ठग
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"हो गया गिन्नी सब ठीक-ठाक से ?" आज गिन्नी के डैडी की तेरवीं और पगड़ी का रस्म अदायगी थी। उसके डैडी 28 जून को अनन्त यात्रा पर चले गए थे। रेल यात्रा में कोरोना के डर और कुछ घर की उलझनों के कारण मैं पटना से दिल्ली नहीं जा सकी।
"हाँ दीदी ! सब ठीक से हो गया। आज हमलोग डैडी के लिए आखिरी बार कुछ कर लिए। जानती हैं दीदी आज तेरहवीं का रस्म कराने जो पण्डित जी आये थे वे बिहार के ही थे। झा जी। वे बिहार के ही विधि विधान से सब करवा रहे थे। यह भी गजब का संयोग रहा न...! डैडी आजीवन बिहार में रहे और अन्तिम कर्मकाण्ड करवाने वाले भी बिहारी पण्डित...!"
"ओ अच्छा ! बिहार के पण्डित जी थे इसलिए पहले बोले कि 10 जुलाई बढ़िया दिन है उस दिन तेरहवीं-पगड़ी का रस्म कर लीजिए। उस दिन ज्यादा घर पूजा अर्चना करने का हो गया होगा तो कह दिए कि 9 जुलाई को ही बढ़िया समय हैं।"
"छोड़िये.. जाने दीजिए दीदी ! यह पण्डित लोगों का व्यापार है.. ! अब तो लोग ज्यादा व्यवहारिक और समय की कमी के कारण तीन दिन में ही आर्य समाज की विधि से..,"
"वैसे तो बेटियाँ तीन दिन पर ही दान-पुण्य कर लेती हैं। वह एक रस्म जो प्राचीन काल से चलता आ रहा है उसे ना कोई बदलना चाहे तो चलता है। लेकिन यह तो ना तीन दिन का हुआ और ना तेरह दिन का हुआ... ,"
"हमलोग क्या कर सकते थे ?"
"तुमलोग कुछ नहीं कर सकती थी। झा जी ही जैसे किसी पण्डित जी के लालच के कारण ही तो चावल को आवरण में छिपा धान बना।"