प्रेम
प्रेम


किताबें ही मधु की दुनिया हुआ करती थीं। बचपन से लेकर आजतक उसने सिर्फ़ किताबें ही पढ़ी हैं। घर में समारोह हो या कहीं किसीसमारोह में शामिल होना तो बस एक मुश्किल ही होती थी उसके लिए।
आज जब दीदी की शादी की तैयारियाँ चल रही थी और घर में दूर-दूर के रिश्तेदारों का जारी था। ये सारा भीड़-भाड़ मधु के लिए जैसे घुटन जैसा था। दीदी की शादी की ख़ुशी तो बहुत थी लेकिन इन परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बैठा पाना बहुत ही कठिन।
माँ ने फूल वाले के काम को देखने को कहा था सो वह उन्हें काम बता रही थी कि तभी किसी ने कहा सुनिए इन फूलों को ऐसे ना लगवाकर इधर से लगवाइए । मधु कुछ कहती इसके पहले उसने फूल वाले को सारे काम ऐसे बताने श
ुरू कर दिए जैसे उसका ही घर हो।उनसे निपट कर वह मधु की ओर देखा , तो मधु ने पूछा आप कौन? तो पता चला ये तो दीदी का देवर है। मधु झेंप सी गई।
सगाई के दौरान भी मधु अपने में ही खोई थी और उसने नए बनने वाले किसी रिश्ते पर ध्यान ही नही दिया था। लेकिन शायद दीदी के देवर ने कुछ ज़्यादा ही ध्यान दिया था। उसने मधु को एक पैकेट दिया और खोल कर देखने को कहा। किताबें थी , लेकिन सभी प्रेम परआधारित। मधु इस प्रेम प्रस्ताव का क्या जवाब दे समझ नही पाई और अंदर चली गई, लेकिन एक अहसास साथ था, नया सा।
दीदी की विदाई तक उस अहसास ने मधु की दुनिया में किताबों के साथ साथ एक नए पसंद को भी जगह मिल गई थी। एक नई शुरुआतहो गई थी।