चुगली
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वसुंधरा कॉलोनी में फ्लैट लिए उदीप्ति को चंद माह हुए थे। धीरे धीरे पड़ोसियों से जान पहचान बढ़ना स्वाभाविक था। मिसेज शैल गाहे-बगाहे आती -जाती रहती हैं और पूरे मोहल्ले की खबर चाय की चुस्कीओं के साथ सुनाती रहती हैं। कॉलोनी के लोग उन्हें कई उपनाम दे रखे हैं, खबरीलाल ,बीबीसी लंदन, उटपटांग समाचार आदि, उदीप्ति जब उनकी बातें सुनती है तो उसे लगता है किसी कहानीकार के लिए तो यह रोज एक नया प्लॉट दे सकती हैं।
संडे को स्नान के बाद छत पर धूप में आई ही थी कि बगल वाले छत पर पांडे जी की पत्नी जया जी कपड़े सुखाने आ गई नजर पड़ते ही मुस्कुरा दी, फिर औपचारिक बातें हुई कुछ देर के पश्चात उन्होंने कहा कभी फुर्सत में हमारे घर भी आइए । बातें करती हुई वो सीढ़ियों की ओर मुखातिब गई।
मिसेज शैल उसे ढूंढती हुई छत पर आ गई थी ,कहने लगी-'आज ज्यादा ठंड लग रही है क्या कि तुम छत पर?'
"नहीं मिसेज शैल! ज्यादा देर बाल गीले रह जाते हैं तो सिर दर्द होने लगता है इसीलिए सोचा थोड़ी देर बाल सुखाने के बहाने विटामिन डी भी ले लूं।"
"अच्छा यह बात है।"
"जी।"
"यह घर देख रही हो?"
"हां ! पांडे जी का है अभी तो मिसेज पांडे से बात हुई।"
"ओह..."
"सुनो उदीप्ति उनसे दूर ही रहना।"
"क्यों क्या बात है?"
"उनके बारे में बताती हूं पर किसी से ना कहना।"
"बिल्कुल नहीं, आप निश्चिंत होकर कहिए।"
"तुम्हारे पास समय तो है ना?"
"हां आज संडे है ,पति कंपनी के टूर पर हैं मेरे पास समय ही समय है।" उदीप्ति ने काल्पनिक अक्षत- फूल लेकर मन ही मन हाथ जोड़ लिए...।
मिसेज शैल का प्रवचन आरंभ हुआ....उन्होंने बड़े रहस्यमय ढंग से कहा -"पांडे जी की बीबी राजपूत है।"
"आपको कैसे पता?"
"ये दोनों मेरे ही गांव के हैं। जब पांडे जी 20 साल के थे , तभी उन्हें जया से प्रेम हो गया। घरवालों से शादी की बात की पर किसी भी हाल में बात बनते ना देख कर ,वह उन्हें लेकर गांव से शहर भाग गए थे। पांडे जी का जन्म तीन बेटियों के बाद ,बड़ी मन्नतों के बाद हुआ था।गांव से लड़की लेकर भागना बड़ी शर्मनाक घटना थी। मां का रो- रो कर बुरा हाल था पिता समाज में बैठने लायक नहीं रह गए थे।इनके पिता यह गम झेल नहीं पाए और कुछ ही दिनों के बाद उनकी मौत हो गई । उन्होंने कसम खा लिया कि जिसके कारण उसके पति की मौत हुई है ,उसे अपने जीते जी घर में पांव नहीं रखने देंगी। उन्होंने अपना कसम निभाया भी ।कभी -कभार पांडे जी मां से मिलने गांव गए पर उनकी पत्नी नहीं।"दीप्ति को लगा जैसे किसी फिल्म की स्टोरी सुन रही हो।
उदीप्ति ने पूछा "भागकर वो कहां गए थे?"
"अपने एक दोस्त के यहां ,उस दोस्त ने दोनों की काफी मदद की। पांडे जी पढ़ने में काफी तेज तरार थे, इसलिए उन्हें नौकरी भी तुरंत मिल गई। उन्होंने आगे की भी पढ़ाई जारी रखी। और अफसर पद तक पहुंच गए।"
उसने अगला सवाल किया-" क्या पांडे जी की मां ने अभी तक दोनों को माफ नहीं किया?"
"अजी माफी की बात ही कहां? उन्होंने इन्हें श्राप दिया है श्राप।"
"क्या?"
"हां !उन्होंने कहा कि -"जैसे मेरा पुत्र तुमने छीन लिया है वैसे ही तुम संतान सुख के लिए तरस जाओगी। " उदीप्ति तुम मानो या ना मानो हृदय से निकली दुआ लगे ना लगे, पर शाप खाली नहीं जाता।"
"वो कैसे मिसेज शैल?"
"वह ऐसे कि पांडे जी को कोई संतान ना हुई ,बहुत इलाज करवाए मगर कोई फायदा नहीं।"
"ओह!"
"कर्मों का फल इसी धरती पर मिलता है ,स्वर्ग नरक सब यही है।"
"लेकिन कल तो उनकी गोद में मैंने एक छोटा बच्चा देखा था?"
"अरे वो... उन्होंने अनाथ आश्रम से एक बच्ची गोद ली है। 15/20 दिनों की बच्ची है जाने किसका पाप है?"
सुनकर उदिति का मन आहत हुआ, उसने कहा "बच्चें तो भगवान का रुप होते हैं।" उनकी कहानी को जरा सी ब्रेक लगी पर वह पुनः शुरू हो गईं.... जानती हो सुनोगी तो हंसी आएगी...
"क्या?"
"बच्चे गोद लेने के बाद जया अपने को प्रसूता ही समझने लगी है.... डॉक्टर से मिलने गई थी और कहीं की बेबी को वो बाहरी दूध नहीं पिलाना चाहती उसकी सेहत के लिए अच्छा नहीं। आजकल सुबह शाम इंजेक्शन लेने जाती है"... कहते-कहते मिसेज शैल ठहाका मारकर हंस पड़ी।
उनकी बातें सुनकर अब उदीप्ति का मन खराब होने लगा था।ठीक उसी वक्त मिसेज शैल का पुत्र उन्हें बुलाने आ गया कि पापा बुला रहे हैं। उदीप्ति ने राहत की सांस ली। उसने सोचा कितना ममत्व है जया जी की हृदय में, कितनी तड़प है संतान की। क्या प्रेम वास्तव में इतना खराब होता है ?क्यों उसे इतनी परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है? क्या प्रेम का नसीब सचमुच अधूरा है? शायद नहीं! उस दूधमुंही अनाथ बच्ची को अब यशोदा मां मिल गई थी और जया जी को मातृत्व सुख और पांडे जी का प्रेम संपूर्ण हो गया था।