Mukta Sahay

Abstract

5.0  

Mukta Sahay

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तुम्हारी शर्तें मंज़ूर नहीं

तुम्हारी शर्तें मंज़ूर नहीं

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पूजा और नमन की चार संतान हैं, क्रम में मौली, रोली, दिया और अक्षत। सभी में दो साल के आसपास का फ़र्क़ है। इन चारों के लालन पालन में पूजा और नमन ने कभी बेटा-बेटी का भेद नहीं किया। एक जैसी शिक्षा, एक जैसी सुविधाएँ और एक जैसी घर की ज़िम्मेदारी। ना कभी बेटियों को पिकनिक करने से रोका ना कभी बेटे को घर पर दोस्तों को बुलाने से मना किया। इसी कारण चारों ने अच्छे कॉलेज से पढ़ाई करी। मौली डॉक्टर, रोली एवं अक्षत इंजीनियर, दिया वैज्ञानिक बने।

पूजा नमन ने अपनी पूरी पूँजी, शारीरिक और आर्थिक, अपने बच्चों पर लगा दी थी। तभी वो हीरे जैसे तराशे बने। बच्चों ने भी कभी माता-पिता की सेवा का मौक़ा नहीं छोड़ते। धीरे धीरे चारों की शादियाँ भी हो गईं और फिर पूजा-नमन नाना-नानी, दादा-दादी भी बन गए। सभी अलग अलग शहरों में रहते थे। अब तक नमन भी सेवानिवृत्त हो गए थे और दोनों पति-पत्नी घर पर अकेले ही रहते थे।

सेवानिवृत्त होने पर जो पैसा मिला उससे उन्होंने एक और घर ले लिया अपने ही शहर में। साल के छः महीने तो नाती-नातिन और पोते के जन्मदिन में उनके साथ निकल जाते थे। जिनका भी जन्मदिन होता उस महीने पूजा-नमन उनके घर चले जाते। उन्हें उपहार और प्यार देकर, महीना भर वहाँ रह कर वापस आ जाते। इसी तरह हँसी ख़ुशी समय बीत रहा था और पूजा-नमन के उम्र भी हंसते खेलते बढ़ती रही थी।

एक दिन अचानक नमन को सीने में दर्द उठा और अस्पताल का चक्कर शुरू हो गया। सप्ताह भर अस्पताल में रहने के बाद जब नमन घर लौटे तो पूजा अकेले नमन के साथ रहने से घबरा रही थी। बच्चे भी ज़्यादा दिन नहीं रुक सकते थे सो सभी ने साथ चलने को कहा। पूजा और नमन मौली के साथ चले गए। फिर बारी बारी से रोली, दिया माता-पिता के सेवा करने अपने साथ ले गई। नमन-पूजा जिनके भी पास रहे उन्हें कुछ ना कुछ मदद ज़रूर कर देते , कभी ज़रूरत की समान ख़रीद देते, कभी कुछ गहने दिला देते तो कभी पैसे की ज़रूरत पूरी कर देते। इन सारी बातों के बीच एक कमी खलने लगी थी पूजा और नमन को और वह थी उनके बेटे अक्षत का व्यवहार। अब उसका फोन कम आने लगा था और मिलने आना भी बहुत कम हो गया था। तीनो बेटियों ने बारी बारी से अपने पास बुला लिया था बच्चों के जन्मदिन के बहाने और समय पहले जैसे ही निकल रहा था।

इस दौरान पोते का जन्मदिन आया पूजा -नमन को जाने की इच्छा थी अक्षत के पास लेकिन अक्षत ने आने को बोला ही नहीं ले जाना तो दूर की बात थी। इस समय ये दोनों रोली के पास थे। रोली ने इनके मन की बात भाँप ली और पूछा अक्षत के यहाँ जाना है। थोड़ी झिझक के साथ पूजा ने कहा हाँ ,मन तो है पर उसने कुछ बोला ही नहीं है, ना ही लेने आया है। पहले तो हम अपने से ही चले जाते थे जन्मदिन पर लेकिन अब नमन की तबियत को देखते हुए अकेले सफ़र करने की हिम्मत नहीं हो रही है। रोली ने कहा चलो मैं चलती हूँ , आप दोनों को छोड़ कर वापस आ जाऊँगी शाम में, ये कौन सी बड़ी बात है।

दो दिन बाद रोली ,पूजा-नमन के साथ रात की गाड़ी से अक्षत के घर निकल गई और सुबह उन्हें वहाँ पहुँचा कर शाम की गाड़ी से वापस आ गई।

दादा-दादी को देख अक्षत का बेटा खूब खुश हुआ, उसे आशा नहीं थी की वे उसके जन्मदिन पर आएँगे क्योंकि अक्षत उन्हें लेने नहीं जा रहा था ये उसे पता था। दादा-दादी और पोते के बीच चौबीसों घंटे बातें होती रहती। इधर अक्षत को माता-पिता से बात करने का समय नहीं मिल रहा था या यों कहें की वह बात ही नहीं करना चाह रहा था। पूजा-नमन बेटे से बात करने के लिए बेचैन हो रहे थे। इतवार के दिन जब अक्षत नाश्ते के लिए साथ बैठा तो दोनों की आँखे चमक गई और दिल को सुकून मिला। हाल-चाल , मौसम , रिश्तेदार आदी बातों के बाद पूजा ने पूछ ही लिया बेटे से उसकी नाराज़गी की वजह, की क्यों वह आने को नहीं बोला,ना लेने आया और इतने दिनों तक बहाने बना कर बातें ना करना। इस पर अक्षत ने जो कहा वह सुन कर पूजा-नमन को ज़ोरदार झटका लगा। अक्षत ने कहा मैं आपका एकलौता बेटा हूँ । नमन ने टोका था कि चार संतान हैं मेरी, तू अकेला नहीं है।

अक्षत ने आगे कहा, मैं बेटा हूँ सो आपका सब कुछ मेरा होना चाहिए। बेटियाँ आपने ब्याह दी हैं, जो उन्हें देना था उनकी शादी में दे ही दिया है लेकिन फिर भी आप लोग अब भी उनपर सब कुछ लुटाए जा रहे हैं। और जो आप लुटा रहे हैं वह सब मेरा है, मेरे हक़ का है। तो मुझे बुरा तो लगेगा ही। आप बेटियों के घर जाना और उन्हें कुछ भी देना छोड़ दें तो आप हमारे साथ रह सकते हैं।

इस पर पूजा ने कहा जब नमन अस्पताल में थे तब तू तो अगले दिन आया था क्योंकि तेरी ज़रूर मीटिंग थी। तब दिया और मेहमान ही पहुँचे थे। इस घटना के बाद जब हम दोनों को अकेले रहने में घबराहट हो रही थी तब तू भी कहाँ था? लेकिन तुमने तो एक बार भी नहीं कहा कि मेरे साथ चलो। मौली की आय और घर दोनों छोटा है पर वह एक पल भी नहीं लगाई हमें साथ ले जाने में। जिस पैसे पर हक़ जता रहा है वह पैसा तुम्हारा नहीं है हमारा है मेरा और नमन का। इस पैसे पर और सब कुछ पर हमारी चारों संतान का हक़ है। ये तो क़ानून के अनुसार भी है। और हाँ हम यहाँ अपने पोते के जन्मदिन पर आए है , दो दिन बाद जन्मदिन है , उसकी अगली सुबह हमलोग अपने घर चले जाएँगे। तुम्हारी शर्त तो हम नहीं मानते है। बेटियों से रिश्ता तो नहीं तोड़ेंगे । हाँ तुम्हारे यहाँ कम आएँगे , बस अपने पोते के जन्मदिन के दिन आएँगे।

चलो बहु चाय पिलाओ, बहुत बोल लिया अब गले में खराश आ गई है। ऐसा कह कर पूजा और नमन बाहर आँगन में पोते के पास निकल हुए। अक्षत वही शून्य को निहारता रहा।

पूजा- नमन को अब भी समझ नहीं आ रहा कि उनका बेटा ऐसी सोच कहाँ से लाया? परवरिश में तो कहीं कोई कमी नहीं रह गई। असमंजस की स्थिति बनी है जीवन की।



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