अंगिरस और सत्यकाम के कदम ख़ुशी से फुले न समा रहे थे। उन दोनों की समझ पे खुश होकर माँ ने 10रुपए पकड़ा... अंगिरस और सत्यकाम के कदम ख़ुशी से फुले न समा रहे थे। उन दोनों की समझ पे खुश होकर...
उसे बहुत अच्छा लग रहा था। अब फ्लैट में उतना अकेलापन नहीं था। उसे बहुत अच्छा लग रहा था। अब फ्लैट में उतना अकेलापन नहीं था।
हम सब उस नन्हीं दोस्त गिलहरी को याद ज़रूर करते थे। हम सब उस नन्हीं दोस्त गिलहरी को याद ज़रूर करते थे।
सोचिये साथियों फिर क्या हुआ। भूरे-भूरे,पीले खिले-खिले गरम चने। सोचिये साथियों फिर क्या हुआ। भूरे-भूरे,पीले खिले-खिले गरम चने।
कुछ देर घूमने के बाद हमेेंं बस मिली और हमारी बस फिर चल पड़ी। कुछ देर घूमने के बाद हमेेंं बस मिली और हमारी बस फिर चल पड़ी।
पण्डित जी के लालच के कारण ही तो चावल को आवरण में छिपा धान बना।" पण्डित जी के लालच के कारण ही तो चावल को आवरण में छिपा धान बना।"