Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Ashish Kumar Trivedi

Drama

3  

Ashish Kumar Trivedi

Drama

कुकिंग

कुकिंग

3 mins
310


शीरीन ने सुबह से कुछ देर किताब पढ़ी, फिर म्यूज़िक सुना। अपनी डायरी लेकर लिखने की कोशिश की। पर किसी भी चीज़ में उसका मन नहीं लग रहा था। बस एक ही शब्द उसे परेशान कर रहा था 'लॉकडाउन'। वह बालकनी में आकर खड़ी हुई। पहले सड़क पर दौड़ती गाड़ियों का हुजूम दिखाई पड़ता था। आज दूर तक खाली सड़क दिखाई पड़ रही थी। यह देखकर शीरीन और अधिक उदास हो गई। वह वापस कमरे में आ गई।

उसे लग रहा था कि जैसे वो कैद होकर रह गई है। ना कहीं जा सकती है ना ही किसी को बुला सकती है। वैसे तो वह अकेले ही इस फ्लैट में रहती थी। पर आज फ्लैट की दीवारें काटने को दौड़ रही थीं। शीरीन अफसोस कर रही थी। अम्मी ने कहा था कि घर चली आओ। तब सब आ जा रहे थे। पर उसने मना कर दिया। उसे लगा था कि कुछ दिन बाद चली जाएगी। पर अब तो इस लॉकडाउन में फंस कर रह गई है। उसका मन कर रहा था कि घर पर अम्मी अब्बू से स्काइप पर बात करे। पर उसकी जो हालत थी उसे देखकर अम्मी अब्बू परेशान हो जाते। वह यह नहीं चाहती थी। कॉल भी नहीं कर सकती थी। डर था कि कहीं उनकी आवाज़ सुनते ही रो ना पड़े। यह सब सोंच कर उसे सचमुच रोना आने लगा। उसे अपनी सहेली रंजना की याद आई।

उसने उसे स्काइप किया। लैपटॉप की स्क्रीन पर रंजना का चेहरा उभरा। रंजना ने घबरा कर पूँछा, "शीरीन... तुम रो रही हो ? सब ठीक है ना ? अंकल आंटी तो ठीक हैं ?" अपनी सहेली के सवाल सुनकर शीरीन ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। रंजना घबरा गई। "शीरीन... प्लीज़ चुप हो जाओ। बताओ क्या बात है ? मुझे घबराहट हो रही है।" रंजना की बात सुनकर शीरीन ने खुद को संभाला। अपने आंसू पोंछ कर बोली, "घबराओ मत। बस अकेलेपन से ऊब गई हूँ। किसी चीज़ में मन नहीं लग रहा। मेरा तो मन कर रहा है कि बाहर निकल जाऊँ। फिर जो भी हो।" रंजना ने तुरंत उसे समझाते हुए कहा, "पागल हो गई हो। ऐसा मत करना। ये हमारी हिफाज़त के लिए ही तो है। मालूम है ना कि कोरोना लोगों को बीमार कर रहा है।" शीरीन को अपनी गलती समझ आ गई। वह बोली, "जानती हूँ यार...वो तो परेशानी में मुंह से निकल गया। कैसे काटूँगी इतने दिन। किसी भी काम में मन नहीं लग रहा है।" रंजना हंस दी। शीरीन चिढ़ गई। "हंस लो.... तुम तो अपनी फैमिली के साथ हो ना।" "बुद्धू तुम पर नहीं हंस रही। अच्छा बताओ खाना क्या बाहर से मंगाती हो।" "दो दिन से खिचड़ी बना रही हूँ। जैसे तैसे ठूंस लेती हूँ। मुझे तो कुकिंग आती नहीं है।"

रंजना कुछ क्षणों तक चुप रही। फिर बोली, "चलो फिर कुकिंग सीखो..." "अब तुम पागलों की तरह बात कर रही हो। कौन सा कुकिंग क्लास खुला होगा।" "मेरी मम्मी का...." रंजना ने उसे सब्जी बनाने के लिए कुछ हिदायतें दी।

उसके बाद बोली कि सब तैयार करके फिर से स्काइप करे। शीरीन उसकी हिदायत के हिसाब से तैयारी करने लगी। कुछ देर बाद किचन में जाकर फिर स्काइप किया। इस बार रंजना की मम्मी की शक्ल दिखाई पड़ी। रंजना की मम्मी बताती जा रही थीं। शीरीन उसके हिसाब से काम कर रही थी। उसे बड़ा मज़ा आ रहा था। कुछ ही देर में सब्जी बनकर तैयार हो गई। शीरीन ने चख कर देखा। उसे आश्चर्य हुआ कि उसने इतनी अच्छी सब्जी बनाई है। 

रंजना की मम्मी ने कहा कि वह रोज इसी तरह उसे कोई नई चीज़ बनाना सिखाएंगी। शीरीन ने अपने घर पर स्काइप किया। अपनी अम्मी को दिखाया कि आज उसने खुद सब्जी और चावल बनाए हैं। शीरीन ने चावल के साथ सब्जी खाई। उसे बहुत अच्छा लग रहा था। अब फ्लैट में उतना अकेलापन नहीं था।


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