Dippriya Mishra

Children Stories Tragedy Crime

4.5  

Dippriya Mishra

Children Stories Tragedy Crime

बेगुनाह

बेगुनाह

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उस रोज हॉस्पिटल में मरीजों की काफी भीड़ थी। डॉक्टर गार्गी (महिला रोग विशेषज्ञ ) अब तक 67 मरीजों को देख चुकी थीं और उनके देखने का समय भी समाप्त हो गया था। उन्होंने फोर्थ ग्रेड कर्मचारी सुदेशना को केबिन बंद करने का आदेश दिया। तभी एक महिला की आवाज सुनाई दी ,जो सुदेशना से विनती कर रही थी कि किसी भी तरह डॉक्टर से उन्हें दिखलवा दें ,बहुत जरूरी है, वह बहुत दूर से आई है। सुदेशना  उससे शाम के वक्त आने को कह रही थी और वह गिड़गिड़ाए जाए जा रही थी।

डॉक्टर गार्गी ने सुदेशना से कहा -'मरीज को अंदर भेज दो।'

वह महिला अंदर आकर डॉक्टर गार्गी के सामने बैठ गई ... 

मरीज की ओर बिना देखे ...पर्ची लिखते हुए गार्गी ने पूछा उम्र?

32 साल

नाम?

अवनि अनन्या!

डॉक्टर गार्गी को नाम जाना पहचाना लगा और उनकी नजर अनायास उस महिला की ओर उठ गई। सामने उनकी बचपन की मित्र अवनि ही थी। जिसे वो 20साल बाद देख रही थी। पहले वाली गोरी चिट्टी, खूबसूरत, गोल मटोल अवनि काफी कमजोर ,सांवली और दुबली हो गई थी।  दोनों सहेलियां दूसरे को देख कर बहुत खुश हुई।औपचारिक बातों के बाद चेकअप किया। संदेह हुआ कि उसे जोंडिस है। इसलिए दवाइयां और कुछ टेस्ट लिख दिया। कहा टेस्ट करवा कर कर 2 दिन बाद मिलो। फिर मुखातिब हुई....

किसके साथ आई हो?

अकेले।

कहां रह रही हो अभी?

इंद्रपुरी।

कैसे जाओगी?

बस से।

मैं भी उसी तरफ जा रही हूं इंद्रपुरी से आगे सुभाष नगर, मेरी कार से ही चलो रास्ते में बातें भी हो जाएंगी।

ड्राइव करते हुए गार्गी ने कहा -'और बता?'

क्या बताऊं ... बोलती हुई उसने अपनी हथेली आगे कर दी... ईश्वर ने मेरा नसीब ही अच्छा नहीं लिखा। 

इसलिए मेरी छोड़ - तू अपनी बता... कब से है इस शहर में?

2 साल हो गए।

अभी तक शादी नहीं की?

नही।

क्यों?

मेरी ज़िद थी कि एक अच्छे मुकाम पर आने के बाद ही विवाह करूंगी।

मुझे सच में बड़ी खुशी हुई गार्गी की तू डॉक्टर बन गई। अगर मैं भी पढ़ती रही होती तो आज मैं भी तेरी तरह किसी पद पर होती....

हां जरूर होती ,क्लास में हम ही दोनों तो एक दो नंबरों के अंतर पर फर्स्ट -सेकंड आया करती थीं।

अवनि की आंखों में मोटे मोटे आंसू तैर गए। वो दिन तो मुझे बस ख्वाब से लगते हैं। तू तो जानती है कि मैंने बिना गलती की सजा पाई है। पति मैट्रिक पास थे। । सीमेंट कारखाने में काम करते थे। ससुराल भी आर्थिक दृष्टि से मजबूत नहीं है। दो बच्चों की मां हूं। पति को खोए भी 5 साल हो गए। गार्गी ने अभी उसका चेहरा गौर से दिखा माथे पर बिंदी तो थी पर मांग में सिंदूर नहीं ।

उसने पूछा -कैसे मृत्यु हुई है उनकी?

मौत का क्या है ,मौत तो बस बहाने ढूंढती हैं... कुछ दिनों से उनके बांये पैर में दर्द था। पेनकिलर खाने से कम हो जाता था या मालिश करने से भी आराम आ जाता था। हम लोग सोचते रहे थकान की वजह से ऐसा हो रहा है मगर से डॉक्टर से मिली तो टेस्ट में पता चला कि उन्हें फोर्थ स्टेज का ब्लड कैंसर है।कुछ दिनों तक इलाज चला मगर तबीयत सुधरी नहीं और....

ओह !बहुत दुखद हुआ तुम्हारे साथ।

अब घर कैसे चलता है?

सिलाई का काम करती हूं। राशन कार्ड है अनाज मिल जाता है। बस किसी तरह घर चल जाता है किसी के आगे हाथ नही फैलायी।

मां से बातचीत होती है कि नहीं?

कभी कभार।

उन्हें अपनी गलती का पछतावा हुआ... पर देर से... मेरी दोनों बच्चियों को अपने पास रखना चाहती थी पर मैंने मना कर दिया।

बातें करते हुए एक मोड़ पर अवनि ने गाड़ी रोकने का इशारा किया। इसी गली में मेरा घर है , मगर वहां तक गाड़ी नहीं जाएगी। चलो मेरे गरीब खाने को देख लो। गार्गी सड़क पर ही कार पार्क करके उसके साथ हो ली।

अवनी ने ताला खोला, छोटे-छोटे दो कमरे,एक चौकी दो प्लास्टिक की कुर्सियां, घर के सारे हालात गरीबी के राज बयां कर रहे थे। वह चाय बनाने जाने लगी तो गार्गी ने कहा- नहीं अवनि चाय पीने फिर कभी आऊंगी, फिलहाल एक गिलास पानी पिला दो।

अवनि की गली से निकल कर वह कार तक आई लेकिन  उसका मन 20 साल पीछे की स्मृतियों की ओर मुड़ गया । जब वो दोनों इंदिरा गर्ल्स हाई स्कूल में पढ़ाई कर रही थीं। दोनों में गहरी दोस्ती थी ,अटूट विश्वास था। उस वक्त दोनों आठवीं कक्षा में पढ़ रही थी, स्वभाव में अल्हड़पन और ख्वाब आसमां छूने वाले। यूं लगता जैसे सारी दुनिया मुट्ठी में समा सकती है।

उस रोज अवनि बस स्टॉप पर ही उदास लग रही थी, क्लास में भी शांत रही। लंच ब्रेक में स्कूल के घेरे में पंक्ति से लगे कदम के पेड़ के नीचे बैठी तो उसने कहा-"आज टिफिन नहीं लाई हूं।"

कोई बात नहीं मैं लाई हूं ,खाओ।

नहीं , खाने की भी इच्छा नहीं।

क्यों तबीयत तो ठीक है?

हां ,तबीयत ठीक है।

फिर क्या बात है? सुबह से तुम्हें उदास देख रही हूं। उसकी पलकों के कोरों पर आंसू की बूंदें लटक आई थी। गार्गी ने जोर देते हुए कहा-'फिर क्या बात है बताओ भी.....'

मैं जीना नहीं चाहती मर जाना चाहती हूं...

उसने आश्चर्य से देखते हुए कहा- क्यों?

आज सुबह फिर मां मुझे बहुत पीटा है... कहते हुए उसने पीठ गार्गी की ओर कर दिया।

उप्फ! शर्ट उठाकर देखा तो पूरी पीठ पर छड़ी के काले निशान थे।

अवनि , तुम्हारी मां सौतेली है क्या?

सौतेली नहीं उससे भी खराब है?

मगर इतना पीटने का कारण क्या है?

बताते भी शर्म महसूस हो रही है?

मुझसे क्या शरम?

उसने बताना शुरू किया-"कल रात मैं गहरी नींद में थी, अचानक लगा कोई मेरे गालों को सहला रहा है, नींद खुल गई फिर भी मुझे गालों पर किसी का स्पर्श महसूस हो रहा था। मैंने हाथ पकड़ लिया और और जोरदार थप्पड़ जड़ दी।

कौन था वो?

मेरा बड़ा भाई अजीत।

छी छी उसे भाई मत कहो।

तुमने कुछ कहा नहीं?

मैं कल रात में ही अच्छे से समझा दी कि रिश्ते की मर्यादा में रहो वरना मुझसे बुरा कोई ना होगा।

फिर?

मैं शांत होकर अपने बिस्तर में लेटी रही कि सुबह होने पर मां को बताऊंगी मगर...

मगर क्या?

अचानक भाई जोर जोर से चिल्लाने लगा.... मां पापा दोनों उठ कमरे में आ गए। तब उसने मां को सब उल्टा करके बता दिया कि मैं उसके गालों को सहला रही थी, नींद खुलने पर वह मुझे थप्पड़ मारा, मैं सफाई देती रही पर मां ने उसकी बातों पर विश्वास कर लिया। मुझे दूसरे कमरे में ले जाकर गंदी गंदी गालियां दी और मेरी पिटाई शुरू कर दी। तुम तो जानती हो वह बेटे को ही मानती है, उसे ही अच्छा खिलाती है, उसे अच्छा पहनाती है और कहती है बेटियां पराई होती है इसे खिलाकर क्या?

गार्गी के मन में उसके भाई और मां के लिए नफरत भर आई।

अजीत अब बात- बात पर उसे नीचा दिखाने की कोशिश करता, रोज उस पर कोई ना कोई आरोप लगाता रहता और उसकी मां उसे पीटते रहती । उसके घर के सामने वाले घर का लड़का यह सब देखता रहता उसके मन में अवनि के लिए सहानुभूति भर आई थी। एक दिन अवनि ने गार्गी को बताया कि वह किसी से बहुत प्यार करती है, वह उसे मानसिक सपोर्ट करता है । इसी कारण वह जिंदा है वरना अब तक तो मर गई होती। गार्गी ने समझाने की कोशिश की-"तू पढ़ाई पर ध्यान दें किसी लड़के के चक्कर में मत पड़।" मगर होनी को तो कुछ और मंजूर था। उसकी खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी। दो-तीन माह के बाद एक रोज उस लड़के से बातें करती हुई वह पकड़ी गई थी और फिर वही गाली गलौज मारपीट जुल्म़ तो यह कि उसकी पढ़ाई तक छुड़ा दी गई।

दिसंबर का महीना था, आठवीं का एग्जाम शुरू होने वाला था। एक दिन दोपहर के वक्त अवनि अपनी मां के साथ के घर पर आई थी। उसे शादी का कार्ड थमा कर कहा-' अगले सप्ताह मेरी शादी है जरूर आना।'

गार्गी स्तब्ध थी ... खींचती हुई उसे दूसरे कमरे में ले गई..... यह क्या कर रही है पागल?

शादी कर रही हूं।

यह शादी की उम्र है?

मैं इस कैद से छुटकारा चाहती हूं चाहे जैसे हो। यहां सब दुश्मन है मेरे.... कोई नहीं समझता मेरी भावनाओं को...पिता ने शादी तय कर दी है...

अब शादी करके भी देख लेती हूं तकदीर में क्या है?

उस रोज गले लग कर दोनों खूब रोए थे । जाते समय गार्गी ने कहा-"मेरा पता तो मालूम ही है पत्र लिखना।"

हां

मगर अवनि कभी पत्र नहीं लिखी थी।

अपनी स्मृतियों में खोई वह घर के गेट तक पहुंच चुकी थी। उसने सोचा ना था कि कभी इस तरह मुलाकात होगी। अवनि की पीड़ा वह महसूस कर रही थी। कुसूरवार राज भोगता रहा था और बेकसूर अवनि जिंदगी के थपेड़े खाती रही...जाने कितनी ही अवनियो की जिंदगी यूं ही बर्बाद होती रहेगी अगर जननी ही बेटे -बेटी में फर्क करेगी। उसने सोचा अवनि अब अकेली नहीं है। वो उसका सहारा बनेगी... अवनि के लिए जरूर कुछ करेगी। उसकी बच्चियों के लिए पढ़ाई की व्यवस्था और अवनि को कोई बिजनेस करवा कर अपनी दोस्ती का फर्ज अदा करेगी। वह सोचती हुई घर के अंदर आ गई।



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