तपिश
तपिश
रोहन!
हां, सोनिया...
मुझे मां के लिए चिंता हो रही है।
किस बात की चिंता?
मां को दो-तीन दिनों से लगातार फीवर आ रहा है और घर में अकेली है। हम दोनों के सिवा उनका है भी कौन? मैं सोच रही थी, क्यो न दो-तीन दिनों के लिए हम दोनों उनके पास चलें?
सोनिया तुम तो जानती हो, यह मार्च एंडिंग है , काम का प्रेशर हाई है चाह कर भी ना जा पाऊंगा... तुम कहो तो तुम्हें सुबह की ट्रेन पकड़ा देता हूं...
मेरी भी मात्र 3 दिन छुट्टियां बची हैं।
छुट्टी की चिंता ना करो अगले माह में नई छुट्टियां आ जाएंगी।
ठीक है तो मैं पैकिंग कर लेती हूं।
हां।
मैं भी संडे को आने की कोशिश करूंगा।
हां।
अगली सुबह रोहन जब सोनिया को विदा करके स्टेशन से लौटा तो महसूस किया कि सोनिया के बिना घर कितना सूना है, यह पहला मौका था जब शादी के बाद दोनों एक दूसरे से दूर हुए थे।
सुबह जल्दी- जल्दी तैयार होकर ऑफिस निकल गया। ऑफिस से लौटते हुए वही नुक्कड़ वाली चाय की दुकान पर बाइक रोक दी...
भैया चाय बनाना...
हां, साहब।
आज मेमसाब नहीं आई?
नहीं भैया, वह अपने मायके गई है।
अच्छा।
वह बांस की बैंच पर बैठ गया...!
दुकान के बाहर लोगों की भीड़ थी... चाय आने में अभी टाईम था, वह अपनी पुरानी ख्यालों में खोने लगा....।
उस दिन ऑफ़िस टाइम समाप्त हुआ तो वह बैग पीठ पर लटकाए, घर जाने के लिए बाईक स्टार्ट किया। आधा किलोमीटर है चला था कि बेमौसम की बारिश अचानक शुरू हो गई । पानी से बचने के लिए वह नुक्कड़ की चाय की दुकान घुस गया, जो बांस और फूस की बनी थी। तभी दुकान के बाहर एक स्कूटी रुकी और पानी से बचने के लिए, लगभग दौड़ती सी वह लड़की दुकान में प्रवेश की... हेलमेट उतारा, पर्स से छोटा सा रुमाल निकाली और अपने हाथों को पोछने लगी,भींगे दुपट्टे को झटका... रोहन उसे गौर से देख रहा था... नीला जींस ,नीले और आसमानी कंबीनेशन की कुर्ती ,लंबा कद, सांवला रंग, घुंघराले बालों पर वर्षा के बूंदों के मोती... अचानक दोनों की नजरें मिली...
रोहन ...! तुम?
अरे सोनिया तुम? यहां कैसे? बिष्टुपुर से कब आई?
एक सप्ताह पहले आई हूं रोहन!
गुलजारबाग में एंबीशनकेयर कंपनी ज्वाइन की हूं।
अरे वाह! यह कंपनी तो मेरे बैंक के पास ही है।
अच्छा तो तुम बैंक में जॉब कर रहे हो?
हां सोनिया मैं पीएनबी में बैंक मैनेजर हूं।
अच्छा मैनेजर साहब! अच्छा हुआ इस अनजान शहर है बचपन के दोस्त और पीएनबी के मैनेजर से मुलाकात हो गई।
हाहाहाहाहा।
दोनों की हंसी से चाय की छोटी सी दुकान खुशनुमा हो गई थी।
कहां रह रही हो?
कंपनी की तरफ से क्वार्टर मिला हुआ है शहीद मोड़ के पास।
वाह!
चाय पियोगी?
नेकी और पूछ -पूछ? ऐसे मौसम में चाय की तलब बढ़ जाती है।
रोहन दुकानदार की तरफ मुखातिब हुआ... भैया दो चाय बनाइए... स्पेशल अदरक इलायची वाली...
जी साहब ! अभी बनाया।
जानती हो सोनिया... यहां की चाय तुम्हें बहुत पसंद आएगी, मैं तो रोज़ चाय पी कर ही घर जाता हूं।
यहां अकेले रहते हो?
हां पिछले दो सालों से यह हूं।
सोनिया तुम्हें याद है हम कितने दिन बाद मिलें हैं?
दिन नहीं रोहन...हम पूरे दस सालों के बाद मिलें हैं।
हां , हम मैट्रीक के बाद आज ही मिलें हैं।
दुकानदार मीट्टी की कुल्हड़ में चाय दे कर चला गया था।
चाय पीती हुई सोनिया बोली " वाकई चाय बहुत बढ़िया है।"
तो कल से शाम की चाय यही फिक्स रही?
डन।
उस रोज़ के बाद दोनों ऑफिस से लौटते उसकी चाय की दुकान पर मिलते ... धीरे-धीरे दोस्ती प्रगाढ़ हुई और प्रेम में परिणत होती चली गई।
रोहन के घर वाले उसकी शादी के लिए लड़की चयन रहे थे। कई रिश्ते मिले पर कहीं लड़की पसंद नहीं , कहीं दहेज मनचाहा नहीं मिल पा रहा था। हां दो दिन पूर्व जो रिश्ता आया था यह दोनों ढंग से उपयुक्त था। लड़की को ब्रह्मा ने फुर्सत में बनाया था और धन के देवता कुबेर उसके घर पर मेहरबान थे। लड़की के पिता अकूल संपति के मालिक थे। तीन चार राउंड की बात हो चुके थी। 50 लाख नगद के अलावा लड़की के जेवर ,होटल , मैरेज हॉल , बैंड़ सजावट , बारातियों का स्वागत उपहार सब लड़की वालों की तरफ से ही होना तय हुआ था। कुल मिलाकर 80 से 90 लाख का खर्चा था। सब तय हो गया था, बस लड़की देखने की फॉर्मेलिटीज बाकी थी।
रोहन के पिता उत्साहित होकर बेटे को कॉल किए...
कैसे हो बेटे?
ठीक हूं पापा।
आप कैसे हैं ? मां कैसी है?
सब ठीक है और बहुत खुश हैं।
किस बात की खुशी?
बात ऐसी है कि रमाशंकर जी अपनी बिटिया की शादी के लिए आए थे।
कौन रमाशंकर जी?
हाईकोर्ट के जज हैं।
किसकी शादी के लिए?
तुम्हारी और किसकी? मैंने हां कर दी हैं। लड़की सुंदर है और रमाशंकर जी भी अच्छे असामी हैं, मोटी रकम पर मैंने बात फाइनल की है। तुम दो-तीन दिनों की छुट्टी लेकर आ जाओ। लड़की देख लो। फिर इंगेजमेंट और विवाह का डेट फिक्स किया जाए।
पापा मैं वहां शादी नहीं करूंगा!
क्यों?
मैं किसी और से शादी करना चाहता हूं?
क्या वह इससे ज्यादा धन दे सकते हैं?
नहीं।
वो गरजते हुए बोले -" कौन है वो?"
आप उसे जानते हैं पापा- 'जया आंटी की बेटी सोनिया!'
वो जया, जिसके पति ने उसे दूसरी औरत के लिए तलाक दिया था ?जो सरकारी दफ्तर में पियून चपरासी की नौकरी करती है?
हां वही...
तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है रोहन? क्यों खानदान की नाक कटाने पर तुले हो?
यह प्रेम के चोंचले बड़े घरों के लड़के मौज मस्ती के लिए करते हैं। यही तक इसे रखो तो ठीक है।
तुम कल ही आ जाओ...
मैं नहीं आ पाऊंगा पापा...सोनिया से ही शादी करूंगा। मैं इस विषय पर आपसे बात करनी ही वाला था।
रोहन को पिता की कड़कती आवाज सुनाई दी..."अगर मेरी बात न माने तो हमारी जायदाद से तुम्हें फूटी कौड़ी भी न मिलेगी, सारी संपत्ति मैं अपने बड़े बेटे अजीत के नाम कर दूंगा।"
सोनिया बहुत अच्छी लड़की है पापा... अच्छे पद पर है, खुद्दार है।
हां ! हां ! तभी तो इतना मालदार बकरा ढूंढा है।
चाय वाले ने चाय रखी तो रोहन का ख्याल भंग हुआ।
वह चाय की चुस्कियां लेता पुनः अपने ख्यालों में उलझ गया....
रोहन के घरवालों ने जया जी को काफ़ी अपमानित भी किया लेकिन वह अपमान का घूंट पी कर भी अपना धैर्य बनाए रखीं थी।
रोहन सब के विरुद्ध जाकर सोनिया से कोर्ट में शादी की थी। विवाह के मौके पर उसे घर के किसी भी सदस्य का आशीर्वाद नहीं मिला था। सोनिया की मां ने मौके की नज़ाकत को समझते हुए रिश्ते को मंजूरी दे दी और शादी में शरीक भी हुई।रोहन चाय खत्म कर के पैसे दिए और घर के लिए निकल गया।
सोनिया के जाते ही मां की तबीयत में सुधार आ गई।दो दिन दो पलों की तरह पंख लगा कर उड़ गये। संडे को सोनिया वापस लौट रही थी।रोहन उसे स्टशन लेने जा रहा था। होली करीब होने के कारण ट्रेन में काफ़ी भीड़ थी। ट्रेन से उतरने और ट्रेन में चढ़ने वालों में ताकत की आजमाईश हो रही थी। सोनिया का संतुलन बिगड़ा और वह नीचे गिर गई। लोग चीखते चिल्लाते रहे और ट्रेन चल दी। ट्रेन गुजरने पर लहुलुहान सोनिया को पटरी से उठा कर लोगों ने प्लेटफार्म पर रखा। किसी को यकीन नहीं आ रहा था कि ऐसे हादसे बच सकता है। रोहन स्टेशन पहुंचा तो किसी महिला के हताहत होने की खबर मिली। भीड़ के करीब पहुंचना तो उसके होश के तोते उड़ गए। यह तो उसकी सोनिया ही थी। आनन फानन में सोनिया को अस्पताल पहुंचाया गया। सिर में ,हाथ में पैरों में जगह जगह टांके लगाने के बाद सीटी स्कैनिंग किया गया। रिपोर्ट परेशान करने वाला था। उसकी रीढ़ की हड्डी दो जगह से टूटी हुई थी। डॉक्टर ने रोहन को बुलाया और कहा--"रीढ़ की हड्डियों को तत्काल ऑपरेशन कर के सही जगह पर करना होगा यह आॅपरेशन रिस्की भी है।"
रोहन किंम कर्तव्य विमूढ़ खड़ा डॉक्टर को देख रहा था।
आप आॅपरेशन फॉर्म पर साईन कर दें और पैसों का इंतजाम भी कर लें।रोहन ने वैसा ही किया। उसने फोन से इसकी सूचना जया जी को दी थी।
रोहन बदहवास सा हॉस्पिटल के ऑपरेशन थिएटर के बाहर चहलकदमी कर रहा थी। ऑपरेशन थिएटर की रेड लाइट उसे चिढ़ा रही थी । पिछले 3 घंटे से सोनिया ऑपरेशन थिएटर के अंदर थी । अकेले रोहन की घबराहट बढ़ती ही जा रही थी । कभी वह सोनिया की सलामती के लिए भगवान से प्रार्थना करता ;कभी ऑपरेशन थिएटर की लाइट की तरफ देखता, कभी घड़ी की तरफ देखता ।
तब ही रोहन की नज़र सामने से आती, सोनिया की मम्मी जयाजी पर पड़ी ।जयाजी की मानसिक मजबूती उनके व्यक्तित्व से ही झलकती थी ।वक़्त के थपेड़ों ने उन्हें हर परिस्थिति को धैर्य से सम्हालना सीखा दिया था । उनके स्वयं के मन के समंदर के भीतर भारी तूफ़ान आया हुआ था ;लेकिन चिंता की लहरें उनके साहस के किनारों को हिला नहीं पा रही थी । रोहन के फ़ोन के बाद से अब तक उन्होंने अपने को सम्हाल रखा था । वह अच्छे से जानती थी कि अगर वह ज़रा भी बिखरी तो रोहन और सोनिया को कौन समेटेगा ।
उधर अब तक रोहन अपने आपको जैसे -तैसे सम्हाल रखा था, लेकिन जयाजी पर नज़र पड़ते ही रोहन के सब्र का बाँध टूट गया और वह बिलख -बिलख कर रोने लगा ।
"रोहन बेटा ,फ़िक्र मत करो । सब ठीक हो जाएगा। "जयाजी रोहन को दिलासा देने लगी। जयाजी की इकलौती बेटी सोनिया जीवन और मृत्यु के मध्य झूल रही थी। रोहन के घरवालों ने तो उसी दिन रोहन से सारे संबंध तोड़ लिए थे ;जिस दिन उसने जयाजी की बेटी सोनिया का हाथ थामा था।
घंटों बाद ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा खुला। रोहन दौड़ता हुआ डॉक्टर की ओर बढ़ा.. डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा- "ऑपरेशन सफल रहा। पर...."
पर क्या ? जया जी ने पूछा-"
देखिए माता जी आपको बहुत हिम्मत से काम लेना होगा... लगभग डेढ़ महीने तक पेशेंट का दोनों पांव काम नही करेगा। हड्डी पूरी तरह जोड़ने के बाद ही वह सामान्य हो पाएगी।"
डेढ़ महीने बाद डॉक्टर ने रीढ़ पर लगे पैड बेल्ट को हटाया, कुछ एक्सरसाइज करवाएं और जया जी की ओर मुखातिब हुआ, आपकी बेटी और पूर्ण स्वस्थ है। आप दोनों की अथक सेवा और देखरेक के कारण देखिए यह अपने पैरो पर खड़ी है। तीनों की आंखों से खुशी के अविरल आंसू बह रहे थे, होंठ मुस्करा रहे थे और व्यथाओं की तपिश शीतल हो रही थी।