रखना" इस कहानी पर आधारित है, जिसमें प्रेमी और प्रेमिका अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए अपने प्यार की कुर्बानी दे देते है। अपनी कहानी के लिए मैंने प्रेमगली पुस्तक की तीन अलग अलग कहानियों के तीन पात्रों का चुनाव किया है। 

पहला पात्र - "सफेद रंग"......से देवांगना 

दूसरा पात्र - "एक रिश्ता ऐसा भी" ......से शिवम

तीसरा पात्र - प्यार की कोई उम्र नहीं होती"......से सुदेश


 अपनी अंतिम साँसें लेते सुदेश जी हॉस्पिटल के आयसीयू वार्ड के बेड पर लेटे थे। उनकी बेटी देवांगना भी उनके पास ही बैठी थी। उसके आँखों से आँसू झरझर बहते जा रहे थे। वह चाहकर भी अपने आँसुओं के सैलाब को रोक नहीं पा रही थी। सुदेश जी ने कई वर्षों तक कैंसर जैसी बीमारी से डटकर मुक़ाबला किया था और उनकी माने तो इसका हौसला भी उन्हें बेटी देवांगना की वजह से ही मिला था। 


अपनी इकलौती बेटी को सुदेश जी ने अकेले ही बड़े लाड़ प्यार से पाला था। अपनी पत्नी सुधा को तो उन्होंने बहुत पहले ही खो दिया था। जब कैंसर जैसी बीमारी ने उन्हें अपनी चपेट में ले लिया था, तभी से उसके भविष्य की चिंता उन्हें सताए जा रही थी। बार बार एक ही ख़याल उन्हें अंदर ही अंदर खाए जाता कि उनके जाने के बाद इतने बड़े संसार में उनकी प्यारी बेटी कैसे अकेली निर्वाह कर पायेगी?!


ऐसे में एक दिन जब अपने बचपन के मित्र भारद्वाज जी से उनकी मुलाकात हुई और उनके बेटे अविनाश के बारे में पता चला तो उन्होंने सोच-विचार कर देवांगना की शादी उससे तय कर दी। 


इसके बारे में जब उन्होंने देवांगना से बात की तो वह कुछ कहना चाहती थी, लेकिन उसने कुछ कहा नहीं। अपने बीमार पिता का दिल कैसे दुखाती वह?? आख़िर कैसे उन्हें बताती कि शिवम के रूप में उसने अपना जीवनसाथी पहले ही चुन लिया था। वह चुप रही। सुदेश जी का भी भ्रम बना रहा कि बेटी शादी के लिए मान गई है!! वह भी निश्चिंत हो गए। इधर शिवम और देवांगना भी अपने प्यार को उजागर करने के लिए सही समय का इंतजार करने लगे। 


समय गुज़रता गया और एक दिन अचानक सुदेश जी की तबीयत ज़्यादा ख़राब हो गई। 

देवांगना ने भारद्वाज अंकल और उनके बेटे अविनाश की मदद से उनको हॉस्पिटल में एडमिट करवाया। 


अपनी अंतिम साँसें गिनते सुदेश जी ने बेटी देवांगना का हाथ अपने में लिया और कहा, "बेटी, शायद अब मेरे जाने का वक़्त आ गया है, लेकिन तुम घबराना नहीं!! तुमने देखा, अविनाश और उसके घरवालों ने तुम्हें और मुझे अकेला नहीं छोड़ा?? तुम्हारी एक पुकार पर कैसे भागे चले आए मदद के लिए!! देवू...आज मुझसे वादा करो, तुम अविनाश का और उसके परिवार का वैसे ही ख़याल रखोगी, जैसे वह हम दोनों का रखते है। तुम उनके परिवार हिस्सा बन उनको वह सारी खुशियाँ दोगी, जिसके वह हक़दार है। मैं जानता हूँ, अविनाश तुम्हें बहुत ख़ुश रखेगा।"


देवांगना ने रोते हुए अपने दिल की बात कहनी चाही, "मगर पापा...मैं... मैं......", मगर तब भी वह कह न सकी!!


सुदेश जी की साँसें फूलती जा रही थी। उन्हें तो बस अपनी बेटी से एक वादा चाहिए था, "क्या बात है देवू?? क्या..क्या तुम मेरे फ़ैसले से ख़ुश नहीं हो। कहो बेटी... क्या मेरा फ़ैसला तुम्हें पसंद नहीं??"


अपने पिता की तबीयत बिगड़ती देख देवांगना ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा, "नहीं पापा, ऐसी कोई बात नहीं है। आप बस जल्दी से ठीक से हो जाइए, मुझे आपकी हर बात मंजूर है।"


सुदेश जी ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा, "एक बार बस तुझे दुल्हन के जोड़े में देख लूँ तो चैन से मर पाऊँगा मेरी बच्ची!! मैंने अविनाश से बात की थी, मेरे पास वक़्त बहुत कम है देवू....मैं बस तेरा घर बसता हुआ देख लूँ, तभी मेरी आत्मा को शांति मिलेगी!!"


उसी दिन शाम को देवांगना ने शिवम को हॉस्पिटल के बाहर मौजूद गार्डन में मिलने बुलाया।

देवांगना को देखते ही शिवम समझ चुका था, आज कोई बड़ा फ़ैसला वह उसे सुनाने वाली थी। 


देवांगना ने उससे नज़रें चुराते हुए उसकी ओर अपनी पीठ कर दी और अपने आँसुओं को छिपाते हुए कहा,"शिवम....कल मैं अविनाश से शादी कर रही हूँ!! मैं जानती हूँ, मैं जो कुछ भी करने जा रही हूँ, उसके बाद तुम मेरा चेहरा फिर कभी नहीं देखना चाहोगे। मैं अपनी मजबूरी का रोना तुम्हारे सामने नहीं रोऊँगी। बस इतना कहना चाहती हूँ कि हो सके तो मुझे माफ़ कर देना और इतना याद रखना कि मैंने तुम्हें कोई धोखा नहीं दिया है। शायद हम दोनों का साथ यहीं तक था!!"


शिवम ने उसके काँधे पर हाथ रखा और उसका चेहरा अपनी ओर करते हुए कहा, "क्या इतना खुदगर्ज़ समझती हो तुम मुझे देवू?? क्या मैं नहीं जानता कि यह सब कुछ तुम अपने पापा के लिए कर रही हो!! मैं जानता हूँ, तुम अपने कर्तव्यों के आगे मजबूर हो। मैंने तुम्हारे मुँह से ही सुना है कि कैसे पापा ने तुम्हें माँ-बाप दोनों बनकर पाला है। मैं समझ सकता हूँ, यह सब कुछ तुम उनकी अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए कर रही हो। मैंने तुमसे प्यार किया है और हमेशा करता रहूँगा, लेकिन हमारा प्यार एक दूसरे के साथ का मोहताज तो नहीं है न देवू!! चाहें तुम मेरे नज़रों के सामने रहो या न रहो, मेरे दिल में तो हमेशा तुम ही रहोगी। मैं तुम्हें अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ने के लिए मजबूर नहीं सकता!! मैं इतना स्वार्थी नहीं हूँ देवू!!"


शिवम के मुँह से वह सब बातें सुन देवांगना को अपने प्यार पर गर्व हो रहा था। उसने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि शिवम उससे यह सब कुछ कहेगा। शिवम की बातों ने उसे हौसला दिया था। उसी हौसले के सहारे वह अपनी ज़िंदगी का नया आगाज़ करने निकल पड़ी थी। उसने मुड़कर शिवम की ओर देखा और धीरे से कहा,"शिवम...जाते जाते बस इतना ही कहूँगी....अपना ख़याल रखना और दुआओं में मुझे याद रखना!!"....


शिवम ने उसकी बात का जवाब एक प्यारी सी मुस्कुराहट के साथ दिया, लेकिन उसकी भी आँखों के कोर में एक छोटा सा आँसू उभर आया था। उसे अपनी उँगली से उस छोटे से आँसू को रोकते हुए उसने कहा, "अच्छा चलता हूँ....मुझे भी दुआओं में याद रखना!!"..........



समाप्त 



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