अपनी ज़िंदगी, अपने कश्मकश
अपनी ज़िंदगी, अपने कश्मकश
शुक्ला जी ने आफिस में आज फिर वही पुराना आलप छेड़ दिया
“ भाई मिश्रा जी ! तुम्हारे तो मज़े हैं , डी॰आई॰जी० जो हो । तुमऔर भाभी जी दोनों ही अच्छे सरकारी नौकरी में हो तो पैसा पैसे की तो कोई कमी नहीं है ”।
यहाँ डी॰आई॰जी० से मतलब है डबलइनकम ग्रूप । मिश्रा जी ने शुक्ला जी की तरफ़ देख धीरे से मुस्कुरा दिया और अपने काम में लग गए। शुक्ला जी को चैन नहीं आया , फिर शुरू हो गए । हमें तो रेडीओ , साइकिल के लिए भी पैसे जोड़ने पड़ते हैं और मिश्रा जी तो दुकान से सब्ज़ी-भाजी की तरहएल॰ई॰डी॰ - टी॰वी॰ और फ्रिज उठा लाते हैं।
मिश्रा जी के साथ साथ कमरे में बैठे आफ़िस के सभी लोग समझ गए थे कि अब शुक्ला जी अगले आधे- एक घंटे के लिए शुरू हो गए हैंऔर अपनी बातों से सभी को परेशान करेंगे।हर बार की तरह आज फिर मिश्रा जी ही निशाने पर है।यों तो मिश्रा जी इन फ़ालतू की बातोंमें कुछ जवाब नहीं देती है पर शायद आज उन्होंने कुछ अलग करने की सोचीं थी ।
मिश्रा जी ने कहा “शुक्ला जी ! ये बताइए आपका बेटा , बड़ा वाला , कौन से स्कूल में जाता है ?” शुक्ला जी चुप । मिश्रा जी ने पूछा “ कौन सी क्लास में है वह?” शुक्ला जी पास बैठे माथुर साहब को देखने लगे , फिर कहते हैं “ ये सब जान कर मैं क्या करूँगा ? भाई बच्चेपालना तो मिसेज़ का काम है ।वही सम्हाले ये सारे झंझट ।” और फिर वे हँस पड़े । शुक्ला जी के इस अदा पर सभी हँसने लगे । आजशायद मिश्रा जी पूरे मन से शुक्ला जी से बातें करना चाहते थे। मिश्रा जी ने फिर कहा “ शुक्ला जी मुझे बिजली का बिल और हाउसटैक्स जमा करन है । इनके ऑफ़िस कहाँ है ज़रा गाइड कर दीजिए , तो मैं भी जमा कर आऊँ” । शुक्ला जी कहते हैं “ पता नहीं मिश्राजी । मिसेज़ से पूछ कर बताता हूँ। ” शुक्ला जी फ़ोन उठाते हैं तो मिश्रा जी कहते हैं रहने दीजिए शुक्ला जी मुझे पता है। मैं तो बस जानना चाहता था की ये काम आप करते हैं या भाभीजी। यही फ़र्क होता है डी॰आई॰जी॰ और एस॰आई॰जी॰ का ।
"ये तो आप का निर्णय है की आप डी॰आई॰जी॰ रहेंगे या एस॰आई॰जी॰ । आपको गरम रोटी ही चाहिए होती हैं , ठण्डी रोटी होने परआप भाभीजी को झड़क देते हैं। ये तो आपने ही बताया है ना।हमारे यहाँ हम पूरा परिवार रात का खाना साथ ही खाते हैं । फिर चाहे रोटीठंडी हो या सूखी , सब मिल कर खाते हैं। हम दोनों सुबह जल्दी उठकर घर का सारा काम निपटाते हैं । आपकी तरह देर तक सोने का सुख मुझे नहीं है और दोपहर के नींद के मज़े मेरी पत्नी कभी ले ही नहीं पाती। और भी ऐसे कई उदाहरण हैं पर इतने में ही आपको समझ आ गया होगा । क्यों शुक्ला जी !"
अच्छा हाँ ! हमारे ख़र्चे भी आपसे बहुत अलग हैं । जैसे ड्राइवर , महाराजिन और कामवाली की तनख़्वाह । प्लमबर , इलेक्ट्रिशन कोशाम में बुलाने पर ज़्यादा मेहनताना देना इत्यादि । मुझे लगता है अब आपको डी॰आई॰जी॰ के फ़ायदे और परेशनियाँ समझ आ गईहोंगी । तो कृपया बात-चीत के लिए अन्य मुद्दे ढूँढे ।"
इस घटना के बाद शुक्ला जी ऑफ़िस में ऐसी फ़ालतू बातें करना भूल ही गए । अभी उन्हें ये समझ में आ गया था कि जैसे हर इंसानअलग अलग है वैसे ही हर किसी की ज़िंदगी के कश्मकश अलग हैं। आप दूर से बैठ कर किसी के बारे में कोई निर्णय नहीं ले सकते ।दरसल ये अधिकार आपके पास है ही नहीं ।