प्रायश्चित
प्रायश्चित
सुनो!
चार दिन बाद 27 सितम्बर को हमारी शादी की दूसरी साल गिरह है और मुन्ना का पहला जन्मदिन, अब तो अपने घरवालों को बता दीजिए।
अंशु तुम जानती हो ये संभव नहीं वो कभी नहीं मानेंगे।
कोई बात नहीं जाने दीजिए..
इस बार मुन्ना के जन्मदिन पर कुछ खास करते हैं।
रौशन कोई जवाब ना दिया....
चार दिन बाद ....
अंशु तुमसे कुछ कहना है
हाँ पता है... यही ना.. "आई लव यू" हैप्पी मैरिज डे?
नहीं..
तो कोई सरप्राइज है?
नहीं...
तो ?
माँ का कॉल आया था पापा ने मेरी शादी तय कर दी है... तिलक का पैसा भी ले लिया है...
मैंने तुम्हारे बारे में माँ को बताया.. माँ ने कहा 'अगर लड़की को जिंदा देखना है तो पापा को कुछ ना बताओ'। कल इंगेजमेंट है चुपचाप चले आओ।
आपने क्या सोचा?
मुझे जाना ही होगा अंशु ।
अंशु मुन्ना की ओर देखी, गोद में उठायी...
मुन्ना आज से तेरी माँ भी मैं हूँ और बाप भी मैं.... गला भर्रा गया पर इरादे मजबूत हो गये।
मंगलसूत्र गले से उतार कर अंशु रौशन की ओर उछाल दी और कहा.... शादी के इस बंधन से आपको मुक्त करती हूँ..
ऐसा क्यों कह रही हो? मैं तुम्हारा हमेशा ध्यान रखूँगा। बीच बीच में आता रहूंगा...
बीच बीच में?
मुझे बाजारू समझा है क्या कि चोरी छुपे मेरे पास आ जाओ?
मैंने एक दिन आपकी खातिर अपना घर छोड़ा था... आज उसी गुनाह की प्रायश्चित के लिए आपका घर छोड़ रही हूँ ।
मुन्ना को गोद में थामें अंशु दरवाजे से बाहर निकाल गयी।