Mukta Sahay

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श्रुति और उसकी सहेलियाँ – दीवारें (भाग -1)

श्रुति और उसकी सहेलियाँ – दीवारें (भाग -1)

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श्रुति! बेटा ये क्या फिर से दीवारों से बातें शुरू कर दी। जल्दी आओ हमें आगे भी तो जाना है।‘


‘आई माँ, बस एक मिनट’, श्रुति ने कहा।


‘क्या फ़ितूर है इस लड़की का जहाँ भी जाओ दीवारों से बातें करती है। बेटा दीवारें बातें नही करते और तुम्हें ऐसे देख कर सभी पागल ही समझते है’, हंसते हुए सीमा अपनी बेटी श्रुति से कहती है।


अब तक श्रुति सीमा के पास आ गई थी। ‘माँ ऐसा नही है दीवारें भी बहुत सी बातें करती हैं और अनगिनत कहानियाँ सुनती हैं। कभी तुम भी बात करके देखो’ और दोनो माँ बेटी खिलखिला कर हंस पड़ती हैं।


श्रुति चौदह वर्ष की अल्हड़ किशोरी है और सीमा लगभग चालीस की परिपक्व शालीन महिला । सीमा शहर की जानी मानी डॉक्टर है और उसके पति समर कारोबार। समर अपने कारोबार में बहुत व्यस्त रहता था फिर भी महीने में कुछ दिन ख़ास परिवार के लिए निकल लेता था और इस दौरान पूरा परिवार किसी नई जगह घूमने जाता था। श्रुति को हमेशा इन दिनों का इंतज़ार रहता था।


इस बार श्रुति अपने परिवार के साथ इन पहाड़ियों में बनी प्राचीन गुफा मंदिर को देखने आई है। मंदिर के ऊपर वाली पहाड़ी से एक झरना गिरता है जिसके कलकल के बीच स्वछंद विचरण करते पक्षियों के कलरव से यह जगह बहुत ही सुंदर हो जाती है। जो भी यहाँ आता है वह फिर यहाँ आने की कामना ज़रूर करता है लेकिन शायद ही कोई दोबारा आया। यूँ तो यह मंदिर बहुत ही महत्म का है लेकिन दुर्गम पहुँच की वजह से भीड़ से दूर है। जिन्हें ट्रैकिंग का या घूमने का शौक है वही यहाँ तक आते हैं। इसके अलावा यहाँ आते हैं वे लोग जिन्होंने किसी इच्छा पूर्ति पर यहाँ आना मान रखा हो।


मंदिर के आसपास ही यहाँ के पुजारी और उनका परिवार रहता है। पुजारी के परिवार में कुल सात लोग है, पुजारी, उसकी पत्नी, दो बेटियाँ, दो बेटे और एक वृध पिता। प्रायः सारे यात्री उसी दिन वापस हो लेते हैं लेकिन कई बार मौसम ख़राब हो जाने के कारण कई यात्री शाम से पहले वापस नही जा पाते तो वे पुजारी के परिवार के साथ ही रात बिता लेता है। पुजारी ने इसकी व्यवस्था कर रखी है।


अब तक श्रुति और उसके माता-पिता मंदिर के गर्भ गृह में पहुँच गए थे। गुफा की संकरी अंधेरे रास्तों से होते हुए अब मंदिर के दर्शन हो गए। गर्भ गृह में व्याप्त उजियारा इस बात के बिलकुल विपरीत था कि यह एक गुफा के अंदर है। यहाँ पता नही कहाँ से सूर्य की रोशनी आ रही थी। रोशनी का कोई स्रोत नज़र नही आ रहा था। ना जाने क्या शक्ति थी या वास्तु कला। जो भी हो यह जगह आपको विस्मय में डालने वाला था।


सभी मंदिर में दर्शन के बाद यहाँ की कला को निहार रहे थे, सीमा और समर भी गुफा के अंदर बनी खम्भों और उनपर उकेरी गई मूर्तियों और आकृतियों को गौर से देख रहे थे और श्रुति गुफा के उस भाग के पास खड़ी थी जहां कि आकृतियों में से कुछ पूरी और कुछ अधूरी थीं। दूर से देखो तो ऐसा लग रहा था जैसे श्रुति वह खड़ी कुछ सुन रही हो और बीच बीच में कुछ बोल भी रही थी। सीमा की नज़र उसपर गई तो उसने आवज लगाई, ‘श्रुति इधर आ देख इस खम्भे को कितना सुंदर है। कहाँ उस अधूरी कृति को निहार रही है’। श्रुति वैसी की वैसी ही खड़ी रही। सीमा ने फिर आवज लगाई। अब समर भी श्रुति को आवज देने लगा। श्रुति अभी भी वहीं खड़ी थी, जैसे उसने कुछ सुना ही नही हो। समर और सीमा उसके पास आ गए, श्रुति अभी भी वैसे ही खड़ी थी दिवार को देखती हुई। समर ने कहा, क्या हुआ श्रुति! ऐसे क़्यों खड़ी हो? श्रुति ने कहा, सुनो ना पापा ये दिवार क्या कह रही है। समर हँस पड़ा, ये क्या श्रुति दीवारें भी कहीं कुछ बोलती हैं क्या?


हाँ बोलती हैं, दीवारें बहुत कुछ बोलती है, मैं इनसे कितनी ही बातें करती हूँ, श्रुति ने ज़ोर देते हुए कहा। यहाँ देखो इस मूर्ति को देखो, कुछ पूरी हैं और कुछ अधूरी। मैंने इसका कारण इस दीवाल से पूछा तो इसने जो बताया वह बहुत ही दुखद था और दीवार भी बहुत दुखित है। क्या बोल रही हो श्रुति, सीमा ने कहा। श्रुति बोली हाँ माँ ऐसा ही है। तभी पीछे से आवज आई, भैया जी जल्दी करें, सूरज ढल गया तो आज रात यहीं रुकना होगा। चलो श्रुति चलो जल्दी चलो, और इसके साथ ही सीमा और समर श्रुति को साथ ले मंदिर के गर्भ गृह से संकरी अंधेरी रास्ते से बाहर निकलने लगे।


बाहर निकलने पर देखा तो काले गहरे बादल छाए थे और ऐसे में पहाड़ियों से उतरना सुरक्षित नही था इसलिए पुजारी के घर पर रुकने की सलाह दी गई और सभी ने रात पुजारी के परिवार के साथ ही गुज़ारी। क्रमशः


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