Mukta Sahay

Inspirational

4.5  

Mukta Sahay

Inspirational

मापदंड

मापदंड

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फ़ोन की घंटी बजी और रश्मि ने फ़ोन उठाया “ हेलो” , उधर से आवाज़ आई “ श्रीमती शिखा सिंह जी से बात हो जाएगी “ । रश्मि ने कहा “ एक मिनट होल्ड करें” और आवज लगाई शिखा तुम्हारा फोन है । 

शिखा ने बात करके जैसे ही फोन नीचे रखा रश्मि ने कहना शुरू किया , "ये क्या अभी तक तुमने अपना नाम नहीं बदलवाया । शादी के दो साल होने को आए पर अभी तक तुम शिखा सिंह से शिखा चौहान नहीं बनी हो।" रश्मि शिखा की बड़ी ननद है जो अभी कुछ दिनों के लिए उसके यहाँ रहने आई है। 

शिखा ने कहा , "दीदी ऑफ़िस से लेकर बाहर तक के सारे काग़ज़ातों में नाम बदलवाने पड़ेंगे। बहुत मुश्किल होगी। इसलिए हम दोनो ने सोंचा रहने देते हैं।" शिखा ने कड़क आवज में कहा , "ये तो कोई बात नहीं हुई।"

रश्मि और शिखा की बातें सुन कर सुमित भी आ गया । रश्मि ने सुमित से कहा, "ये क्या है सुमित , ये अभी तक शिखा सिंह ही है।" सुमित ने कहा "क्या फ़र्क़ पड़ता है दीदी ।"

रश्मि ने कहा ," फ़र्क़ पड़ता है । अब इसका उस घर से कोई नाता नहीं है , ये इस घर की बहु है। अब इसे वहाँ के मामलों में नहीं बोलना चाहिए और यहाँ के तौर-तरीक़े निभाने चाहिए।" इसपर सुमित कहता है , "दीदी जिस घर में ये बड़ी हुई है, इसने अपनी और उनकी पहचान बनाई है , उसे कोई छोड़ दे। जहां तक वहाँ के मामले में इसके ना बोलने की बात है तो फिर ये भी तो यहाँ का मामला है जिसपर निर्णय मेरा और शिखा का होना चाहिए।" 

रश्मि समझ गई थी की सौम्य शब्दों में सुमित ने उसे अहसास दिला दिया था की उसने जो भी अभी कहा है वह सही नहीं है।क्यों ऐसा है की मापदंड बदल जाते है हमारी सोंच के अपने और दूसरों के लिए।


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