वह कौन थी ?
वह कौन थी ?
मोहित नाम का एक युवक एक दवाई की कंपनी में काम करता था। काम के सिलसिले में उसे अक्सर आसपास के छोटे छोटे गांवों में जाना पड़ता था। असल में वह गांव के अस्पतालों में जाकर अपनी कंपनी की दवाइयों का विज्ञापन एवं बिक्री करता था।
एक बार ऐसे ही उसे अपने शहर से पचपन किलोमीटर दूर सीतापुर गांव जाना था। हमेशा की तरह वह अपने शहर से सुबह निकलकर शाम को वापिस घर लौटने की सोच रहा था।
वह जल्दी जल्दी बस स्टेशन पहुँचा और सीतापुर की बस लेकर अपने काम के लिए निकल पड़ा। सीतापुर पहुँचते ही उसने बस वाले से वापिस जाने वाली आख़री बस के बारे में पूछा। बस वाले ने उससे कहा, "रात के ठीक नौ बजे आख़री बस होती है बाबूजी। उसके बाद कोई बस नहीं मिलेगी।"
मोहित ने सोचा अगर देर हो भी गई तो रात की यह आख़री बस तो वह ले ही लेगा।
काम ख़त्म करते करते उसे लेट हो ही गया था, जब वह रात को सीतापुर बस स्टेशन पहुँचा तो देखा, उसकी आख़री बस खड़ी थी। लेकिन अभी बस निकलने में कुछ देर थी। टिकट लेकर वह चुपचाप अपने सीट पर आकर बैठ गया और खिड़की से बाहर झांकने लगा।
सीतापुर बस स्टेशन पर वैसे तो लोगों की आवाजाही शुरु थी, लेकिन आसपास की सारी दुकानें बंद हो चुकी थी, तो थोड़ा सन्नाटा सा हो गया था।
तभी अचानक मोहित की नज़र दूर एक पेड़ के पास खड़ी लड़की पर पड़ी। सफ़ेद रंग के लिबास में वह लड़की बेहद खूबसूरत लग रही थी। उम्र भी बीस-इक्कीस ही होगी।उसके लंबे रेशमी बाल हवा में लहरा रहे थे।
मोहित ने ग़ौर से देखा, वह लड़की उसके ओर ही देख रही थी। एक दो बार मोहित ने नज़रें इधर उधर कर टालने की कोशिश की ताकि उस लड़की को यह न लगे कि मोहित उसे ही देख रहा है। लेकिन वह ज़्यादा देर तक अपने आप को रोक नहीं पाया। उसने दोबारा उस लड़की की ओर देखा, वह अभी भी वही पेड़ के पास खड़ी थी और मोहित को ही देख रही थी।
मोहित उसके चेहरे के भाव समझने की कोशिश कर रहा था, ऐसा लग रहा था मानो वह उससे कुछ कहना चाहती थी।
तभी बस कंडक्टर के अंदर आते ही बस शुरू हो गयी और वहाँ से चल पड़ी। मोहित अभी भी उस लड़की की ओर देख रहा था और वह लड़की भी मोहित को तब तक देखती रही, जब तक बस उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गई।
वापसी के पूरे रास्ते मोहित यही सोचते रहा कि आख़िर वह लड़की थी कौन?? और वह उसे इस तरह क्यूँ देख रही थी?!
दूसरे दिन मोहित जब अपने कंपनी के ऑफिस गया तो उसे पता चला कि उसे आज भी सीतापुर के ही दूसरे अस्पताल में जाना है। उस दिन भी वह बस से सीतापुर पहुँचा और अपना काम ख़त्म कर उसी आख़री बस से लौट रहा था। तभी उसने देखा, वही कल वाली लड़की आज भी पेड़ के पास खड़ी होकर उसे ही देख रही थी। इस बार मोहित से रहा नहीं गया और वह बस से नीचे उतरकर उस लड़की की ओर बढ़ गया। उसे जाते देख बस कंडक्टर ने उससे पूछा, " बाबूजी यह आख़री बस है। क्या आप ने जाने का इरादा बदल दिया या वापिस आएंगे??"
मोहित कंडक्टर की बात सुन रुक गया और मुड़कर उससे पूछा, "वह जो पेड़ के पास लड़की खड़ी है, क्या आप उसे जानते है??"
कंडक्टर - लड़की?? कौनसी लड़की बाबूजी?? वहाँ तो कोई नहीं है।
कंडक्टर की बात सुन मोहित ने पेड़ की ओर मुड़कर देखा तो वहाँ कोई नहीं था।
मोहित - वह...वह अभी अभी यही थी। कहाँ गयी?? सफ़ेद रंग के लिबास में थी वह, लंबे बाल, बीस साल की होगी ज़्यादा से ज्यादा। मुझे कल भी दिखी थी और आज भी। आप तो इस गांव आते जाते रहते है, आपने उसे देखा होगा पहले।
कंडक्टर - नहीं बाबूजी, आप जैसा हुलिया बता रहे है वैसी कोई लड़की हमने इस गांव में तो नहीं देखी। आपको ज़रूर कोई वहम हुआ है।
मोहित को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वह कौन है?? और उसे ऐसे क्यूँ देखते रहती है वह??
वह चुपचाप अपने सीट पर आकर बैठ गया। थोड़ी ही देर में बस चल पड़ी। वह अपनी आँखें मूंदकर बैठने ही वाला था, तभी चलते हुए बस में से उसकी नज़र खिड़की के बाहर पड़ी तो उसने देखा, वह लड़की बाहर खड़ी थी और उसे देख रही थी। वह तेज़ी से अपने सीट पर से उठा, सामने बस के दरवाज़े के पास गया और लगभग चिल्लाते हुए ड्राइवर को गाड़ी रोकने को कहा।
मोहित के यूँ अचानक चिल्लाने की वजह से ड्राइवर ने बस रोक दी। मोहित ने दरवाज़ा खोला और वह बस के बाहर आया तो देखा, वहाँ पीछे कोई नहीं था। उसने अपने सिर पर हाथ रखा और वह सोचने लगा, आख़िर उसके साथ यह क्या हो रहा था।
कंडक्टर के कहने पर वह दोबारा बस में आकर अपनी जगह बैठ गया। घर पहुँचने के बाद भी वह लड़की उसके दिलोदिमाग पर छाई रही। नींद उससे कोसों दूर भाग चुकी थी। आख़िर कौन थी वह और सिर्फ़ उसे ही क्यूँ नज़र आ रही थी वह??
इसी उधेड़बुन में रात गुज़र गई, जब सुबह वह अपने ऑफिस पहुँचा तो उसने सोच लिया था, आज वह कहीं बाहर जाने का काम नहीं लेगा। लेकिन जब उसे पता चला कि आज भी उसके लिए सीतापुर का ही काम आया है, तो वह हैरान हो गया। वह समझ गया कि हो न हो यह सब कुछ उस लड़की से जुड़ा हुआ है।
आज उसने ठान लिया था, वह उस लड़की से बात कर के ही लौटेगा।
वह सीतापुर पहुँचा और रात होने से पहले ही बस स्टेशन के पास ही एक चाय की दुकान में आकर बैठ गया। जहाँ वह बैठा था, वहाँ से वह पेड़ साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था पर अभी वहाँ कोई नहीं था। थोड़ी देर बाद जब उसकी नज़र दोबारा पेड़ के पास गई तो वह लड़की वही खड़ी उसे देख रही थी। उसने चाय का कप नीचे रखा और अपनी जगह से उठकर लड़की की ओर बढ़ गया। उसके पास पहुँचते ही उसने पूछा, "कौन हो तुम ?? और मुझे क्यूँ घूरती रहती हो ऐसे??"
लड़की ने बहुत ही नाज़ुक सी आवाज़ में उससे कहा, "मेरा नाम मारिया है। मुझे आपके मदद की ज़रूरत है। क्या आप मेरी मदद करेंगे??"
मोहित - लेकिन मैं आपको जानता भी नहीं हूँ और अगर आप किसी मुसीबत में है तो पुलिस की मदद क्यूँ नहीं लेती??
मारिया - मैं ऐसा नहीं कर सकती। मेरी कुछ मज़बूरियाँ है।
मोहित - कहिए, मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ??
मारिया - आइए मेरे साथ। डरिये नहीं, मैं आपको नुकसान नहीं पहुँचाऊंगी।
न चाहते हुए भी मोहित उसके पीछे पीछे चलने लगा। थोड़ी दूर जाने के बाद एक सुनसान सी जगह पर आकर दोनों रुक जाते है। वहाँ सड़क के किनारे एक छोटा सा देवी का मंदीर बना हुआ था। मारिया ने दूर से ही मंदिर की ओर इशारा करते हुए कहा, "उस मंदिर के पीछे आपको एक सफ़ेद रंग की पोटली मिलेगी, क्या आप उसे ले आएंगे मेरे पास??"
मोहित - क्या?? इतना सा काम?? तो तुम ख़ुद क्यूँ नहीं जाकर ले आती??
मारिया ने कोई जवाब नहीं दिया।
मोहित जल्द से जल्द वहाँ से निकलना चाहता था। वह आगे बढ़ा और मंदिर के पीछे से पोटली लाकर मारिया को देने लगा। लेकिन मारिया ने पीछे हटते हुए कहा, "क्या आप मेरी यह अमानत मेरे घर वालों तक पहुँचा देंगे??"
मोहित - क्या?? क्या मतलब है इसका?? मैं?? मैं तो तुम्हारे घरवालों को जानता तक नहीं।
मारिया - मेरे घरवाले आपके ही शहर में रहते है। आपके शहर में सेंट जेवियर्स चर्च के ठीक पीछे एक छोटासा घर है जहाँ मेरे पिताजी जॉन और बहन जेनी रहती है। आप यह पोटली उन तक पहुँचा देंगे तो मैं आपका यह अहसान कभी नहीं भूलूँगी।
मोहित - आप बड़ी कमाल की है। ऐसे अनजान व्यक्ति पर कैसे भरोसा कर सकती है?? और मैं भी आख़िर आपके बातों का विश्वास भला कैसे करूँ??? आप ख़ुद जाकर क्यूँ नहीं दे देती इस पोटली को?? और इस आख़िर इस पोटली में है क्या??
मारिया - आपके सारे सवालों के जवाब तो मैं नहीं दे सकती बस इतना बता सकती हूँ कि इस पोटली में क़ीमती जेवर और कुछ पैसे है। मैंने अपने पापा और छोटी बहन जेनी का बहुत दिल दुखाया है। मैं उनका सामना नहीं करना चाहती। लेकिन मुझे पता चला है कि वह दोनों बहुत तकलीफों से गुज़र रहे है और इसीलिए मैं यह मदद उन तक पहुँचाना चाहती हूँ। मेरी मजबूरी समझिए। मैं जानती हूँ, आप एक भले मानस है और मेरी मदद ज़रूर करेंगे।
मोहित - और अगर मैं आपकी यह क़ीमती पोटली लेकर भाग गया तो??
मारिया - मैं जानती हूँ, आप ऐसा नहीं करेंगे। आप मुझे एक साफ़ दिल के इंसान लगते है, तभी तो आप मुझे देख सकते है।
मोहित - मतलब??
मारिया ने अपनी बात को टालते हुए कहा, "आपकी आख़री बस निकलने ही वाली है, आपको जल्दी बस स्टेशन पहुँचना चाहिए"।
मोहित ने मारिया की बात सुनी और वह कुछ देर सोच में पड़ गया। फिर उसने मारिया से वादा किया कि वह उसकी अमानत उसके पिता और बहन तक ज़रूर पहुँचा देगा और वह वहाँ से चला गया।
दूसरे दिन सुबह मोहित मारिया के बताए हुए पते पर पहुँचा तो वहाँ सच में उसके पिता जॉन और बहन जेनी रहते थे। उसने पोटली उन्हें थमाते हुए कहा कि यह मारिया ने भेजी है। लेकिन मोहित की बात सुन वह दोनों हैरान दिख रहे थे।
जॉन - यह कैसे हो सकता है??
मोहित - वह सीतापुर में रहती है और उनकी कोई मजबूरी है, जिसकी वजह से वह आ नहीं सकी लेकिन उन्होंने यह आपके लिए भेजा है।
जॉन - माय सन, ऐसा नहीं हो सकता कि वह मारिया थी, क्यूँ की मारिया तो दो वर्ष पहले ही गॉड के पास चली गयी है। आज से दो वर्ष पूर्व, मारिया घर से कुछ पैसे और जेवरात लेकर अपने प्रेमी के साथ भाग गई थी। कुछ दिनों बाद उसका मुझे फ़ोन आया कि उसके साथ धोखा हुआ है और वह वापिस आ रही है, लेकिन गॉड का मर्ज़ी कुछ और ही था। वह तो नहीं आई लेकिन उसके मौत की ख़बर आई।
मोहित ने जब जॉन की बात सुनी तो उसकी हैरानी अपने चरम पर थी, वह समझ ही नहीं पा रहा था कि अगर मारिया दो वर्ष पहले ही मर चुकी थी, तो वह लड़की कौन थी जो एक दिन पहले उससे मिली थी।
जब जॉन ने पोटली खोलकर जेवरात देखे तो वह समझ गए कि यह वही जेवरात है जो मारिया लेकर भागी थी।
जब मोहित को सारा माजरा समझ आया कि हो न हो वह मारिया की रूह थी जो सिर्फ़ उसे ही नज़र आ रही थी, यह सोच उसके शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई। क्यूँ की वह समझ चुका था कि वह कौन थी